तवांग पर घमासान! जानिए कौन है दलाई लामा, क्या हैं उनका चीन कनेक्शन
नई दिल्ली। तिब्बतियों के सबसे बड़े धर्मगुरु दलाई लामा हैं। जिन का असली नाम ल्हामो दोंडुब है। तिब्बती मान्यता के मुताबिक, दलाई लामा को बोधिसत्व यानी बौद्ध धर्म का संरक्षक माना जाता है। बौद्ध धर्म में बोद्धिसत्व ऐसे लोग होते हैं तो जो मानवता की सेवा के लिए फिर से जन्म लेने का निश्चय लेते हैं।
दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को नार्थ तिब्बत के आमदो स्थित एक गांव में हुआ था। जिसे तकछेर के नाम से भी जाना जाता है। ल्हामो दोंडुब की उम्र जब सिर्फ 2 साल थी तो उसी समय उन्हें 13वें दलाई लामा, थुबतेन ग्यात्सो का अवतार मान लिया गया था। इसके साथ ही उन्हें 14वां दलाई लामा घोषित कर दिया गया।
दलाई लामा जब 6 साल के थे तो उन्हें मठ की शिक्षा दी गई। वर्ष 1959 में जब दलाई लामा 23 वर्ष के थे तो उन्होंने ल्हासा में अपने फाइनल एग्जाम को ऑनर्स के साथ पास किया। 29 मई 2011 तक तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष रहे थे। इस दिन उन्होंने अपनी सारी शक्तियां तिब्बत की सरकार को दे दी थीं और आज वह सिर्फ तिब्बती धर्मगुरु हैं।
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1962 की भारत-चीन की जंग और दलाई लामा का चीन कनेक्शन
साल 1954 में दलाई लामा ने चीन के राष्ट्रपति माओ त्से तुंग और दूसरे चीनी नेताओं से शांति वार्ता के लिए बीजिंग गए थे साल 1959 में चीन की सेना ने ल्हासा में तिब्बत के लिए जारी संघर्ष को कुचल दिया। और तिब्बत वा कब्जे का ऐलान कर दिया। मार्च 1959 में दलाई लामा चीनी सेना से बचकर भारत में दाखिल हुए। वो सबसे पहले अरुणाचल प्रदेश के तवांग और फिर 18 अप्रैल को असम के तेजपुर पहुंचे बाद में लामा हिमाचल प्रदेश की धर्मशाला में रहने लगे।
दलाई लामा के भारत आने को आज भी दोनों देशों के रिश्तों में एक अहम और नाजुक मोड़ माना जाता है। चीन ने उस समय दलाई लामा को शरण दिए जाने पर भारत का कड़ा विरोध किया था। चीन उस समय मानता था कि तिब्बत में उसके शासन के लिए भारत सबसे बड़ा खतरा है। इस के चलते वर्ष 1962 में चीन और भारत के बीच युद्ध की यह एक अहम वजह थी। इसी का बदला लेने के लिए चीन ने भारत पर 1962 में हमला किया था।
चीन कहता है अलगाववादी
तवांग वो जगह है जहां पर सन् 1683 में छठे दलाई लामा का जन्म हुआ था। ये जगह तिब्बती बौद्ध धर्म का केंद्र है। शांति का नोबल हासिल करने वाला दलाई लामा आज भी अरुणाचल प्रदेश और तवांग को भारत का हिस्सा करार देते हैं तो चीन इसे दक्षिणी तिब्बत करार देता है। इस वजह से चीन दलाई लामा को एक अलगाववादी नेता मानता है। वो कहता है कि दलाई लामा भारत और चीन की शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।
वर्ष 2003 में हालांकि दलाई लामा ने तवांग को तिब्बत का हिस्सा करार दिया और अपने लिए विवाद मोल ले लिया था। साल 2008 में उन्होंने अपनी भूल को सुधारा और मैकमोहन रेखा पहचाना। इसके साथ ही उन्होंने तवांग को भारत का हिस्सा करार दे दिया।
दलाई लामा अमेरिका से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक तिब्बत की आजादी और यहां की शांति की अपील करते रहते हैं। उनकी मांग है कि पूरे तिब्बत को एक शांति क्षेत्र में बदला जाए। चीन की जनसंख्या स्थानातंरण की पॉलिसी को अब छोड़ दिया जाए क्योंकि यह तिब्बतियों के अस्तित्व के लिए खतरा है।
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