टनकपुर: पूर्णागिरि मेले में निशुल्क आवासीय सुविधा देते हैं धाम के पुजारी

टनकपुर: पूर्णागिरि मेले में निशुल्क आवासीय सुविधा देते हैं धाम के पुजारी

देवेन्द्र चन्द देवा, टनकपुर, अमृत विचार। समय की रफ्तार ने धर्म के स्वरूप को काफी बदला है। उत्तराखंड के प्रमुख धर्मस्थल मां पूर्णागिरि धाम की यात्रा के तरीके में भी बड़ा बदलाव आया है। सड़क व अन्य बेहतर सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण कभी टनकपुर से ही दो दिन में पूरी होने वाली मां पूर्णागिरि धाम की यात्रा अब महज कुछ घंटे में ही पूरी हो जाती है। लेकिन इस परिवर्तन और सुविधाओं के विस्तार के बीच आस्था के इस धाम में एक चीज नहीं बदली। और वह है यहां मिलने वाली निशुल्क आवासीय व्यवस्था। आज भी इस धाम में रात में ठहरने वाले श्रद्धालु को इसके लिए एक भी रुपया खर्च नहीं करना पड़ता।

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देश के सुप्रसिद्ध मां पूर्णागिरि धाम का मेला चम्पावत जिले का सबसे बड़ा आध्यात्मिक धाम ही नहीं, बल्कि सबसे अधिक समय तक चलने के अलावा प्रदेश के सबसे बड़े कारोबारी मेलों में से एक है। इस धाम में धर्म तो है लेकिन अर्थ की चाह नहीं। हर वर्ष होली के बाद लगभग तीन माह के सरकारी मेला अवधि में 35 से 40 लाख के बीच देश के कोने-कोने व पड़ोसी देश नेपाल से श्रद्धालु दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। इस बार होली पर्व के बाद यानी 26 मार्च से शुरू हुआ यह मेला 15 जून तक संचालित होगा।

आस्था के इस मेले की सबसे बड़ी खूबी इसमें श्रद्धालुओं के लिए पुजारियों द्वारा की जाने वाली निशुल्क आवासीय व्यवस्था है। जमरानी सेलागाड़,भैरव मंदिर से मुख्य मंदिर तक के करीब 3 किलोमीटर क्षेत्र में श्रद्धालुओं को रहने के लिए किराये के रूप में एक भी रुपया खर्च नहीं करना पड़ता है। पुजारी समाज की मेला क्षेत्र में करीब 250 दुकानें हैं। ज्यादातर दुकानें प्रसाद की है। इसके अलावा भोजन और अन्य दुकानें भी हैं।

इन दुकानों में श्रद्धालुओं के लिए बिस्तर से लेकर ठहरने और स्नान व शौचालय की व्यवस्था पुजारी और व्यापारी करते हैं। मां पूर्णागिरि धाम की ये निशुल्क आवासीय व्यवस्था सदियों से चली आ रही है। चार दशक पहले तक मां पूर्णागिरि धाम के मुख्य मंदिर तक पहुंचने में टनकपुर से ही दो दिन लगते थे।पहले सड़क की कमी और अन्य सुविधाएं नहीं होने से देवी दरबार तक पहुंचने के लिए टनकपुर से पैदल आना होता था। तब सिर्फ चैत्र और शारदीय नवरात्र में मुख्य रूप से तीर्थयात्री पहुंचते थे। मां पूर्णागिरि धाम के पुजारियों का कहना है कि पूर्णागिरि के पुजारी समाज के लोग दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को यजमान मान रहने और खाने की व्यवस्था करते थे। तब से ये शुरू ये परंपरा आज भी जारी है।

आवास के निशुल्क इंतजाम की व्यवस्था धाम के पुजारी व यहां के व्यापारी स्वयं करते हैं। इसमें एक बदलाव यह हुआ कि ठहरने वालों को देवी को चढ़ाने के लिए प्रसाद ले जाना होता है। प्रसाद कितने का लेना है, इसकी बाध्यता नहीं है। पुजारी वर्ग के व्यापारी हर साल अधिक से अधिक सुविधाएं श्रद्धालुओं को देने का प्रयास करते हैं।
-पंडित मोहन चंद्र पांडेय, पुजारी और व्यापारी।


धाम में श्रद्धालुओं के लिए निशुल्क आवास की यह व्यवस्था पुरातन प्रथा का हिस्सा है। इस प्रथा को यहां के पुजारी और व्यापारी समाज ने समय बदलने के बावजूद बरकरार रखा है। इसी वजह से अब भी दुकानों को धर्मशाला कहा जाता है। लेकिन इसमें किसी तरह का दान नहीं लिया जाता है। मंदिर समिति द्वारा श्रद्धालुओं को सरकारी मेला व मेला समापन के बाद भी अनेक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है
-पंडित किशन चंद्र तिवारी,अध्यक्ष, मां श्री पूर्णागिरि मंदिर समिति।

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