रास्ता निकालना होगा

रास्ता निकालना होगा

संसद के मानसून सत्र के पहले दो सप्ताह विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गए। मानसून सत्र के 11 वें दिन मंगलवार को भी लोकसभा में कोई कामकाज नहीं हुआ और विपक्षी सदस्यों का पेगासस, किसानों के मुद्दे और महंगाई को लेकर हंगामा जारी रहा, जिसके कारण शून्य काल भी नहीं चला। इस बार विपक्ष …

संसद के मानसून सत्र के पहले दो सप्ताह विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गए। मानसून सत्र के 11 वें दिन मंगलवार को भी लोकसभा में कोई कामकाज नहीं हुआ और विपक्षी सदस्यों का पेगासस, किसानों के मुद्दे और महंगाई को लेकर हंगामा जारी रहा, जिसके कारण शून्य काल भी नहीं चला।

इस बार विपक्ष ने पेगासस जासूसी विवाद पर चर्चा की मांग को लेकर संसद की कार्यवाही रोक दी है, जिसे सरकार ने महत्वहीन बताते हुए खारिज कर दिया है। विपक्ष पहले ही कह चुका है कि जब तक सरकार पेगासस जासूसी मामले पर चर्चा के लिए तैयार नहीं हो जाती, तब तक संसद में गतिरोध खत्म नहीं होगा।

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है, फ्रांस, हंगरी, जर्मनी और कई अन्य देशों में इस मामले में जांच चल रही है। लेकिन हमारी सरकार जांच के लिए क्यों तैयार नहीं हो रही है? प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी सदस्यों के आचरण को संसद व संविधान का अपमान कहा है। उधर सरकार पर दबाव बनाने के लिए विपक्ष सरकार के खिलाफ संसद के बाहर भी एकजुट हो रहा है। विपक्ष के 17 दलों के नेता विरोध स्वरुप साइकिल से संसद तक पहुंचे।

संसद में सत्ता व विपक्ष के बीच जिस प्रकार का गतिरोध कायम हो गया है, उससे सहज सवाल उठता है कि क्या देश की संसद अपने दायित्व का निर्वाह करने में असमर्थ हो चुकी है। ऐसे में हर प्रतिनिधि को सोचना होगा कि जिस जनता ने उनमें विश्वास व्यक्त करके संसद में भेजा है। वे सत्ता और विपक्ष में बट कर अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं या नहीं।

एक बार उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने संसद में काम करने के तरीकों को लेकर कहा था कि संसद में या तो बात हो सकती है, या फिर वाक आउट, मगर संसद को ठप नहीं किया जा सकता अन्यथा लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। हर सत्र में संसद का न जाने कितना समय हंगामे की वजह से बरबाद हो जाता है। संसद के जिन सत्रों से पूरा देश न जाने कितनी उम्मीदें बांधता है, अक्सर उनमें नतीजा देने वाला काम बहुत कम होता है और काम की बहसें भी।

सदन में विरोध की एक परंपरा रही है और उसका राजनीतिक व संसदीय महत्व भी है, लेकिन सबसे जरूरी है कि हमारे सांसद अपनी मूल जिम्मेदारी समझें। संसद में गतिरोध तोड़ने के लिए सरकार को विपक्ष से बातचीत के जरिए रास्ता निकालना चाहिए।