विश्वास का माहौल बने
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में शांति बहाली के प्रयास सफल नहीं हो पा रहे हैं। मणिपुर में एक साल से ज्यादा समय से हिंसा जारी है। अब प्रदेश के जिरीबाम इलाके में फिर से हिंसा भड़क गई। सप्ताह की शुरुआत में इंफाल पश्चिम जिले में दो स्थानों पर लोगों पर बम गिराने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था। पिछले पांच दिनों में राज्य में हिंसा की घटनाओं में सात लोगों की मौत हुई है। हिंसा की ताजा घटनाओं के बाद सुरक्षा बढ़ा दी गई है। पिछले साल मई से मणिपुर में जारी जातीय संघर्षों में ड्रोन का इस्तेमाल नया था। सीमांत क्षेत्रों में ड्रोन रोधी प्रणाली तैनात की है।
मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में नगा समुदाय और मैदानी भागों में मैतेयी समुदाय निवास करता है। मैतेयी समुदाय अधिक विकसित है और राजनीतिक धरातल पर भी उसकी पकड़ अच्छी है। मणिपुर में इन दोनों समुदायों के लोगों के बीच तनाव का लंबा इतिहास रहा है। मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मैतेई है, जिनके पूर्वज म्यांमार और आसपास से आने के बावज़ूद यहां का मूल निवासी होने का दावा करते हैं। इनका बड़ा हिस्सा हिंदू धर्म के प्रति आस्थावान है। लगभग 16 प्रतिशत मैतेई पारंपरिक सनमाही धर्म का पालन करते हैं। इनमें 8 फीसद वो लोग भी हैं, जो इस्लाम धर्म को मानते हैं। 1.6 प्रतिशत मैतेई ईसाई भी हैं।
मणिपुर में जारी हिंसा ने लंबे समय से चली आ रही शिकायतों और दरारों को उजागर किया है जो दशकों से इस क्षेत्र को परेशान कर रही हैं। भूमि स्वामित्व, जातीय पहचान और राजनीतिक प्रतिनिधित्व से जुड़े मुद्दों ने तनाव और संघर्ष को बढ़ावा दिया है, जिससे अंतर-समुदाय विभाजन और अविश्वास बढ़ा है। पिछले दिनों संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मणिपुर की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इतने लंबे समय से वहां अशांति का वातावरण है , मगर उसे हल करने की कोशिश नहीं की गई। इसे लेकर विपक्षी भी सवाल उठाते रहे हैं।
मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसा एवं अशांति के कारणों और परिणामों का परीक्षण करना जरूरी है। संघर्ष के मूल कारणों को संबोधित करके, संवाद, समझ और समावेशी विकास को बढ़ावा देकर, मणिपुर और उसके विविध समुदायों के लिए अधिक शांतिपूर्ण और समावेशी भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। सरकार को क्षेत्र के लोगों में स्वामित्व और अपनेपन की भावना को बढ़ावा देने के लिए विश्वास माहौल बनाने के प्रयास करने चाहिए।