थम नहीं रही हिंसा
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर बीते करीब साढ़े तीन माह से जल रहा है। लोग डर और दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं। राज्य में जारी नस्लीय हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। पिछले कुछ दिनों की शांति के बाद एक बार फिर राज्य में हिंसा भड़क उठी है। पुलिस के मुताबिक उखरुल जिले के लिटन पुलिस स्टेशन के अंतर्गत थवई कुकी गांव में संदिग्ध मैतेई सशस्त्र बदमाशों और कुकी स्वयंसेवकों के बीच गोलीबारी हुई, जिसमें तीन कुकी युवक मारे गए।
ऐसे में हिंसा न रोक पाने के कारणों को लेकर सरकार पर सवाल उठने लाजमी हैं। विपक्ष लगातर पूछ रहा है कि केंद्र और राज्य सरकार हिंसा क्यों नहीं रोक पा रही हैं। उधर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा है कि हम मणिपुर में शांति के लिए प्रयास और प्रार्थना कर रहे हैं। हम काफी हद तक शांति बहाल करने की कोशिश में सफल हो रहे हैं। ध्यान रहे मणिपुर में हिंसा की रोकथाम के लिए पुलिस और सुरक्षाबल लगातार हर संभव प्रयास करने में जुटे हुए हैं। इसी क्रम में सुरक्षा बलों ने राज्य व्यापी अभियान चला रखा है।
बीते दिनों सुरक्षा बलों के तलाशी अभियान के दौरान हिंसा प्रभावित मणिपुर के कई जिलों से हथियार, कारतूस और बम बरामद हुए थे। गौरतलब है कि मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में 3 मई को पर्वतीय जिलों में आदिवासी एकजुटता मार्च के आयोजन के बाद झड़पें शुरू हुई थीं।
राज्य में हुई हिंसा में अब तक 160 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मैतेई समुदाय की है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है। वहीं, नगा और कुकी आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और यह राज्य के पर्वतीय जिलों में रहते हैं। जानकारों के मुताबिक मणिपुर की हिंसा सिर्फ दो ग्रुपों का झगड़ा नहीं है, बल्कि ये कई समुदायों से भी गहराई से जुड़ा है। ये कई दशकों से जुड़ी समस्या है।
जिसे अब तक सिर्फ सतह पर ही देखा जा रहा है। पिछले दिनों एक चर्चा में पूर्व सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे ने कहा था कि मणिपुर में जो हो रहा है उसमें विदेशी एजेंसियों की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता है। वास्तव में राज्य में स्थिति खतरनाक है और देश की एकता के लिए इसे नियंत्रित करना जरूरी है। सीमावर्ती राज्यों में अस्थिरता देश की समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अच्छा नहीं है।