भारत उन तीन देशों में शामिल जहां कोविड के बाद टीकों का महत्व बना रहा या उनमें सुधार हुआ: यूनिसेफ
नई दिल्ली। यूनिसेफ का कहना है कि भारत उन 55 देशों में शुमार है, जहां कोविड-19 महामारी के बाद टीकों के महत्व की धारणा दृढ़ बनी रही या इसमें सुधार हुआ। यूनिसेफ ने कहा कि हालांकि, दुनिया के 27 लाख बच्चे भारत में रहते हैं, जिन्हें एक भी नियमित खुराक नहीं दी जा सकी है। यूनिसेफ के स्वास्थ्य विशेषज्ञ विवेक वीरेंद्र सिंह ने कहा,महामारी के दौरान बिना खुराक वाले बच्चों की संख्या में 30 लाख हो गयी थी, लेकिन भारत में 2020 और 2021 के बीच ऐसे बच्चों का आंकड़ा घटकर 27 लाख आ गया, जो मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता और निरंतर जागरूकता अभियान के कारण सक्षम हुआ है।
उन्होंने कहा, इनमें सरकार द्वारा शुरू चौथा गहन मिशन इन्द्रधनुष (आईएमआई) समेत विभिन्न अभियान और व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का निरंतर प्रावधान शामिल हैं। यूनिसेफ ने टीकाकरण विषय पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘दुनिया के बच्चों की स्थिति- 2023’ में कहा है कि कोविड-19 महामारी के दौरान 55 देशों में से 52 देशों में बच्चों के लिए टीकों के महत्व की सार्वजनिक धारणा में कमी आई है।
रिपोर्ट में कहा गया, प्रत्येक बच्चे के लिए टीकाकरण से पता चलता है कि महामारी की शुरुआत के बाद दक्षिण कोरिया, पापुआ न्यू गिनी, घाना, सेनेगल और जापान में बच्चों के लिए टीकों की महत्ता को लेकर धारणा में एक तिहाई से अधिक की कमी आई है। ‘द वैक्सीन कॉन्फिडेंस प्रोजेक्ट’ द्वारा एकत्र और यूनिसेफ द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक चीन, भारत और मैक्सिको ही ऐसे देश थे, जहां आंकड़ों से संकेत मिला कि टीकों के महत्व को लेकर धारणा दृढ़ है या इसमें सुधार हुआ है।
यूनिसेफ ने कहा, अधिकांश देशों में, 35 वर्ष से कम उम्र के पुरुषों और महिलाओं में महामारी की शुरुआत के बाद बच्चों के टीकों को लेकर विश्वास की कमी थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि अध्ययन किए गए 55 देशों में से लगभग आधे देशों में 80 प्रतिशत से अधिक प्रतिभागियों ने टीकों को बच्चों के लिए महत्वपूर्ण तो माना, इसके बावजूद बच्चों को टीके दिये जाने को लेकर उनका भरोसा डिगा हुआ था। हालांकि, रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि कई कारकों से पता चलता है कि टीके को लेकर हिचक बढ़ती जा रही है और इन कारकों में महामारी से निपटने पर अनिश्चितता, भ्रामक जानकारी तक बढ़ती पहुंच, विशेषज्ञ सूचनाओं को लेकर विश्वास में कमी तथा राजनीतिक ध्रुवीकरण शामिल हैं।
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल ने कहा, महामारी के चरम पर, वैज्ञानिकों ने तेजी से ऐसे टीके विकसित किए, जिन्होंने अनगिनत लोगों की जान बचाई, लेकिन इस ऐतिहासिक उपलब्धि के बावजूद, सभी प्रकार के टीकों के बारे में भय और गलत सूचना वायरस की तरह प्रसारित हुई। उन्होंने कहा, ‘ये आंकड़े चिंताजनक चेतावनी संकेत हैं।’ रसेल ने कहा कि नियमित टीकाकरण को लेकर विश्वास की भावना कमजोर होती है तो मौतों की अगली लहर खसरा, डिप्थीरिया या अन्य रोकथाम-योग्य बीमारियों वाले बच्चों की हो सकती है।
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