Chaitra Navratri 2024: गंगाघाट में बना प्राचीन दुर्गा मंदिर आस्था का प्रतीक, पूरी होती हर मुरादें...कनाड़ा, सिंगापुर से ऑनलाइन जुड़ते हैं भक्त

गंगाघाट में बना प्राचीन दुर्गा मंदिर है आस्था का प्रतीक

Chaitra Navratri 2024: गंगाघाट में बना प्राचीन दुर्गा मंदिर आस्था का प्रतीक, पूरी होती हर मुरादें...कनाड़ा, सिंगापुर से ऑनलाइन जुड़ते हैं भक्त

उन्नाव, अमृत विचार। गंगाघाट के प्राचीन दुर्गा मंदिर में नवरात्रि के अलावा आम दिनों में भक्त दूर दराज के अलावा देश विदेशों से आकर मां से मन्नतें मांगते हैं। इतना ही नहीं प्रतिदिन माता के दर्शन करने के लिये विदेशों से भी लोग ऑनलाइन जुड़ते हैं। नवरात्रि पर बड़े बड़े राजनेताओं के अलावा कई हस्तियों ने माथा टेक कर अपनी मन्नतें मांगी है। माता सबकी मुराद पूरी करती है, जिससे दिन प्रतिदिन मंदिर में भक्तों की भीड़ बढ़ती जा रही है।

मंदिर अध्यक्ष आदित्य सिंह (साधू) ने बताया कि 1953 में पूज्यपाद मदन केशव राव अमडेकर जबलपुर से कानपुर आये थे। उनका अधिकांश समय जबलपुर के जंगल में नर्मदा नदी के तट पर तपस्या करके बीता था। तपस्या जारी रखने के उद्देश्य से दुर्गा मंदिर के बगल में ही किराये का कमरा लेकर रहने लगे और नियमित रूप से मंदिर में तप व साधना करने लगे।

गुरुजी के अनुसार धीरे-धीरे श्रद्धालु भक्तों की भीड़ बढ़ने लगी। भक्तों के अनुनय-विनय के बाद 1953 में मूर्ति विहीन मठिया में मां दुर्गा की एक छोटी मूर्ति की स्थापना की गयी। समय के साथ भक्तों की इच्छा अनुरूप 1966 में मां दुर्गा के बड़े विग्रह की शास्त्रोक्त विधि विधान से प्राण-प्रतिष्ठा करायी गयी।

जिनकी पूजा वर्तमानकाल में की जा रही है। गुरुजी के अनुसार कालांतर में लगभग 400 साल पूर्व इसी स्थान पर महामाया की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित थी। जिसमें प्रत्येक वर्ष नेत्र शिविर का आयोजन, भंडारा, गरीब व अनाथ महिलाओं को यथा सामर्थ्य वस्त्र की सेवा आदि की जाती है। मंदिर में ब्रह्मलीन गुरुजी अपने समाधि स्थल पर चांदी के सिंहासन पर विराजमान हैं।

कनाड़ा, सिंगापुर से ऑनलाइन जुड़ते हैं भक्त

कोरोना काल के बाद से मंदिर के दर्शन के लिये प्रतिदिन लाइव आरती का प्रसारण किया जाता है, माता के दर्शन करने के लिये कनाड़ा, सिंगापुर, अमेरिका, नेपाल से भी भक्त जुड़ते हैं।

इस वर्ष हुये माता के मठ का निर्माण

प्राचीन दुर्गा मंदिर में दूर दराज से भक्त आते हैं। मंदिर के अध्यक्ष स्व0 जंगबहादुर सिंह ने भक्तों के सहयोग से सर्वप्रथम वर्ष 2014 में गुरू जी का चांदी का सिंहासन, 2015 में चैत्र नवरात्रि के दौरान माता जी का चांदी मठ, और इसी वर्ष शारदीय नवरात्रि पर माता का चांदी का पट बनवाया था। जिसके बाद उनका निधन हो गया। जिस पर उनके बेटे आदित्य सिंह ने वर्ष 2019 में छोटी माता और संतोषी माता का मठ चांदी का बनवाया। इसके साथ ही वर्ष 2020 में लॉक डाउन के समय मंदिर को भव्य रूप दिया और जयपुर के करीगरों ने पत्थरों पर नक्कासी गढ़ी, जो देखने लायक है।

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