बरेली: बिना जमीन चल दिए सपनों का महल बनाने... अब हकीकत पड़ रही भारी

पहले से था उद्योगों के लिए जमीन न मिलने का अंदेशा, इसीलिए लागू की प्लेज योजना मगर वह भी हो गई नाकाम

बरेली: बिना जमीन चल दिए सपनों का महल बनाने... अब हकीकत पड़ रही भारी

अनुपम सिंह/बरेली, अमृत विचार। इन्वेस्टर्स समिट के जरिए जिस वक्त प्रदेश में लाखों करोड़ के औद्योगिक निवेश की योजना बनाई जा रही थी, उसी वक्त सरकार को अंदेशा था कि जमीन का इंतजाम न हुआ तो ये सारी कवायद धरी रह जाएगी। इसी कारण पिछले साल 50 एकड़ तक क्षेत्रफल के निजी औद्योगिक पार्क विकसित करने वाले उद्यमियों को प्रति एकड़ 50 लाख रुपये की विकास लागत देने की घोषणा करते हुए प्लेज नाम की योजना लागू की गई थी लेकिन यह धनराशि कर्ज के रूप में देने के साथ ब्याज की शर्त भी जोड़ दिए जाने से उद्यमी पीछे हट गए। इसी कारण न बरेली जिले में इस योजना के तहत एक भी प्रस्ताव दिया गया न मंडल के बाकी जिलों में।

उद्यमियों का मानना है कि इन्वेस्टर्स समिट के जरिए यूपी में बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण के साथ लाखों करोड़ के निवेश और लाखों रोजगार का हसीन सपना तो देखा गया लेकिन इस प्रक्रिया में सरकार ने अपना जोखिम और जिम्मेदारियां कम और उनके लिए ज्यादा रखा। जो सहूलियत उन्हें देने का वादा किया गया था, अफसरशाही ने वे भी उन्हें मिलने नहीं दीं। इन्वेस्टर्स समिट के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए लागू की गई योजना प्लेज भी इसी का शिकार होकर रह गई। अब जमीन का इंतजाम न होने की वजह से उद्योगों के प्रस्ताव क्रियान्वित नहीं हो पा रहे हैं। अफसरशाही का रवैया देखकर तमाम उद्यमी अपने प्रस्तावों से पीछे हट रहे हैं। औद्योगिकीकरण के प्रस्तावों को सहारा देने के लिए शुरू की गई योजना प्लेज का कितना बुरा हाल है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक साल गुजर जाने के बावजूद पूरे यूपी में सिर्फ तीन प्रस्ताव मिले हैं।

सरकार ने की आर्थिक मदद की घोषणा मगर कर्ज के रूप में, वह भी ब्याज के बोझ के साथ
रियल एस्टेट कारोबार में जिस तरह फ्लैट दिए जाते हैं, उसी तर्ज पर यह योजना वित्तीय वर्ष 2022-23 में शुरू कर इसे प्रमोटिंग लीडरशिप इन डेवलपिंग ग्राेथ इंजन्स यानी प्लेज नाम दिया गया था। योजना के तहत उद्यमी को 10 से 50 एकड़ की जमीन पर प्राइवेट पार्क (निजी औद्योगिक क्षेत्र) विकसित करना है। इसके लिए सरकार उसे प्रति एकड़ 50 लाख रुपये की विकास लागत देगी। यह पैसा कर्ज के रूप में मिलना था। इस पर उद्यमी को तीन साल तक एक प्रतिशत का साधारण दर और फिर छह साल तक छह प्रतिशत की दर से ब्याज देना होगा। यह योजना उद्यमियों को रास नहीं आई और मंडल में इसके तहत एक भी प्रस्ताव नहीं मिल पाया।

योजना नहीं चली, जस की तस रह गई समस्या
इस योजना के जरिए सरकार का उद्देश्य औद्योगिकीकरण में जमीन की कमी आड़े आने की समस्या को दूर करना था। फरवरी में इन्वेस्टर्स समिट से पहले इस योजना को लागू कर मंशा थी कि समिट में एमओयू साइन करने वालों के लिए जमीन का इंतजाम हो सके। निजी औद्याेगिक क्षेत्र विकसित कर उनमें उद्यमियों को प्लॉट बेचे जाने थे। यह योजना कारगर नहीं हो सकी और जैसा कि पहले से अंदेशा था उद्योग के लिए निवेश के प्रस्ताव जमीन संकट के कारण अटक गए हैं।

ये भी दिक्कत...
कहा जा रहा है कि प्लेज योजना में कई और विसंगतियां हैं जिनकी वजह से उद्यमियों ने इसमें दिलचस्पी नहीं ली। एक निजी पार्क विकसित करने के लिए उद्यमी को 10 से 50 एकड़ जमीन की जरूरत पड़ेगी। इतनी जमीन का एक साथ इंतजाम करना ही बड़ी दिक्कत है। औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो न हो, मूलधन सरकार को लौटाने का बोझ सिर पर बना रहेगा। इसके अलावा कई और दिक्कतें बताई जा रही हैं।हालांकि हाल ही में मंडल की कमान संभालने वाले संयुक्त उपायुक्त सर्वेश्वर शुक्ला ने इस योजना के क्रियान्वयन के लिए नए सिरे से प्रयास शुरू किए हैं। आईआईए के साथ कई बड़े उद्यमियों से संपर्क किया है। कहा जा रहा है कि बात कुछ आगे बढ़ी है लेकिन अंजाम तक पहुंचेगी या नहीं, यह अभी अनिश्चित है।

एक साल पहले लागू हुई प्लेज योजना के तहत बरेली मंडल से एक भी प्रस्ताव नहीं है। जागरूकता के साथ प्रचार-प्रसार की भी कमी रही है। औद्योगिकीकरण के लिए जमीन की दिक्कत दूर करने के लिए सरकार की यह अच्छी योजना है। आईआईए और उद्यमियों से संपर्क के बाद सकारात्मक जवाब मिला है। प्रस्ताव होने की उम्मीद है - सर्वेश्वर शुक्ला, संयुक्त आयुक्त बरेली मंडल।

इस योजना में कई तरह की विसंगतियां हैं। बड़ा सवाल है कि उद्यमी एक साथ इतनी जमीन कहां से लाए। सरकार विकास के लिए पैसा तो देगी लेकिन बाद में ब्याज के साथ मूलधन वापस करना पड़ेगा। कोई सब्सिडी मिलनी नहीं है, इसीलिए उद्यमी इस योजना में प्रस्ताव देने से कतरा रहे हैं - विमल रेवाड़ी, मंडलीय चेयरमैन आईआईए।

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