लोकसभा चुनाव 2024: पीलीभीत की सुनने को कान लगाए बैठे हैं बरेली, आंवला और बदायूं

लोकसभा चुनाव 2024: पीलीभीत की सुनने को कान लगाए बैठे हैं बरेली, आंवला और बदायूं

बरेली, अमृत विचार। पीलीभीत में 19 अप्रैल को चुनाव है और बरेली, बदायूं और आंवला में 7 मई को। मंडल की ही 5वीं संसदीय सीट शाहजहांपुर में चौथे चरण में 13 मई को मतदान होगा। यह इत्तफाक है कि इस चुनाव में पीलीभीत, बरेली और बदायूं में काफी कुछ हालात एक जैसे हैं। 

पीलीभीत और बरेली में भाजपा ने पुराने दिग्गजों का पत्ता साफ कर नए चेहरों को उतारा है तो बदायूं में यही काम सपा ने किया है। फर्क बस इतना है कि उसने 2019 में अपने हारे प्रत्याशी का टिकट बदला है। बदले हुए हालात में नए चेहरे पुराने दिग्गजों जैसा प्रदर्शन दोहरा पाए या नहीं, इसका आकलन पीलीभीत में मतदान के रुझान से होगा। यह तय माना जा रहा है कि इस चुनाव के अलग-अलग फैक्टर की वजह से जो चुनावी हवा पीलीभीत से शुरू होगी, उसका असर बदायूं, आंवला और बरेली में भी होगा।

वरुण गांधी का टिकट कटने का असर
पीलीभीत में वरुण गांधी 2019 का चुनाव ढाई लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीते थे, लेकिन रोजगार, किसान, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर पार्टी को मुश्किल में डालने वाली बयानबाजी करने की वजह से उनका टिकट काटकर इस बार पीडब्ल्यूडी मंत्री जितिन प्रसाद को मैदान में उतारा गया है। बरेली में 75 साल की उम्र पार कर देने की वजह से आठ बार सांसद रहे संतोष गंगवार का टिकट काटा गया है। 

बदायूं की सांसद संघमित्रा की तुलना हालांकि इन दोनों दिग्गजों से नहीं की जा सकती, लेकिन सपा के गढ़ में चुनाव जीतने के श्रेय से उन्हें वंचित भी नहीं किया जा सकता। उनका टिकट उनके पिता स्वामी प्रसाद मौर्य की धर्मविरोधी बयानबाजी की वजह से काटकर दुर्विजय सिंह शाक्य को दिया गया है। पीलीभीत के चुनाव में यह परीक्षण होना है कि दिग्गज नेता का टिकट काटने का जोखिम उठाने का फैसला भाजपा के लिए कितना उचित साबित हुआ। तीसरे चरण के चुनाव में बरेली और बदायूं में भी इस फैक्टर पर निगाह रहने वाली है।

चुनाव में बिखरेगा या नहीं मुस्लिम वोट
इस चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर मुस्लिम वोटर भी होगा। मुस्लिम वोटों पर सबसे बड़ी दावेदारी इंडिया गठबंधन की है लेकिन बसपा ने पीलीभीत, आंवला और बदायूं में मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर साफ कर दिया है कि इस वोट बैंक में वह भी हिस्सा बंटाएगी। 

मुस्लिम वोटरों के रुझान का नतीजों पर असर पड़ना तय है, इसलिए भाजपा की भी इस पर नजर रहेगी। पीलीभीत में मुस्लिम वोटरों की संख्या 26 प्रतिशत से ज्यादा है। बरेली में करीब 29 और आंवला में करीब 30 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। मुस्लिम वोटरों की सर्वाधिक निर्णायक स्थिति यादव बहुल संसदीय क्षेत्र बदायूं में है जहां उनकी संख्या करीब चार लाख है। 

पीलीभीत में ही बसपा ने सबसे सशक्त मुस्लिम उम्मीदवार अनीस अहमद उर्फ फूलबाबू को उतारा है जो कई बार विधायक रहने के साथ बसपा सरकार में मंत्री भी रहे थे। अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर पीलीभीत में मुस्लिम वोट नहीं बिखरा तो मंडल के बाकी संसदीय क्षेत्रों में भी उसका मतदान एकतरफा ही रहेगा।

सारे फैक्टरों पर भारी पड़ेंगे मोदी या नहीं
पीलीभीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैली हो चुकी है। यहां प्रधानमंत्री का संबोधन धर्म, राम मंदिर और तुष्टीकरण जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहा था। इसके अलावा उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर कांग्रेस पर भी निशाना साधा था। रैली में जुटी भीड़ ने भाजपा प्रत्याशी के लिए उम्मीद भी जताई है लेकिन यह मतदान और मतगणना से ही तय होगा कि मोदी का संबोधन इस संसदीय क्षेत्र में सारे मुद्दों पर भारी पड़ा या नहीं।

टूटफूट, भितरघात और असंतोष का असर
मंडल की पांचों सीटों पर मुख्य लड़ाई भाजपा और इंडिया गठबंधन के तहत मैदान में उतरी सपा के बीच मानी जा रही है। पीलीभीत में दोनों ही पार्टियां टूटफूट, भितरघात और असंतोष की आशंकाओं से जूझ रही हैं। पिछले चुनाव के बाद भाजपा में शामिल हुए एक बड़े नेता को शक की निगाहों से देखा जा रहा है। यह नेता खुद भी टिकट के दावेदार थे।

हाल ही में एक क्षत्रिय नेता को मंच से उतारने की वजह से भी असंतोष फैला हुआ है। सपा मुस्लिम अंसारी वोटरों की नाराजगी से जूझ रही है। कुछ पार्टी पदाधिकारियों पर भी प्रत्याशी के चुनावी गुब्बारे की हवा निकालने का आरोप लगाया गया है। उधर, बरेली में संतोष गंगवार का टिकट कटने और फिर मेयर की कथित टिप्पणी पर कुर्मी समाज नाराज है। बदायूं में भी भाजपा और सपा दोनों पार्टियों के अंदर कुछ इसी तरह की हलचल चल रही है। आंवला भी अछूता नहीं है। पीलीभीत में ही 19 अप्रैल को साबित हो जाएगा कि सपा और भाजपा इस पर काबू पाने में कामयाब हो पाईं या नहीं।

स्टार प्रचारकों का जादू चला या नहीं
पहले चरण के चुनाव वाली सीटों में शामिल पीलीभीत के प्रचार युद्ध में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की सभी इस संसदीय क्षेत्र में हो चुकी है। इसके बावजूद हर दिन कोई न कोई बड़ा नेता जितिन प्रसाद का चुनाव प्रचार करने पीलीभीत पहुंच रहा है। पीलीभीत में यह आम चर्चा है कि वरुण गांधी और मेनका गांधी के रहते भाजपा को इतना जोर पहले कभी नहीं लगाना पड़ा। 

पीलीभीत में मतदान के रुझान से ही यह पता चलने की उम्मीद है कि भाजपा के इतने जोर लगाने का क्या नतीजा निकला। समाजवादी पार्टी की ओर से पीलीभीत में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ही सभा हुई है। बसपा प्रमुख मायावती की चुनावी रैली का भी कार्यक्रम तय बताया जा रहा है।

क्या अहमियत रह गई है मुद्दों की चुनाव में
लोकसभा चुनाव 2024 से जो सबसे बड़ा जवाब मिलना है, वह यह है कि चुनावों में अब आम जनता के गैरधार्मिक मुद्दों की कोई अहमियत रह गई है या नहीं, बरेली मंडल में यह जवाब भी सबसे पहले पीलीभीत से ही मिलना है।

काफी दिलचस्प यह है कि बेरोजगारी, महंगाई, एमएसपी और भ्रष्टाचार जैसे कई मुद्दों को पीलीभीत की जनता के बीच भाजपा के ही सांसद वरुण गांधी काफी समय से उठाते रहे थे। अब उनका टिकट काट दिया गया है तो यह देखना और खास हो जाएगा कि जनता पर इसका कोई असर पड़ा या नहीं।

जातिगत समीकरण साधने की कोशिश
लोकसभा चुनाव में यह भी परखा जाना है कि इस बार लोगों ने धार्मिक आधार पर वोट करने में ज्यादा रुचि दिखाई या जातिगत आधार पर। हालांकि अब तक के चुनाव का माहौल साफ बता रहा है कि धार्मिक मुद्दों की गूंज के बीच प्रत्याशी पूरे दमखम से जातिगत मुद्दों को भी साधने में जुटे हुए हैं।

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