Hathras Stampede News: हमीरपुर से 68 लोगों का जत्था गया था दरबार में शामिल होने...सभी लौटे सकुशल, घटना को बता रहे साजिश

जिले से 68 लोगों का जत्था गया था हाथरस दरबार में शामिल होने

Hathras Stampede News: हमीरपुर से  68 लोगों का जत्था गया था दरबार में शामिल होने...सभी लौटे सकुशल, घटना को बता रहे साजिश

हमीरपुर, अमृत विचार। साकार विश्व हरि उर्फ भोले बाबा के दरबार में शामिल होने जिले से 68 लोगों का जत्था एक बस एवं एक बोलेरो में गया था। दरबार में शामिल होने के बाद यह जत्था बुधवार को रात में सकुशल वापस लौट आया है। बाबा के अनुयायी इस घटना को साजिश बताकर बाबा के प्रति आस्था जता रहे हैं।

साकार विश्व हरि के जिले में करीब 5000 अनुवाई है। एक वर्ष पूर्व तक बाबा के सेवादार जिले में मौजूद रहकर अलग-अलग गांवों में दरबार लगाकर प्रचार प्रसार करते रहे हैं। उसके बाद उनके अनुयायी अपने स्तर से बैठक लगाकर इस प्रचार प्रसार को आगे बढ़ाते रहे। जिससे पूरे जिले में इनके अनुयायियों की संख्या पांच हजार से अधिक पहुंच चुकी है। 

ग्रामीणों ने बताया कि बीते छह माह पूर्व तक क्षेत्र के ग्राम कुंडौरा, बांकी, विदोखर, पाटनपुर आदि गांवों में बाबा की फोटो रखकर दरबार लगाकर रिकॉर्डिंग प्रवचनों के साथ अमृत पानी का वितरण किया जाता था। इस अमृत पानी के पीने मात्र से तमाम असाध्य रोगों के साथ भूत प्रेत की बाधा दूर होने का दावा किया जाता है। फिलहाल पिछले छह माह से जिले में कहीं भी दरबार का आयोजन नहीं हुआ है। 

साकार विश्व हरि के अनुयायी संतराम श्रीवास, कल्लू धुरिया, प्रेम कुमार श्रीवास, देशराज सोनी, ब्रजराज यादव, भवानीदीन, वरदानी कुशवाहा ने बताया कि साकार विश्व हरि के हाथरस में आयोजित दरबार में शामिल होने के लिए जिले के मौदहा, सुमेरपुर, भमौरा, लेवा, पासून, खैरी, विदोखर पुरई, विदोखर मेंदनी से 68 लोगों का एक जत्था बस एवं बोलेरो से पहुंचा था। सभी लोग सकुशल लौट आए हैं। इनको घटना के पीछे साजिश नजर आ रही है। यह लोग बाबा के प्रति आगाध आस्था व्यक्त कर रहे है।

जनपद के विभिन्न गांवों में साकार विश्व हरि के दरबार ज्यादातर सार्वजनिक भूमि पर लगाने के साथ कभी-कभार ग्राम पंचायत सचिवालय में भी आयोजन किए गए हैं। विदोखर मेंदनी के प्रधान लालाराम यादव  व पुरई के प्रधान सुंदरलाल प्रजापति ने बताया कि उनके यहां खेल मैदान के साथ पंचायत सचिवालय में भी यह लोग अपना दरबार लगा चुके हैं। इनका मानना है कि ज्यादातर गांवों में जहां भी दरबार लगे हैं वह सार्वजनिक भूमि पर ही लगाए गए हैं और इन दरबारों की प्रशासन की ओर से कोई अनुमति भी नहीं ली जाती रही है।

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