श्राद्ध तर्पण से समाप्त हो जाता है कुंडली में लगा पितृदोष, पं. संतोष जी महाराज बता रहे हैं सही विधि

सुल्तानपुर , अमृत विचार। भारत देश महान यूं ही नहीं कहा जाता है। हम ही ऐसे हैं जो अपने पूर्वजों को देवता का दर्जा देते है। जिस प्रकार से हम नवरात्रि में नौ दिन देवी जी की आराधना करते हैं वैसे ही 15 दिन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष पितृ पक्ष में हम अपने पूर्वजों …

सुल्तानपुर , अमृत विचार। भारत देश महान यूं ही नहीं कहा जाता है। हम ही ऐसे हैं जो अपने पूर्वजों को देवता का दर्जा देते है। जिस प्रकार से हम नवरात्रि में नौ दिन देवी जी की आराधना करते हैं वैसे ही 15 दिन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष पितृ पक्ष में हम अपने पूर्वजों की पूजा आराधना करते हैं।

समस्त सनातन धर्मावलंबी पूर्ण मनोयोग के साथ 15 दिन तक पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ अपने परिवार के पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पार्वण श्राद्ध, त्रिपिंडी श्राद्ध, नारायण बलि श्राद्ध, श्राद्ध तर्पण संस्कार ब्राह्मण भोजन आदि शुभ कर्म करते हैं। भदैंया क्षेत्र के सौराई गांव के निवासी कथा व्यास पं. संतोष जी महाराज के अनुसार कुंडली में लगा हुआ पितृदोष व्यक्ति के जीवन में काफी अड़चनें पैदा करता है, जिससे व्यक्ति का जीवन तमाम संकटों में घिर जाता है। परंतु पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध तर्पण पिंडदान तिलांजलि आदि क्रिया करने से कुंडली में लगा हुआ पितृ दोष समाप्त हो जाता है और व्यक्ति का जीवन खुशहाल हो जाता है।

पित्र पक्ष में कैसे करें प्रतिदिन श्राद्ध कर्म
श्राद्धकर्ता को चाहिए कि वह प्रतिदिन स्नान करने के बाद बाया घुटना मोड़कर दक्षिण मुख बैठ जाए। दक्षिण की तरफ मुख करके यज्ञोपवीत को अपसव्य करें। फिर दोनों हाथ की अनामिका अंगुली में पवित्री धारण करें। जल में दूध जो चावल तिल चंदन डालें। कुश मोटक को हाथों में लेकर अंजलि में जल भरकर दाहिने हाथ के अंगूठे के सहारे तीन अंजलि जल मृत आत्मा की शांति हेतु प्रदान करें। फिर कुश और पवित्री को निकाल कर यज्ञोपवीत को सव्य करके स्नान कर लें।

पिंड दान कैसे करें
श्राद्ध करता को चाहिए यदि वह प्रतिदिन पिंडदान क्रिया करने में अपने आप को तैयार नहीं कर पा रहा है तो जिस दिन दिवंगत व्यक्ति की तिथि आए, उस दिन पिंडदान क्रिया अवश्य करें। किसी विद्वान वैदिक ब्राह्मण को बुलाकर पूर्ण मनोयोग के साथ पूर्वजों की शांति के लिए जौ के आटे को गूंथकर तैयार करें। फिर पलाश के पत्ते पर कुश का आसन लगाकर पितृ तीर्थ मुद्रा में पिंड प्रदान करें। फिर पिंड पर घी, दूध, दही, शहद आदि सामग्री चढ़ाएं। उसके उपरांत ब्राह्मण, गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा को भोजन कराएं। श्राद्ध कर्म विधान में इसी क्रिया को पंचबलि क्रिया कहते हैं। श्राद्ध तर्पण के बाद ब्राह्मण को दक्षिणा वस्त्र आदि सामग्री प्रदान कर प्रणाम करें और ब्राह्मण से आशीर्वाद प्राप्त

मृतक आत्मा की तिथि का ज्ञान न होने पर कैसे करें श्राद्ध
सुहागन स्त्री की मृत्यु की तिथि यदि ज्ञात न हो तो नवमी तिथि में उस आत्मा की शांति हेतु श्राद्ध करना चाहिए। नारायण बलि श्राद्ध व त्रिपिंडी श्राद्ध क्रिया घर में अकाल मृत्यु को प्राप्त हुई जीव आत्मा की शांति के निमित्त चतुर्दशी को करना चाहिए। संत, महात्मा, सन्यासी आदि का श्राद्ध कर्म द्वादशी तिथि में करना चाहिए। जाने अनजाने में जो हमारे अपने रहे हो जिनका स्मरण न होने पर उनकी श्राद्ध क्रिया अमावस्या को करनी चाहिए।

ये तिथियां महत्वपूर्ण
इस वर्ष पितृपक्ष का आरंभ 11 सितंबर पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के साथ हो गया है। समापन 25 सितंबर को उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के साथ हो रहा है। विशेषकर पंचमी का श्राद्ध 15 सितंबर को, नवमी का श्राद्ध 19, द्वादशी का श्राद्ध 22 और सर्वपितृ अमावस्या 25 सितंबर के दिन होगी।

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