जर्मन वैज्ञानिक का विशेष साक्षात्कार: 'अग्निहोत्र' में 12 किमी तक के वातावरण को शुद्ध करने की ताकत

जर्मन एसोसिएशन ऑफ होमा थेरेपी के अध्यक्ष डा. उलरिच बर्क जर्मनी से मिलक पहुंचे, अग्निहोत्र क्रिया करने से वातावरण की बड़ी मात्रा में होती शुद्धि, मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में अग्निहोत्र का इंटरनेशनल हेडक्वार्टर 

जर्मन वैज्ञानिक का विशेष साक्षात्कार: 'अग्निहोत्र' में 12 किमी तक के वातावरण को शुद्ध करने की ताकत

जर्मन एसोसिएशन ऑफ होमा थेरेपी के अध्यक्ष डा. उलरिच बर्क।

आशुतोष शर्मा, अमृत विचार।अग्निहोत्र को वैदिक संस्कृति में यज्ञ विधान का मूल तत्व कहा जाता है। ऐसी शोध की गई है कि अग्निहोत्र यज्ञ जीवमंडल में 12 किलोमीटर तक के वातावरण को शुद्ध करता है। अग्रिहोत्र को होमा थेरेपी नाम से भी जाना जाता है। 

शुक्रवार को जर्मन एसोसिएशन ऑफ होमा थेरेपी के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. उलरिच बर्क जर्मनी से रामपुर की तहसील मिलक के गांव क्रिमचा पहुंचे। यहां उन्होंने लोगों को अग्निहोत्र के लाभ गिनाए। अमृत विचार से साक्षात्कार के दौरान उन्होंने बताया, 44 वर्षों से अग्निहोत्र क्रिया को अपनाए हुए हैं। जिससे जीवन में अनेकों परिवर्तन हुए हैं। वहीं दुनिया के 100 देशों में अग्रिहोत्र को अपनाकर वातावरण को शुद्ध किया जा रहा है।

अग्निहोत्र क्रिया करने से वातावरण की बड़ी मात्रा में शुद्धि होती है। 1984 में वसंत परांजपे ने अग्निहोत्र को दुनियाभर में फैलाने का बीड़ा उठाया था। मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में 'होमा थेरेपी गोशाला' अग्निहोत्र का इंटरनेशनल हेडक्वार्टर है। इसे वसंत परांजपे के पौत्र सर्वजीत परांजपे संचालित करते हैं। यहां प्रत्येक वर्ष सोमयज्ञ होता है, जहां रूस, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, पौलेंड, जर्मनी, ब्राजील, पेरू, ऑस्ट्रिया, तुर्कीस्तान, अमेरिका, कोस्टारिका, पुर्तगाल, कजाकिस्तान, कनाडा, किरगीस जैसे देशों से विदेशी आते हैं।

अग्निहोत्र क्या है?
अग्निहोत्र एक वैदिक हवन पद्धति है। इस क्रिया को करने से प्रदूषण में कमी और वातावरण शुद्ध होता। जल संसाधनों की शुद्धि के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। अग्निहोत्र एक ऐसी हवन पद्धति है जिसमें समय भी कम लगता है तथा इसे आसानी से किया भी जा सकता है।

अग्निहोत्र के क्या लाभ हैं?
अग्निहोत्र से उत्पन्न होने वाले धुएं से 12 किमी तक के क्षेत्र में वनस्पतियों को वातावरण से पोषण द्रव्य मिलते हैं। वहीं अग्निहोत्र के भस्म का उपयोग कृषि और वनस्पतियों में करने से इसके उत्तम परिणाम दिखाई देते हैं। अग्निहोत्र करने वाले स्थान के आसपास अशुद्धि 20 मिनटों में शुद्ध हो जाती है।

अग्निहोत्र कैसे किया जाता है?
सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय भारतीय नस्ल की गाय के घी की कुछ बूंदों से सने दो चुटकी अक्षत (चावल) अग्नि में डाले जाते हैं। इसमें हवन के लिए तांबे के एक अर्ध पिरामिड आकार के पात्र में अग्नि प्रज्वलित की जाती है, जिसमें देसी नस्ल की गाय के गोबर से बने कंडों का ही इस्तेमाल किया जाता है। सूर्योदय के समय- 'सूर्याय स्वाहा सूर्याय इदम् न मम, प्रजापतये स्वाहा प्रजापतये इदम् न मम' व सूर्यास्त के समय- 'अग्नये स्वाहा अग्नये इदम् न मम, प्रजापतये स्वाहा प्रजापतये इदम् न मम’मंत्र का जाप किया जाता है।

अग्निहोत्र से क्या बीमारी को भी ठीक किया जा सकता है?
जी हां, अग्निहोत्र शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य में सुधार करता है। नकारात्मक ऊर्जाओं को निष्क्रिय करता है और सकारात्मक ऊर्जाओं को पुष्ट करता है। भोपाल में दिसंबर, 1984 में हुई गैस त्रासदी में लगभग 15,000 से अधिक लोगों की जान गई थी। कई लोग शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए थे। वहीं, कुशवाहा परिवार में प्रतिदिन सुबह और शाम अग्निहोत्र यज्ञ होता था। घटना के लगभग 20 मिनट के अंदर ही उनका घर और उसके आस-पास का वातावरण 'मिथाइल आइसो साइनाइड गैस' से मुक्त हो गया।

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