Bareilly News: मातृत्व सुख न पाने में महिलाएं ही नहीं पुरुष भी जिम्मेदार

Bareilly News: मातृत्व सुख न पाने में महिलाएं ही नहीं पुरुष भी जिम्मेदार

बरेली, अमृत विचार। बरेली ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गाइनोकॉलोजिकल सोसायटी की ओर से आयोजित 35 वीं प्रादेशिक वार्षिक गाइनी कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन शनिवार को चार सत्र आयोजित किए गए। इस दौरान वरिष्ठ चिकित्सकों ने गर्भावस्था की जटिलताओं के संबंध में अहम जानकारी दी। इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत पद्मश्री डॉ. ऊषा शर्मा ने की।

नैनीताल रोड स्थित एक रिसोर्ट में आयोजित कॉन्फ्रेंस में आयोजन सचिव डॉ. लतिका अग्रवाल ने बताया कि पहले सत्र में एंडोमेट्रियोसिस के संबंध में जानकारी दी गई। आजकल यह बीमारी महिलाओं में सबसे ज्यादा सामने आ रही है। 

इसको लेकर वरिष्ठ डॉ. अलका कृपलानी ने बताया कि एंडोमेट्रियोसिस एक ऐसी बीमारी है, जिसमें गर्भाशय की लाइनिंग जैसे ऊतक गर्भाशय के बाहर भी बनने लगते हैं, इससे महिलाओं को गर्भधारण करने में काफी दिक्कत होती है। इसकी वजह से महावारी के दौरान खून भी अधिक बहता है। इस प्रकार की दिक्कत होने पर तुरंत चिकित्सक की सलाह लें। 

दूसरे सत्र में डॉ. आभा मजूमदार ने बाझपन में अंडे न बनना, ट्यूब का बंद होना, शुक्राणुओं की कमी आदि के इलाज के बारे में बताया। कहा कि आधुनिक तकनीकों जैसे कृत्रिम गर्भाधान आईयूआई, टेस्ट ट्यूब बेबी, दवाओं से काफी हद इन समस्याओं का इलाज संभव हो गया है। 

मुंबई से आए डॉ. अमित पटकी ने बताया कि अक्सर गर्भधारण न होने पर महिलाओं में ही कमी की बात लोग करते हैं, लेकिन कई मामलों में जांच में यह पुष्ट हुआ है कि पुरुषों में डीएनए विखंडन होने के चलते भी महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाती हैं, इसलिए शादी के एक से दो साल तक गर्भधारण न होने पर दोनों को ही जांच करानी चाहिए। डॉ. शिखा सेठ, डॉ. स्नेहा आदि ने भी अनुभव साझा किए। 

इस मौके पर बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी की कुलपति डॉ. लता अग्रवाल, सोसायटी की अध्यक्ष डॉ. मृदुला शर्मा, आयोजन सचिव डॉ. प्रगति अग्रवाल, डॉ. रश्मि शर्मा, डॉ. नीरा अग्रवाल, डॉ. भारती सरन, डॉ. गायत्री सिंह, वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अतुल अग्रवाल, डॉ. मोनिका वार्ष्णेय, डॉ. संध्या गंगवार, डॉ. भारती माहेश्वरी आदि मौजूद रहे।

समय से महिलाएं करें विवाह तभी घटेगी मातृ-शिशु मृत्यु दर
मेरठ से आईं पद्मश्री डॉ. ऊषा शर्मा ने बताया कि चिकित्सा पद्धतियों में लगातार बदलाव हो रहा है। इस प्रकार की कांफ्रेंस में यह बताया जाता है कि किस प्रकार मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी लाई जाए। हालांकि, इसके लिए मरीजों को गर्भावस्था के दौरान विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। 

इनमें प्रसव पूर्व नियमित जांच, उचित व पौष्टिक आहार, आयरन व कैल्शियम आदि का नियमित रूप से सेवन, एनिमिया खून की कमी की जांच आदि से गर्भवती व गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। गर्भवती को हर महीने नियमित जांच, सातवें व आठवें महीने में दो बार व नौवें महीने में हर हफ्ते जांच करानी चाहिए।

कोई डॉक्टर नहीं चाहता है मरीज के साथ अनहोनी हो
बरेली ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गाइनोकॉलोजिकल सोसायटी की अध्यक्ष डॉ. मृदुला शर्मा ने बताया कि परिजन अपने मरीज के इलाज के लिए खुद ही डॉक्टर का चुनाव करते हैं, अक्सर ऐसा देखा गया है कि इलाज के दौरान किसी भी प्रकार की अनहोनी होने पर तुरंत परिजन डॉक्टर पर लापरवाही का आरोप लगा देते हैं, जबकि डॉक्टर पूरी कर्मठता से अपने मरीज का इलाज करता है, कोई डॉक्टर कभी नहीं चाहता है कि मरीज के साथ किसी भी प्रकार की अनहोनी हो। इसलिए जिस डॉक्टर का चुनाव आपने किया है, उस पर विश्वास करना बहुत जरूरी है।

कृत्रिम गर्भाधान अब है आसान, देरी करने पर होगा पछतावा
कांफ्रेंस की आयोजन सचिव डॉ. लतिका अग्रवाल ने बताया कि गर्भधारण न होने पर महिलाओं को जिम्मेदार मानना गलत है, पुरुष भी उतने ही जिम्मेदार हैं, वहीं कृत्रिम गर्भाधान के प्रति अभी भी लोगों में जागरूकता की कमी है, जबकि इसका सक्सेस रेट अच्छा है। इसलिए, गर्भधारण न होने पर पहले कुशल चिकित्सक से इलाज लें, कुछ माह तक फायदा न होने पर कृत्रिम गर्भाधान करवाएं। अगर कृत्रिम गर्भाधान में किसी प्रकार की जटिल समस्या हो तो टेस्ट ट्यूब बेबी विधि का सहारा लें। हालांकि, कृत्रिम गर्भाधान विधि का सफलता का स्तर काफी है।

एक्ट में संशोधन के बाद सरोगेसी की खरीद फरोख्त पर लगी लगाम
दिल्ली से आईं वरिष्ठ आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. शिवानी सचदेव ने बताया कि सरोगेसी (किराये की कोख) विधि आने के बाद विदेशों से लोग भारत आकर महिलाओं को आर्थिक रूप से झांसा देकर मातृत्व सुख ले रहे थे, जिससे देश की छवि पर सवाल उठ रहा था। 

वर्ष 2021 में सरकार ने इस खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने के लिए सरोगेसी एक्ट में संशोधन कर आदेश दिया कि निसंतान दंपती अपने ही परिवार की महिलाओं को किसी भी प्रकार की बिना आर्थिक सहायता दिए सरोगेसी करा सकते हैं। इसके लिए भी सरकार द्वारा निर्धारित मेडिकल बोर्ड से प्रमाण पत्र लेना जरूरी है, हालांकि इस एक्ट के बाद देश के लोगों का रुझान सरोगेसी के प्रति कम हुआ है।

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