बरेली: शेरनी के बाद ”शेरदिल”, पर्यावरण पर संजीदा हुआ बॉलीवुड

बरेली: शेरनी के बाद ”शेरदिल”, पर्यावरण पर संजीदा हुआ बॉलीवुड

बरेली, अमृत विचार। तेजी के साथ कम होते जंगल के कारण जानवरों और मानव के बीच संघर्ष बढ़ गया है। पेड़ कटने की वजह से जानवर रिहायशी इलाकों की तरफ रुख कर रहे हैं। पर्यावरण के लिए यह एक गंभीर मसला है। इसको लेकर बॉलीवुड भी संजीदा हो गया है। बीते दिनों शेरनी फिल्म में एक खूंखार …

बरेली, अमृत विचार। तेजी के साथ कम होते जंगल के कारण जानवरों और मानव के बीच संघर्ष बढ़ गया है। पेड़ कटने की वजह से जानवर रिहायशी इलाकों की तरफ रुख कर रहे हैं। पर्यावरण के लिए यह एक गंभीर मसला है। इसको लेकर बॉलीवुड भी संजीदा हो गया है। बीते दिनों शेरनी फिल्म में एक खूंखार बाघिन की कहानी में मानव और जानवरों के बीच संघर्ष की हकीकत को बेहद सादगी से पेश किया गया था। इस फिल्म में विद्या बालन एक आईएफएस अफसर की भूमिका में नजर आई थीं।

वहीं इन दिनों पर्यावरण दिवस पर एक और फिल्म लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रही है। फिल्म का नाम है शेरदिल द पीलीभीत सागा। पंकज त्रिपाठी अभिनीत यह फिल्म जंगल के नजदीक रहने वाले उन गरीबों की कहानी है जो रोजगार नहीं मिलने के कारण मुआवजे के लालच में स्वयं की मर्जी से जानवरों का निवाला बनने को तैयार हैं।

शुक्रवार को फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ तो काफी कुछ कहानी बयान कर दी गई है। मगर फिल्म का क्लाइमेक्स देखने के लिए इंतजार करना होगा। क्योंकि यह फिल्म सिनेमाघरों में 24 जून को रिलीज होगी। ट्रेलर देखने से पता चलता है कि डायरेक्टर ने मुख्य रूप से जंगल के नजदीक रहने वाले लोगों के रोजगार और उनकी गरीबी से जुड़े मसले को दिखाने की कोशिश की है।

सरकार जंगली जानवर के हमले में मारे गए व्यक्ति के परिवार को मुआवजा देती है तो मुआवजे की खातिर पंकज त्रिपाठी खुद जंगल में बाघ का निवाला बनने पहुंच जाते हैं। मगर जंगल के पास रहने की एक और सबसे बड़ी चुनौती है। वो है मानव और जानवर के बीच का संघर्ष। पर्यावरण को लेकर चिंता जाहिर करने वाले लोग मानते हैं कि विकास और पर्यावरण के बीच उचित संतुलन नहीं होने की वजह से जंगल कम हुआ और धीर-धीरे इंसान और जानवरों की एक-दूसरे के क्षेत्र में दखलंदाजी बढ़ गई।

जंगल का दायरा पुराने दौर जैसा तो नहीं हो सकता मगर वन क्षेत्र बीते दिनों के मुकाबले बढ़ा है। इंसान और जानवरों के बीच संघर्ष इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि एक तरफ लोगों की आबादी बढ़ रही है तो दूसरी तरफ संरक्षण के कारण जंगली जानवरों की आबादी भी बढ़ी है। जंगल के पास रहने वाले लोगों को जंगली जानवरों के स्वभाव को समझना होगा। समय-समय पर वन विभाग की टीमें लोगों में जागरूकता लाने की कोशिश करती हैं।- समीर कुमार, प्रभागीय वनाधिकारी, बरेली

इंसानों को जानवरों के साथ रहना सीखना पड़ेगा। फिर भी अगर कोई बाघिन या तेंदुए जैसा जानवर सामने आ जाए तो खुद को शांत रखें बिना हड़बड़ी दिखाए। जंगल खत्म होने या जानवरों के संरक्षण में हो रही बाधा के लिए इंसान ही जिम्मेदार है। किसी भी जंगली जानवर को भी इंसानों से खतरा महसूस होता है। -डॉ.सुशांत सोमा, जीवविज्ञानी, डब्लूटीआई

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