बरेली: हिंदु-मुस्लिमों की आस्था का केंद्र शीतला देवी मंदिर, पांडवों ने की थी यहां मां की उपासना

बरेली, अमृत विचार। बरेली यानी नाथ नगरी। यहां महज भोलेनाथ के सिद्धस्थल ही नहीं, यहां मां आदिशक्ति के सिद्धपीठ भी हैं। जिसमें नरियावल स्थित मां शीतला माता का मंदिर सबसे प्राचीन और प्रमुख है। कई वर्षों से नरियावल स्थित माता शीतला के मंदिर परिसर में गुप्त नवरात्र के अवसर पर मेला लगता है। यह मेला …
बरेली, अमृत विचार। बरेली यानी नाथ नगरी। यहां महज भोलेनाथ के सिद्धस्थल ही नहीं, यहां मां आदिशक्ति के सिद्धपीठ भी हैं। जिसमें नरियावल स्थित मां शीतला माता का मंदिर सबसे प्राचीन और प्रमुख है।
कई वर्षों से नरियावल स्थित माता शीतला के मंदिर परिसर में गुप्त नवरात्र के अवसर पर मेला लगता है। यह मेला 15 दिन चलता है, जिसमें आस पास के गांवों के ग्रामीणों के अतिरिक्त दूर-दराज के जनपदों से भी श्रद्धालु मां के दर्शन और पूजन को आते हैं। बरेली शहर के भी तमाम देवी भक्त यहां दर्शनों को आते हैं। इस बार के मेले का समापन सावन महीने के शुरू होने से एक दिन पहले यानी 13 जुलाई (बुधवार) को हो रहा है। ऐसे में हजारों भक्तों का हुजूम यहां उमड़ेगा। मेले में कई दुकानें भी लगी हैं। जहाँ भक्त अपने जरुरत के सामनों की भी खरीदारी करते हैं।
मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान सबसे पहले यहां पर पांडवों ने मां शीतला की पूजा अर्चना की, जिसके बाद से यह सिलसिला नियमित रूप से जारी है। सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद को मां जरूर पूरा करती हैं, इसलिए आज भी शहर के तमाम भक्त नियमित रूप से मां के दर्शन और पूजन को मंदिर पहुंचते हैं।
मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान सबसे पहले यहां पर पांडवों ने मां शीतला की पूजा अर्चना की, जिसके बाद से यह सिलसिला नियमित रूप से जारी है। सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद को मां जरूर पूरा करती हैं, इसलिए आज भी शहर के तमाम भक्त नियमित रूप से मां के दर्शन और पूजन को मंदिर पहुंचते हैं।
बरेली-शाहजहांपुर रोड पर स्थित महाभारतकालीन नरियावल गांव का मां शीतला देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। मान्यता है कि मां के प्राचीन मंदिर के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। इस मंदिर में होली के बाद और आषाढ़ माह में बासी भोजन चढ़ाया जाता है। माना जाता है कि मां शीतला शारीरिक कष्ट, रोग-दोष का नाश करती हैं और श्रद्धालुओं को सौभाग्य देती हैं। इस मंदिर पर लाखों हिन्दुओं और मुसलमानों की आस्था है।
मंदिर के महंत पं. प्रवीण शर्मा बताते हैं कि अज्ञातवास में पांडव कुंती के साथ एक रात्रि यहां पर पहुंचे। उस समय गांव का नाम नरबलगढ़ था। गांव में एक नरबलि नाम का दैत्य रहता था। वह हर दिन गांव से एक मानव की बलि लेता था। यह बात जब पांडवों को पता चली, तो भीम ने इसका विरोध कर दैत्य को युद्ध के लिए ललकारा। दैत्य ने भी भीम की चुनौती को स्वीकार कर लिया। युद्ध से पहले भीम ने अपने भाइयों के साथ यहां माता शीतला की पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लिया। फिर युद्ध में नरबल को मार दिया। इसके बाद उन्होंने मां शीतला देवी की मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठित किया। माना जाता है कि यह मंदिर बरेली के तत्कालीन राजा वासुदेव ने बनवाया था। तब से ही यह मंदिर लाखों लोगों की श्रद्धा का केंद्र है। मंदिर के आस-पास कई कुएं हैं जो सैकड़ों वर्ष पुराने हैं।
पुरातत्व विभाग के लोग भी यहां आकर जांच कर गए तो पाया कि काफी पुरानी ईंटों का प्रयोग किया गया है। इस मंदिर में मां शीतला का पूजन करने के साथ-साथ कुएं का भी पूजन किया जाता है। माना जाता है कि देवी शीतला कुएं में भी रहती हैं। कालांतर में इस जगह का नाम नरियावल हुआ। उन्होंने बताया कि इसके बाद यहां पर लगातार शीतला माता की उपासना हो रही है।
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