बदायूं: ग्रामीण क्षेत्रों में बने RRC सेंटर संचालन में रुचि नहीं दिखा रहे प्रधान और सचिव

- लाखों की लागत से बने आरआरसी सेंटर सफेद हाथी हो रहे साबित

बदायूं: ग्रामीण क्षेत्रों में बने RRC सेंटर संचालन में रुचि नहीं दिखा रहे प्रधान और सचिव

बदायूं, अमृत विचार। जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में रिसोर्स रिकवरी सेंटर (आरआरसी सेंटर) का निर्माण लाखों रुपए खर्च किया गया है। वजह सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। इनका संचालन करने में प्रधान और सचिव रुचि नहीं दिखा है। उनके द्वारा कर्मचारियों का मानदेय कहां से निकलेगा यह बात कहते हुए हाथ खड़े कर दिए गए हैं। ऐसे में पंचायती राज विभाग को इनका संचालन कराना एक चुनौती बन गया है। हालांकि इसका प्रयास किया जा रहा है। लेकिन सफलता मिलती नहीं दिख रही है। 

स्वच्छ भारत मिशन योजना के तहत जिले की 539 ग्राम पंचायतों को ओडीएफ प्लस में रखा गया है। इन गांवों में निकलने वाले कूड़े का निस्तारण करने के लिए रिसोर्स रिकवरी सेंटर बनाया गया है। इसके लिए ग्राम पंचायतों को 51 करोड़ की धनराशि भी आवंटित की जा चुकी है। करीब चार सौ से अधिक आरआरसी सेंटर का निर्माण पूरा हो चुका है। शेष में काम जारी है। जिन गांवों में रिसोर्स रिकवरी सेंटर बनकर तैयार हो चुके हैं। उनमें गांवों में रिसोर्स रिकवरी सेंटर बन चुके हैं। उनमें सोकपिट, खाद के गड्ढे भी बना दिए गए हैं। कूड़ा गाड़ी खरीदी जा चुकी है।  

सभी कार्य पूर्ण होने के बाद भी इनका संचालन अभी तक शुरू नहीं हो सका है। जबकि पंचायती राज अधिकारी द्वारा गांवों में पहुंचकर लोगों को जागरुक करने के साथ ही ग्राम प्रधान और सचिवों इनका संचालन शुरू करने को आदेशित किया जा चुका है। इसके बाद भी प्रधान और सचिवों ने संचालन से हाथ खड़े कर दिए हैं। उनके समक्ष आरआरसी सेंटर पर रखे जाने वाले कर्मचारियों का मानदेय निकालने को लेकर समस्या खड़ी है। समस्या का निदान न होने की दशा में उनका संचालन नहीं हो पा रहा है। 

ग्राम पंचायतों की आमदनी का जरिया बन सकते हैं आरआरसी सेंटर
सरकार का मानना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बनाए जा रहे आरआरसी सेंटर ग्राम पंचायतों की आमदनी का जरिया बन सकते हैं। गांवों में निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों से वर्मी कंपोस्ट और जैविक खाद बनाई जानी है। जिसका उपयोग खेतों में किया जाएगा। इन सेंटरों पर बनने वाली वर्मी कंपोस्ट और जैविक खाद की बिक्री करने से कर्मचारियों का मानदेय भी निकलेगा और ग्राम पंचायतों की आमदनी बढ़ेगी। लेकिन इन झंझटों से बचने के लिए प्रधान और सचिव इनका संचालन करने से बच रहे हैं। 

कई गांवों में संचालन के बाद बंद हुए सेंटर
डीपीआरओ के प्रयास से ग्राम पंचायत आरिफपुर नवादा और देहमी सहित आधा दर्जन से ग्राम पंचायतों में आरआरसी सेंटरों का संचालन शुरू कराया गया था। दस से 15 स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को लेकर घर-घर कचरा एकत्रित कराया गया। तथा जैविक और वर्मी कंपोस्ट का भी निर्माण हुआ। जितने दिनों इन सेंटर का डीपीआरओ द्वारा निरीक्षण किया गया उतने दिनों यह संचालित रहे। लेकिन उनके मुंह  फेरने के बाद यह सेंटर बंद हो गए। 

मुंह लगी रेवडी तो गुड़ कौन खाए
गांवों के विकास के लिए सरकार द्वारा हर वर्ष करोड़ों की धनराशि भेजी जाती है। इसके साथ ही ग्राम पंचायतें स्वयं अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार करें इसके लिए भी विभिन्न योजनाओं का संचालन प्रदेश सरकार कर रही है। परंतु प्रधानों और सचिव सरकार के प्रयासों पर पानी फेर देते हैं। ग्राम पंचायतों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए जो भी योजना शुरू की जाती है। उसके संचालन से हाथ खड़े कर देते हैं। बताया जा रहा है कि ग्राम प्रधानों और सचिवों का कहना है कि गांवों में विकास कार्य करने और उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए बजट सरकार द्वारा मिलता है तो अन्य कार्य क्यों किए जाएं। बिना काम के लिए धनराशि मिल रही है। अतिरिक्त प्रयास से क्या लाभ। ऐसे में यह कहावत सिद्ध होती है कि जब खाने के लिए रेवड़ी मिल रही है तो गुड़ को कौन हाथ लगाए। 

आरआरसी सेंटरों का संचालन शुरू कराने में दिक्कतें आ रही हैं। प्रधान और सचिव इनमें काम करने वाले कर्मचारियों का मानदेय कहां से निकलेगा यह बात कह हाथ खड़े कर दे रहे हैं। फिर भी प्रयास किया जा रहा है कि जहां भी इनका निर्माण कार्य पूरा हो गया है वहां इनका संचालन जल्द कराया जाएगा-श्रेया मिश्रा, डीपीआरओ।

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