रामनगर: टाइगर को खूनी दरिंदा नहीं जंगल का जैंटलमैन कहते थे जिम कार्बेट
विनोद पपनै, रामनगर, अमृत विचार। उनकी धमनियों में बेशक आयरिश रक्त का प्रवाह होता रहा, मगर भारत और भारतीयों के प्रति उनका प्रेम इस कदर था कि लोग उन्हें गोरा साधु, कारपेट साहब के अलावा और न जाने किन किन नामों से जानते थे। जी हां हम बात कर रहे हैं जेम्स एडवर्ड कार्बेट की, जो अपने अंतिम समय में कीनिया में शरीर से मौजूद तो रहे मगर उनका दिल भारत की माटी में वापस आने के लिए अंतिम समय तक तड़पता रहा, हालांकि उनका भारत आने की अभिलाषा अंतिम समय में पूरी नहीं हो सकी।
अपने जीवन में करीब 50 से अधिक आदमखोर बाघों को मौत की नींद सुला देने वाले आयरिश मूल के निवासी कार्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 को हुआ था। उनकी किताब माई इंडिया के अनुवादक संजीव दत्त ने लिखा है नन्हे जिम ने कुदरत की गोद में होश संभाला। कालाढूंगी के खूबसूरत जंगलों में न तो जानवरों की कमी थी और न ही परिंदों की यही जंगल उनका पहला स्कूल था। हर रोज घर एक परिंदा मार कर लाना जिम की जिम्मेदारी थी। तब उनके हाथ में गुलेल थी तो जंगल की सरहद ही उनका घर थी। जब उनके हाथों में बंदूक आयी तो पूरा जंगल ही उनका घर बन गया। बेशक जिम ने अपने जीवन में आदमखोर बाघों को मौत के घाट उतारा हो मगर वह बाघ के दुश्मन कभी नहीं रहे।
चम्पावत का नरभक्षी, चौऊगढ़ का शेर, पवलगढ़ का कंवारा शेर, मोहान का नरभक्षी, पीपलपानी का शेर ये ऐसे बाघ थे जिन्होंने सैकड़ों मानवों को अपना निवाला बनाया था। इनका ही जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक कुमाऊं के नरभक्षी के रूप में किया है। इन सबके बावजूद उन्होंने किसी निर्दोष बाघ को मौत के घाट उतारा हो ऐसा उल्लेख कहीं नहीं मिलता। जिम कार्बेट उस दौर में जब लोग शेर ( बाघ) को खून का प्यासा दरिंदा कहा करते थे उस दौर में उन्होंने शेर को जंगल का जेंटलमैन की संज्ञा भी दी थी।
अपनी पुस्तक माई इंडिया में भले मानुस शेर का जिक्र करते हुए कहा था कि मैं समझता हूं कि शिकारी जिन्हें कैमरे से शेरों के छायाचित्र उतारने और गोली चलाकर उन्हें मारने, इन दोनों तरह का शिकार करने का अवसर मिला होगा। वह इस बात से सहमत होंगे कि कैमरे और राइफल से शिकार करने में अंतर दिखेगा। शिकारी द्वारा मारा गया बाघ केवल उसके लिए ही विजयोपहार हो सकता है मगर कैमरे से लिया छाया चित्र वन्यजीव प्रेमियों के लिए दिलचस्प होता है। कुछ ऐसा विचार रखते थे जिम एडवर्ड कार्बेट, वन्य जीवों के प्रति उनका अटूट स्नेह, वन एवम पर्यावरण के प्रति उनके विचार ही उन्हें और अंग्रेजों से हमेशा अलग रखता है।
बहुयामी प्रतिभा के धनी थे
जिम कार्बेट प्रसिद्ध शिकारी, कारपेंटर, फोटो ग्राफर, पर्यावरणविद, वैद्य के अतिरिक्त खिलाड़ी भी थे। वह कुमाउनी भाषा में बोलने में पारंगत थे।
भारत प्रेम कूट कूट कर भरा था
जिम ने अपना पूरा जीवन भारत में बिताया। माई इंडिया में उन्होंने लिखा है कि जिस हिंदुस्तान को मैं जानता हूं उसमें 40 करोड़ लोग रहते हैं जिसमें 90 प्रतिशत सीधे-साधे, ईमानदार और वफादार और मेहनती हैं, 19 अप्रैल 1955 को जिम कार्बेट कीनिया में रहते हुए चल बसे।