सावन विशेष : शिव को प्रिय है नैमिषारण्य, देवदेवेश्वर नाम से हैं विराजमान - मथानी छूने से पूरी होती है मुराद 

सावन विशेष : शिव को प्रिय है नैमिषारण्य, देवदेवेश्वर नाम से हैं विराजमान - मथानी छूने से पूरी होती है मुराद 

जगमोहन मिश्र / सीतापुर, अमृत विचार। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 85 किलोमीटर दूरी पर सीतापुर जिले में  विश्व प्रसिद्ध तीर्थ नैमिषारण्य है। मान्यता है कि इसी स्थान पर 88 हजार ऋषियों ने तपस्या की थी और आप विश्व के चाहें सभी तीर्थ कर आएं लेकिन नैमिष की धरती का स्पर्श किये बिना आप पुण्य के भागी नहीं बन सकते हैं। यहाँ के कण -कण में ईश्वर का वास है। साल के सभी महीनों में यहाँ दुनिया भर से लाखों भक्त आते हैं। आज आपको हम यहाँ के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका जिक्र साधारण रूप से कहीं नहीं मिलेगा।  

नैमिष धाम में शिव जी का पवित्र देवदेवेश्वर धाम रहस्यों से भरा हुआ है। वायु देवता द्वारा स्थापित इस मंदिर में श्रावण मास पर्यन्त लाखों शिव भक्त  भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए आते हैं। अद्भुद रहस्यों को समेटे हुए  मंदिर का शिवलिंग द्वापर युग का बताया जाता है। मंदिर में रखी सीता की मथानी को छूने से मनोकामना पूरी होने की मान्यता भी है। खास बात यह कि इस शिव मन्दिर में नंदी और गणेश नहीं है।

देवदेश्वर धाम सीतापुर-हरदोई रोड पर आदिगंगा गोमती किनारे स्थित है। सीता अशोक वाटिका व पंचवटी के साथ आम नीम बरगद सहित बहुत से खजूर के वृक्ष हरियाली बिखेरे हुए हैं। प्रकृति की सुंदरता को समेटे आदि गंगा गोमती का कल-कल नाद अनायास ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मंदिर का शिवलिंग द्वापर युग का है। देवदेवेश्वर का जिक्र वायुपुराण सहित अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। हिन्दू धर्मावलम्बियों का मानना है कि वनवास के दौरान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम व माता सीता ने इस मंदिर में पूजा की थी। ऐसी मान्यता है कि मंदिर की स्थापना स्वयं वायु देवता ने की थी। यहां पर रोजाना अन्य प्रांतों के साथ ही क्षेत्र के हजारों श्रद्धालु देवदेश्वर धाम में पूजन करने आते हैं। भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के बाद सीता की मथानी छूकर मनोकामना करते हैं। पहले यह मथानी मंदिर परिसर में पड़ी थी। उस समय श्रद्धालु मथानी को उठाकर मन्नतें मांगते थे। उठाने और रखने में मथानी टूटने लगी थी। ऐसे में मंदिर के पुजारी ने मथानी को जाम करवा दिया। 

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भगवान शिव को प्रिय है तीर्थ नैमिषारण्य 
स्कंद पुराण के अनुसार एक बार श्री सूत जी से ऋषियों ने पूछा शिव जी के प्रिय निवास स्थान बतलाइए तब सूत जी ने कहा था यही प्रश्न पूर्व काल में एक बार मार्कंडेय ने नंदीश्वर से किया था। तब नंदीश्वर ने बताया कि काशी के बाद भगवान शिव को तीर्थ नैमिषारण्य बहुत प्रिय है। यहां पर त्रिपुरासुर का वध करने वाले देवाधिदेव महादेव देवदेवेश्वर नाम से विराजमान हैं। 

शिव को प्रसन्न करने के लिए नंदीश्वर ने नैमिष में तप किया था 
कूर्मपुराण में वर्णन आया है कि नैमिष तीर्थ में आदि गंगा गोमती के किनारे शिलाद के पुत्र नंदीश्वर ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। उन्होंने बताया कि एक बार नंदी अपने आश्रम में थे तभी दो दिव्य ऋषि उनके आश्रम में आए सभी को दीर्घायु का आशीर्वाद दिया परन्तु नंदी को नहीं दिया।तब शिलाद ऋषि ने ऋषियों से कारण पूछा तो ऋषियों ने बताया कि आपके पुत्र की आयु अल्प है ।इस कारण हम इन्हें दीर्घायु का आशीर्वाद नहीं दे सकते तब नंदीश्वर ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इसी स्थान पर तप किया था। जिसके बाद नंदी भगवान शिव के प्रमुख गण बन गए। - डाक्टर अंबिका प्रसाद शास्त्री 

रुद्र क्षेत्र के नाम से जाना जाता है यह स्थान 
नैमिष के पंडित विवेक द्विवेदी बताते हैं कि वायु पुराण के अनुसार यह  स्थान रुद्र क्षेत्र के नाम से विख्यात है।
स्वयं भगवान शंकर लिंग रूप में अवतरित हुए है।।पुरातन कथानक के अनुसार जहां बाबा देवदेवेश्वर विराजमान है वह एक टीला हुआ करता था। उस टीले पर आकर गायों का दूध अपने से भगवान पर गिरने लगता था उस स्थान को खोदने पर बाबा देवदेवेश्वर लिंग रूप में भक्तो के दर्शनार्थ अवतरित हुए। बाबा सबको इच्छित फल देते है।


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