दिल्ली के शिक्षा विभाग पर झूठे आरोप लगा रहे उपराज्यपाल, शिक्षकों का मजाक उड़ा रहे: सिसोदिया

दिल्ली के शिक्षा विभाग पर झूठे आरोप लगा रहे उपराज्यपाल, शिक्षकों का मजाक उड़ा रहे: सिसोदिया

नई दिल्ली। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने शनिवार को उपराज्यपाल वी के सक्सेना पर निशाना साधते हुए उन पर शिक्षा विभाग के खिलाफ झूठे आरोप लगाने और राष्ट्रीय राजधानी में कार्यरत शिक्षकों का मजाक उड़ाने का आरोप लगाया। सिसोदिया ने सक्सेना को लिखे पत्र में कहा कि उपराज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शुक्रवार को भेजा गया पत्र राजनीतिक मकसद से लिखा गया था और शिक्षा विभाग के खिलाफ उनके झूठे आरोप दिल्ली के छात्रों और शिक्षकों का अपमान हैं। 

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शिक्षा विभाग का कार्यभार संभाल रहे सिसोदिया ने कहा, उपराज्यपाल ने राजनीतिक मकसद से पत्र लिखा और कहा कि दिल्ली के शिक्षा विभाग में कोई काम नहीं किया गया है। उनके आरोप दिल्ली के छात्रों और शिक्षकों का अपमान हैं। मैं उपराज्यपाल से अनुरोध कर रहा हूं कि वह हमारे उन शिक्षकों के काम का मजाक न उड़ाएं, जिन्होंने विभाग में बेहतरीन काम किया है। सक्सेना ने केजरीवाल को शुक्रवार को लिखे पत्र में शहर के शिक्षा विभाग को लेकर कई मामले उठाकर दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी। 

सक्सेना ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 2012-2013 में सरकारी स्कूलों में औसत उपस्थिति 70.73 प्रतिशत थी, जो साल दर साल लगातार गिरती गई और 2019-2020 में घटकर 60.65 प्रतिशत तक पहुंच गई। सिसोदिया ने उपराज्यपाल के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़े झूठे हैं और उन्होंने अपने बयान से राष्ट्रीय राजधानी की पूरी शिक्षा प्रणाली को बदनाम किया है। 

उन्होंने कहा, उपराज्यपाल ने आरोप लगाया है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या 16 लाख से घटकर 15 लाख रह गई है, जबकि हकीकत यह है कि छात्रों की संख्या बढ़कर 18 लाख पर पहुंच गई है। हमारे शिक्षा विभाग ने स्कूलों के बुनियादी ढांचे में भी बदलाव किया है। ‘टेंट (तम्बू) वाले स्कूल’ अब ‘टैलेंट (प्रतिभा) वाले स्कूल’ में बदल गए हैं। वहीं, केजरीवाल ने सोशल मीडिया पर कहा कि दिल्ली के शिक्षकों, छात्रों और उनके माता-पिता ने मिलकर शहर की शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए पिछले सात साल में कड़ी मेहनत की है। मुख्यमंत्री ने कहा, उपराज्यपाल को शिक्षा प्रणाली का अपमान करने के बजाय उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। 

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