ओलंपिक विजेता का भव्य स्वागतः विजेता का राजधानी में 'राजकुमार' सा सम्मान, कहा- मां के संघर्षों से पाया मुकाम

ओलंपिक विजेता का भव्य स्वागतः विजेता का राजधानी में 'राजकुमार' सा सम्मान, कहा- मां के संघर्षों से पाया मुकाम

लखनऊ, अमृत विचार: जैसे ही ओलंपियन राजकुमार साई सेंटर पहुंचे, उनसे मिलने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। खिलाड़ियों के साथ ही उनके प्रशिक्षक भी अपने उस खिलाड़ी को गले से लगाने को बेताब दिखे, जिसने खेलों के महाकुंभ ओलंपिक में पदक जीत कर इतिहास रच दिया। सभी से मिलते हुए जब राजकुमार अपने प्रशिक्षकों के पास पहुंचे तो उनकी आंखे भी मारे खुशी के नम हो गई। अत्यधिक भावुक होने के कारण प्रशिक्षकों की आवाज भी नहीं निकल रही थी। जैसे ही राजकुमार उनके पास पहुंचे, बोले.... शाबाश, कह कर गले से लगा लिया। यह नजारा देखने को मिला साई सेंटर में। पेरिस ओलंपिक में हॉकी में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य राजकुमार स्वागत साई सेंटर में ढोल नगाड़ों के साथ किया गया।

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सम्मान समारोह में राजकुमार ने बताया कि आज अपनी मां की बदौलत यहां तक सफर तय कर सका हूं। तकरीबन 12 साल पहले पिता के निधन के बाद पूरी तरह टूट गया था, लेकिन मां ने कहा कि सिर्फ हॉकी पर ध्यान लगाओ। राजकुमार ने बताया कि वर्ष 2012 में आयोजित एक हॉकी प्रतियोगिता में करमपुर की टीम से खेलने मैं लखनऊ आया, जहां रजा सर ने मुझे साई सेंटर से अभ्यास करने को कहा। वहीं से मेरे कॅरियर को दिशा मिली। राजकुमार ने बताया कि मेरे दोनों भाई हॉकी के खिलाड़ी हैं। पुरानी यादों के बारे में उन्होंने बताया कि लखनऊ साई से बहुत पुराना रिश्ता है। राशिद सर, रजा सर, नीलम मैम ने शुरुआत में मुझे आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया। राजकुमार ने बताया कि सफलता के इस सफर में यूपी हॉकी के सचिव और हमारे चीफ सलेक्टर डॉ. आरपी सिंह और प्रशिक्षक कम बड़े भाई रजनीश मिश्रा की विशेष भूमिका रही। साई के निदेशक आत्मप्रकाश ने कहा कि राजकुमार की सफलता यहां प्रशिक्षण लेने वाले खिलाड़ियों को दमदार प्रदर्शन के लिए प्रेरित करेगी। साई की नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (एनसीओई) के खिलाड़ी आगे भी ओलंपिक में चमक बिखेरते दिखाई देंगे।

जर्मनी से मिली हार से टूटा दिल

जर्मनी से मिली हार से हम सभी को दिल टूट गया था। पेरिस ओलंपिक में कई मौके पर हमसे चूक हुई। हमारा प्रदर्शन कुछ एक मौकों पर आशा के अनुरूप नहीं रहा।जर्मनी के खिलाफ सेमीफाइनल में मिली हार हमेशा दुख देगी। उस मैच में हमारी टीम को रोहितास की कमी खली, जो ब्रिटेन के खिलाफ मिले रेड कार्ड के कारण जर्मनी के खिलाफ नहीं खेल सके। उस हार के बाद खिलाड़ी निराश नहीं हुए और स्पेन के खिलाफ जीत हासिल की और कांस्य पदक जीता।

श्रीजेश भाई के नाम रहा पदक

सभी को पता था कि पेरिस ओलंपिक श्रीजेश भाई का आखिरी ओलंपिक था। ऐसे में हम सभी उनके लिए पदक जीतना चाहते थे। पदक जीतने के बाद वह बहुत भावुक थे। उन्होंने बताया कि कप्तान हरमन और श्रीजेश भाई हम सभी को गाइड करते थे। स्पेन के खिलाफ मिली जीत के बाद श्रीजेश भाई की खुशी देखते ही बनीं। उनको खुश देख कर हमारी खुशी दोगुनी हो गई। उम्मीद है कि वे आगे भी भारतीय हॉकी से जुड़े रहेंगे। उनके जैसे खिलाड़ी की हमें बहुत जरूरत है।

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अगले ओलंपिक में बदलेगा पदक का रंग

पेरिस ओलंपिक में भले ही हमारी टीम पदक का रंग बदल नहीं पाई, लेकिन आगे इसमें बदलाव जरूर होगा। पूरी टीम इसके लिए एकजुट है। जिस तरह से टीम का हर खिलाड़ी ओलंपिक में स्वर्ण जीतना चाहता है उसी तरह से मेरा भी ख्वाब है कि लास एंजिल्सि में देश का प्रतिनिधित्व करके स्वर्ण पदक जीत सकूं। मुझे विश्वास है कि भारतीय हॉकी का स्वर्णिम दिन जल्द ही लौटेंगे।

यूपी हॉकी की बदल रही तस्वीर

यूपी हॉकी की तस्वीर तेजी से बदल रही है। हॉकी के सभी आयु वर्ग के मुकाबले में हॉकी के खिलाड़ी दमदार प्रदर्शन कर रहे हैं। कई खिलाड़ी हॉकी के नेशनल कैंप तक पहुंच रहे हैं। उन्होंने कहा कि अभी भी ग्रास रूट लेवल पर हॉकी पर काम करने की जरूरत है। जो बच्चे हॉकी खेल रहे हैं, उनके बेहतर प्रशिक्षण के साथ उचित खुराक की सुविधा दी जाये। यूपी में अब अधिकांश शहरों में हॉकी के ट्रेनिंग सेंटर मौजूद हैं।

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