फिर भी बेहतर

पूरी दुनिया अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध और महामारी ने वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में अनिश्चितता पैदा कर दी है। देशों में मुद्रास्फीति, जिसमें खाद्य मुद्रास्फीति भी शामिल है अप्रत्याशित रूप से बहुत ऊंची चल रही है। आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हैं। मांग एवं पूर्ति में अंतर बढ़ा है। इस भू-राजनैतिक अस्थिरता और …
पूरी दुनिया अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध और महामारी ने वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में अनिश्चितता पैदा कर दी है। देशों में मुद्रास्फीति, जिसमें खाद्य मुद्रास्फीति भी शामिल है अप्रत्याशित रूप से बहुत ऊंची चल रही है। आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हैं। मांग एवं पूर्ति में अंतर बढ़ा है। इस भू-राजनैतिक अस्थिरता और गंभीर वैश्विक परिस्थितियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है।
भारत जैसे उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं बल्कि कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं भी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुई हैं। डॉलर के इस तरह मजबूत होने से मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ रहा है और अंतर्राष्ट्रीय बाजार से कर्ज लेना महंगा हो रहा है। गौरतलब है कि इस सप्ताह अमेरिकी डॉलर की दर 80 रुपये को पार कर गई और बाजार विश्लेषकों का अनुमान है कि आने वाले महीनों में रुपया डॉलर के मुकाबले 82 रुपये तक हल्का पड़ सकता है।
शुक्रवार को रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने कहा कि वैश्विक परिस्थतियों का भारत की मुद्रा पर प्रभाव अपेक्षाकृत हल्का है। उन्होंने कहा कि इसका मुख्य कारण है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत और अखंडित है। इसी के चलते अर्थव्यवस्था की गतिविधियां धीरे-धीरे सुधर रही हैं। मुद्रास्फीति में भी स्थिरता आ रही है। भारत के विदेशी ऋण का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के साथ अनुपात कम हो रहा है तथा विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त है।
यह मामूली बात नहीं है कि वैश्विक मंदी की चुनौतियों के बीच 2021-22 में भारत में एफडीआई में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2021-22 में 83.57 अरब डालर का एफडीआई आया, जबकि 2020-21 में 81.97 अरब डालर का एफडीआई आया था। जी-20 देशों में भारत सबसे तेज गति से आर्थिक विकास करने वाला देश है और देश में अब तक का सबसे ज्यादा पूंजी निवेश हुआ है।
विडंबना है कि मूल्य वृद्धि के मोर्चे पर हमारी अर्थव्यवस्था विफल हुई है। ऐसा भी नहीं है कि सरकार द्वारा मूल्य वृद्धि की समस्या को नियंत्रित करने के प्रयास न किए गए हों। विविध स्तरों पर प्रयास किए जाते रहे हैं। मूल्य वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक भी प्रयत्नशील रहता है।
मूल्य वृद्धि को रोकने के लिए ठोस पहल की आवश्यकता है। इसके लिए पूंजी के बहिर्गमन को रोका जाना आवश्यक है। भारतीय अर्थव्यवस्था को आवश्यकताओं की संतुष्टि कसौटी पर भी खरा उतरना होगा। अर्थव्यवस्था की चुनौतियों से निपटने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान और मेक इन इंडिया को सफल बनाने की जरूरत है।