Sri Lanka Crisis : तमिल सत्याग्रह की याद दिलाता है कोलंबो का गाले फेस, 60 साल पहले हुआ था समानता की मांग को लेकर आंदोलन

Sri Lanka Crisis : तमिल सत्याग्रह की याद दिलाता है कोलंबो का गाले फेस, 60 साल पहले हुआ था समानता की मांग को लेकर आंदोलन

चेन्नई। आर्थिक और राजनीतिक संकट से घिरे श्रीलंका में प्रदर्शनों का केंद्र कोलंबो का गाले फेस वही स्थान है जहां तमिल लोगों ने 60 साल पहले समानता की मांग को लेकर सत्याग्रह किया था, जिसके कारण उन पर बहुसंख्यकवाद का झंड़ा बुलंद कर रहे लोगों ने हिंसक हमले किए थे। ‘ऑर्गेनाइजेशन फॉर ईलम रिफ्यूजीस रिहैब्लिटेशन’ …

चेन्नई। आर्थिक और राजनीतिक संकट से घिरे श्रीलंका में प्रदर्शनों का केंद्र कोलंबो का गाले फेस वही स्थान है जहां तमिल लोगों ने 60 साल पहले समानता की मांग को लेकर सत्याग्रह किया था, जिसके कारण उन पर बहुसंख्यकवाद का झंड़ा बुलंद कर रहे लोगों ने हिंसक हमले किए थे। ‘ऑर्गेनाइजेशन फॉर ईलम रिफ्यूजीस रिहैब्लिटेशन’ के संस्थापक एस सी चंद्रहासन ने कहा कि तमिलों ने पांच जून, 1956 को बंडारनायके सरकार द्वारा ‘सिंहला ओनली बिल’ लाने के बाद प्रदर्शन किए थे।

गाले फेस में तब प्रदर्शनों में भाग लेने वाले लोग सत्तारूढ़ सरकार से सहानुभूति रखने वाले ‘‘गुंडों’’ के हिंसक हमले का निशाना बन गए थे। चंद्रहासन श्रीलंकाई तमिलों के जाने माने नेता एस जे वी चेल्वानायकम (1898-1977) के बेटे हैं। चेल्वानायकम ने पूरी जिंदगी गांधीवादी आदर्शों के जरिए जातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। चेल्वानायकम को श्रीलंकाई तमिल ‘थांथई चेल्वा’ (फादर चेल्वा) बुलाते हैं।

उन्होंने बताया कि तमिल पार्टी ‘इलंकाई तमिल अरासु काची’ के नेता एवं उनके पिता चेल्वानायकम की अगुवाई में प्रदर्शनकारी ‘सिंहला ओनली बिल’ के बाद 1956 में गाले फेस समुद्र तट के सामने एकत्र हुए। वे तमिल लोगों के समान अधिकारों और तमिल भाषा को समान महत्व दिए जाने की मांग को लेकर शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे सत्याग्रही थे। चंद्रहासन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘लेकिन उनके साथ जो हुआ, वह भयानक और दुखद है।

बंडारनायके सरकार से सहानुभूति रखने वाली हिंसक भीड़ ने सत्याग्रहियों पर हमले किए। प्रदर्शन में भाग ले रहे लोगों को पीटा गया और वे गंभीर रूप से घायल हो गए।’’ उसी दिन विधेयक में ‘तमिल खंड के उचित इस्तेमाल’ को हटाने की मांग को लेकर एक संगठन भी संसद की ओर मार्च कर रहा था। मार्च में भाग लेने वाले लोगों ने सत्याग्रहियों को निशाना बनाया तथा उन पर हमला किया। चंद्रहासन ने कहा, ‘‘वहां पर्याप्त पुलिसकर्मी तैनात थे, लेकिन वे मूक दर्शक बने रहे। कई सत्याग्रहियों को संसद भवन के समीप एक झील में धकेल दिया गया। यह स्वतंत्र श्रीलंका में तमिलों पर सबसे बड़ा बर्बर हमला था।’’

उन्होंने कहा कि गाले फेस में हमला तो महज एक शुरुआत थी और जल्द ही यह देशभर में फैल गया और तमिलों पर कहर ढाए गए। इन दंगों में 100 से अधिक निर्दोष तमिल नागरिक मारे गए थे। चंद्रहासन ने कहा कि सरकार को तमिल भाषा को समान अधिकार देने का अनुरोध स्वीकार करने में दशकों लगे। उन्होंने कहा, ‘‘संघर्ष के बाद तमिल आधिकारिक भाषा भी बन गयी। श्रीलंका के संविधान में कहा गया है कि श्रीलंका की आधिकारिक भाषा सिंहली रहेगी। इसमें कहा गया है कि तमिल भी आधिकारिक भाषा होगी।’’

कई दशकों से भारत से तमिल शरणार्थियों की स्वदेश श्रीलंका लौटने में मदद कर रहे चंद्रहासन ने कहा, ‘‘श्रीलंका में मौजूदा संकट को देखते हुए हमें तमिल शरणार्थियों की वापसी के अपने काम को अभी रोकना पड़ा है। इस संकट ने पूरा परिदृश्य ही बदल दिया है। अब तमिल लोग भारत (तमिलनाडु) में आ रहे हैं।’’

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