भारत का बढ़ता प्रभाव

क्षेत्रीय स्थिरता, विकास, संस्कृतियों-सामाजिकता के आदान-प्रदान, आतंकवाद का विरोध व अन्य वैश्विक मामलों में भारत-मध्य एशिया सम्मेलन की भूमिका बहुत प्रभावी हो सकती है। दक्षिण एशियाई देशों के संगठन ‘सार्क’ में पिछले कुछ समय से कायम उदासीनता के बीच खासकर भारत के लिए उक्त मंच बेहद कारगर साबित हो सकता है। यूक्रेन और रूस में …
क्षेत्रीय स्थिरता, विकास, संस्कृतियों-सामाजिकता के आदान-प्रदान, आतंकवाद का विरोध व अन्य वैश्विक मामलों में भारत-मध्य एशिया सम्मेलन की भूमिका बहुत प्रभावी हो सकती है। दक्षिण एशियाई देशों के संगठन ‘सार्क’ में पिछले कुछ समय से कायम उदासीनता के बीच खासकर भारत के लिए उक्त मंच बेहद कारगर साबित हो सकता है।
यूक्रेन और रूस में तनाव के बीच भारत-मध्य एशिया सम्मेलन काफी महत्वपूर्ण रहा और इसने अपनी सार्थकता भी सिद्ध की। कई उपयोगी और भविष्य के लिए दूरगामी परिणाम वाले फैसले भी हुए।
सबसे महत्वपूर्ण फैसला रहा कि भारत-मध्य एशिया सम्मेलन का हर दूसरे साल आयोजन किया जाएगा और विदेश, व्यापार तथा संस्कृति मंत्रियों के बीच लगातार बैठकें होंगी। बड़ी बात यह कि नई दिल्ली में भारत-मध्य एशिया सचिवालय बनाया जाएगा। सम्मेलन में अफगानिस्तान पर आपस में सलाह-मशविरा जारी रखने और संयुक्त कार्य समूह गठित करने पर सहमति बनी।
आतंकवाद की तीखी निंदा कर आसपास के देशों में उसके प्रभाव पर चर्चा की गई।
सम्मेलन में कजाकिस्तान के राष्ट्रपति कासिम जुमरात तोकायेव, उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शौकत मिर्जियोयेव, ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमामअली रहमान, तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्दीमुहम्मदेवो और किर्गिस्तान के राष्ट्रपति सद्र जापारोप ने भाग लिया।
सम्मेलन के बाद नेताओं ने ‘दिल्ली घोषणापत्र’ जारी किया और ‘आतंकवाद मुक्त विश्व’ बनाने के लिए आतंक के खिलाफ मिलजुल कर लड़ने पर सहमत हुए। सम्मेलन के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने क्षेत्रीय संपर्क और अगले 30 साल तक सहयोग बनाए रखने की बात कही ताकि सम्मेलन के तीन मुख्य लक्ष्य प्राप्त हो सकें।
इस सम्मेलन के महत्व का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दो दिन पहले चीन ने मध्य एशियाई देशों के साथ अलग से बैठक की थी जिसमें कुछ महत्वपूर्ण मुद्दो पर चर्चा की गई थी। बहरहाल सम्मेलन का मुख्य लक्ष्य भारत-मध्य एशिया साझेदारी को और मजूबत बनाना है।
सम्मेलन में मध्य एशियाई देशों ने चाबहार बंदरगाह पर संयुक्त कार्य समूह गठित करने के भारत के प्रस्ताव का स्वागत किया। इसे वैश्विक मामलों में भारत के बढ़ते प्रभाव के तौर पर देखा जाना चाहिए। जाहिर है कि चीन के प्रभुत्व के बीच भारत अपना दायरा बढ़ाता ही जा रहा है।