खौफनाक स्थिति

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में हाल की दो घटनाओं ने इशारा किया है कि भूस्खलन के लिए पहाड़ अधिक संवेदनशील बन गए हैं। किन्नौर के निगुलसरी के चील जंगल के पास एक बड़े पहाड़ ने बुधवार को पांच वाहनों को पीस दिया। हादसे की चपेट में लगभग चार दर्जन लोग आए हैं, जिसमें 14 लोगों …

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में हाल की दो घटनाओं ने इशारा किया है कि भूस्खलन के लिए पहाड़ अधिक संवेदनशील बन गए हैं। किन्नौर के निगुलसरी के चील जंगल के पास एक बड़े पहाड़ ने बुधवार को पांच वाहनों को पीस दिया। हादसे की चपेट में लगभग चार दर्जन लोग आए हैं, जिसमें 14 लोगों की मौत हो गई है।

इससे पहले 25 जुलाई को किन्नौर में भू-स्खलन के बाद गिरी पहाड़ी चट्टानों से बस्पा नदी का पुल टूट गया था और नौ पर्यटकों की मौत हो गई थी। पिछले माह महाराष्ट्र में कई स्थानों पर हुई बरसात व भूस्खलन की घटनाओं में भी करीब 150 लोगों की मौत हो गई थी। भूस्खलन के लिए संवेदनशील भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में से करीब 4.3 लाख वर्ग किलोमीटर में भूस्खलन की आशंका रहती है। विश्वभर की भूस्खलन की घटनाओं में भारत की स्थिति चिंताजनक है।

ब्रिटेन के शेफ़ील्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2004 और 2016 के बीच भारत में 892 भूस्खलन की घटनाएं हुईं। इनमें लगभग 11,020 मौतें दर्ज की गईं। यह आंकड़ा वैश्विक कुल हताहतों का 18 प्रतिशत है। देश में भूस्खलन की कुल घटनाओं में सबसे ज्यादा उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में फैले उत्तर पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र का है।

दुनिया के 234 पर्यावरण वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक तापमान बढ़ने से जहां दुनिया में ग्लेशियर पिघलेंगे, वहीं समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा। सदियों से जमी बर्फ का क्षेत्र संकुचित होगा। इसके साथ ही भयावह लू, बाढ़, सूखा व चक्रवार्ती तूफानों की आवृत्ति में इजाफा होगा।

तूफान ज्यादा घातक व तेज बारिश करने वाले होंगे। भूस्खलन के कारणों में बारिश सबसे बड़ा कारक है। बारिश के पैटर्न में बदलाव और बादल फटने जैसी घटनाओं में बढ़ोतरी के चलते इन परिस्थितियों में जटिलता आई है। मौसम के मिजाज में जो तल्खी नजर आ रही है, इससे जीवन के साथ ही जीविका पर भी बड़ा संकट पैदा होगा।

याद रखना होगा कि जब जलवायु परिवर्तन के कारण देश आपदाओं की आशंकाओं से चौतरफा जूझ रहा है, तब हमें आपदा प्रबंधन की तमाम क्षमताओं और संसाधनों को संयोजित करके रखना चाहिए। साथ ही दुनिया में उपलब्ध आधुनिक तकनीकों का हस्तांतरण और वित्तीय संसाधनों की भी व्यवस्था की जानी चाहिए। जलवायु परिवर्तन के रौद्र को कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग लिया जाना चाहिए। सरकार को विकास के नाम पर पारिस्थितिकी को नष्ट करने के बजाय जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए संरक्षण को प्राथमिकता देनी चाहिए।