नैनीताल में पर्यटन को बढ़ावा देने में जिम कार्बेट का रहा है अहम योगदान

रामनगर, अमृत विचार। आदमखोर बाघों को मौत की नींद सुला देने वाले जिम कार्बेट भले ही आयरिश मूल के रहे हों, मगर हिंदुस्तान की माटी से उनका दिली लगाव रहा। नैनीताल में पर्यटन शुरू किए जाने में उनकी मां मैरी और उनका बहुत योगदान रहा। सरोवर नगरी में पर्यटन की शुरुआत करते हुए 1880 में …
रामनगर, अमृत विचार। आदमखोर बाघों को मौत की नींद सुला देने वाले जिम कार्बेट भले ही आयरिश मूल के रहे हों, मगर हिंदुस्तान की माटी से उनका दिली लगाव रहा। नैनीताल में पर्यटन शुरू किए जाने में उनकी मां मैरी और उनका बहुत योगदान रहा।
सरोवर नगरी में पर्यटन की शुरुआत करते हुए 1880 में जिम की मां मेरी ने गर्नी हाउस खरीदा। इसे ग्रीष्मकाल में पर्यटकों को किराए पर दिया जाने लगा। 1909 में जिम ने ग्रास मियर कोठी, 1911 में हटन हाल, माउंट प्लीजेंट ओर एयरफाल कोठियां खरीदी।
जिन्हें गर्मियों के दिनों में पर्यटकों को किराए पर दिया जाता था। उस तरह नैनीताल में पर्यटन को बढ़ावा दिये जाने पर जिम कार्बेट एवम उनकी मां मैरी को भुलाया नही जा सकता।
आयरिश मूल के निवासी जिम एडवर्ड कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल हुआ था। पिता कालाढूंगी में पोस्टमास्टर थे। जिम कार्बेट के सिर से चार साल की उम्र में ही पिता का साया उठ गया था। बचपन से ही उन्होंने अपना जीवन जल, जंगल और जमीन के बीच गुजारा। यही वजह थी कि वह जंगल के जीवन से भली भांति परिचित थे। उनकी पुस्तक माई इंडिया का हिंदी में अनुवाद करने वाले लेखक संजीव दत्त ने लिखा कि नन्हे जिम ने कुदरत की गोद मे होश संभाला।
कालाढूंगी के जंगलो में न तो जानवरों की कमी थी और न ही परिंदो की। रोज एक परिंदा मार लाना जिम की जिम्मेदारी थी। स्कूली शिक्षा पूरी कर मात्र 18 साल की उम्र में उन्होंने गोरखपुर ओर मोकमाघाट में नौकरी कर ली। बाद में कुमाऊं में आकर बस गए। बहुत सी खूबियां थी उनमें केवल शिकारी के रूप में ही उनकी पहचान नहीं थी। वह एक अच्छे लेखक, वैद्य, फुटबॉल, ओर हाॅकी के बेहतरीन खिलाड़ी होने के अलावा कारपेंटर,फ़ोटो ग्राफर एवम प्रकृति प्रेमी भी थे।
प्रकृति प्रेमी बच्ची सिंह बिष्ट कहते हैं कि जिस दौर में बाघ को लोग खूनी दरिंदा समझते थे उस समय हिम एडवर्ड कॉर्बेट बाघ को जंगल का जेंटलमैन कहा करते थे। भारत के प्रति उन्होंने अपना प्रेम अपनी पुस्तक में दर्शाया है। अपनी पुस्तक माई इंडिया में उन्होंने लिखा कि जिस हिंदुस्तान को मैं जानता हूं उसमें चालीस करोड़ लोग रहते हैं जिनमें से 90 फीसदी लोग सीधे साधे ओर ईमानदार, वफादार ओर मेहनती हैं। देश की आजादी के बाद वह कीनिया चले गए जहां 19अप्रैल 1955 को उनका देहांत हो गया। उनका कालाढूंगी स्थित बंगला, नैनीताल का गर्नी हाउस जहां पर्यटकों को उनकी याद दिलाता है वहीं रामनगर का कॉर्बेट नेशनल पार्क भारत सरकार ने उनके ही नाम पर रखा है।