बरेली: बाघिन से कितनी मेल खाती है ‘शेरनी’ की कहानी
मोनिस खान, बरेली। यह संयोग है कि एक तरफ शुक्रवार को बरेली में वन विभाग, पीटीआर, डब्ल्यूटीआई की टीमें रबड़ फैक्ट्री में ठिकाना बना चुकी बाघिन को ट्रैंक्युलाइज कर रही थीं तो दूसरी तरफ अमेजन प्राइम वीडियो पर विद्या बालन की फिल्म ‘शेरनी’ रिलीज हुई थी। पूरी फिल्म एक आदमखोर बाघिन के रेस्क्यू के इर्द-गिर्द …
मोनिस खान, बरेली। यह संयोग है कि एक तरफ शुक्रवार को बरेली में वन विभाग, पीटीआर, डब्ल्यूटीआई की टीमें रबड़ फैक्ट्री में ठिकाना बना चुकी बाघिन को ट्रैंक्युलाइज कर रही थीं तो दूसरी तरफ अमेजन प्राइम वीडियो पर विद्या बालन की फिल्म ‘शेरनी’ रिलीज हुई थी। पूरी फिल्म एक आदमखोर बाघिन के रेस्क्यू के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म में बेहद सादगी और वास्तविकता के साथ जंगली जानवर और इंसानों के बीच होने वाले संघर्ष को दिखाया गया। फिल्म में विद्या बालन ने डीएफओ का किरदार निभाया। जिनको आदमखोर बाघिन का रेस्क्यू करने की जिम्मेदारी मिली है।
विद्या बालन ने गांव वालों की सुरक्षा के साथ जंगल में मौजूद बाघिन को सही सलामत बचाना चाहा मगर बाघिन को मारने पर आमादा सनकी शिकारी का किरदार निभाने वाले शरत सक्सेना उसे खत्म कर देते हैं। हालांकि अंत में बचने वाले बाघिन के दो शावक एक नई उम्मीद की तरह हैं। यहां फिल्म तो खत्म होती है लेकिन बात शुरू होती है फिल्मी पर्दे से इतर इंसान और जानवरों के बीच होने वाले असल संघर्ष की। फिल्म में दिखाया गया कि विकास और पर्यावरण के बीच उचित संतुलन नहीं होने की वजह से जंगल कम हुआ और धीर-धीरे इंसान और जानवरों की एक-दूसरे के क्षेत्र में दखलंदाजी बढ़ गई।
रबर फैक्ट्री में डेढ़ साल के आस-पास वक्त गुजारने वाली बाघिन किशनपुर सेंचुरी से भटककर आई जरूर मगर यहां उसको मुफीद ठिकाना मिला तो डेरा डाल लिया। सारे सवाल यहीं से खड़े होते हैं। पीलीभीत टाइगर रिजर्व इसका बड़ा उदाहरण है जहां 35 से 40 बाघ होने चाहिए वहां इस वक्त 65 बाघ मौजूद हैं। लिहाजा, जंगल से निकलकर नए ठिकाने की तलाश में पलायन करना लाजिमी है। जाहिर है जब जानवर जंगल से निकलकर बाहर आएंगे तो इंसानों से आमना-सामना भी जरूर होगा।
विशेषज्ञ मानते हैं कि जानवरों में किसी इलाके पर वर्चस्व कायम करने की प्रवृत्ति होती है। ऐसे में वह नया इलाका भी तलाशते हैं। रबर फैक्ट्री में बाघिन इसलिए भी रही क्योंकि यहां भरपूर शिकार था और कोई प्रतिस्पर्धा भी नहीं थी लेकिन इंसानी बस्तियों के नजदीक किसी बाघिन का रहना इंसान के लिए खतरनाक था। इसलिए उसको कैद कर टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया।
दुश्मन मानेंगे तो जानवरों से संघर्ष होगा ही
वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के डॉ. सुशांत बताते हैं कि यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आपके देखने का नजरिया क्या है। जानवर और इंसान दोनों अपना दायरा तय कर एक साथ भी रह सकते हैं। अगर संघर्ष की तरह देखेंगे तो आपकी तरह किसी जानवर की भी अपनी जरूरतें हैं। जीवन यापन के लिए जंगल चाहिए। जैसे आपको अपनी निजता प्यारी है वैसे ही बाघ या बाघिन जैसे जानवर भी निजता के दायरे में रहकर किसी तरह की दखलंदाजी पसंद नहीं करते।
अगर आप तालमेल बैठाकर रहना चाहें तो भी रहा जा सकता है। मुख्य वन संरक्षक ललित कुमार वर्मा बताते हैं कि पीलीभीत का उदाहरण लें तो यहां जंगल में जानवर भी रहते हैं और पास में ही किसान खेती करते हैं लेकिन दोनों की अपनी सीमाएं हैं।
इंसान और जानवर दोनों सुरक्षित रहें
कई बार जानवर इंसानों को नुकसान पहुंचा देते हैं। ऐसे में वन क्षेत्रों में काम करने वाली टीमों के लिए लोगों का विरोध सबसे बड़ी चुनौती होता है। केवल इसी साल तीन टाइगर रेस्क्यू करने और रबर फैक्ट्री की बाघिन को पकड़ने में अहम भूमिका निभाने वाले डब्ल्यूटीआई के बायोलॉजिस्ट सुशांत सोमा की माने तो जब कोई जानवर इंसान को नुकसान पहुंचाता है तो उसके परिवार वालों का दर्द समझा जा सकता है। इस स्थिति में संयम से काम लेते हैं। चुनौती यह रहती है कि न किसी इंसान का नुकसान हो और न किसी जानवर का।
रबर फैक्ट्री की पहरेदारनी थी बाघिन
विशेषज्ञ बताते हैं कि कई इलाकों में लोग बाघ और तेंदुए जैसे जानवरों को अपना पहरेदार मानते हैं। उनका रेस्क्यू करने पर लोग ले जाने से भी मना करते हैं क्योंकि यह जानवर एक तरह से उनके क्षेत्रों की भी रक्षा करते हैं। रबर फैक्ट्री की बाघिन की अगर बात करें तो वहां के गार्ड्स भी उसे फैक्ट्री की बाघिन मानते थे। जिसके डर से वहां चोरी जैसी घटनाएं रुकी हुईं थी। जब टीम बाघिन को ले जा रही थी तो वहां के गार्ड्स इस बात को लेकर चिंतित थे कि उनकी पहरेदारनी अब चली जाएगी।
जहां जानवर वहां जीवन
जानवरों का संरक्षण इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि इसमें इंसान का ही फायदा है। जहां जानवर रहते हैं वहां जंगल अच्छे होंगे। जंगल अच्छे होंगे वहां हवा और पानी अच्छा होगा। हवा पानी के बिना इंसान नहीं रह सकता। लिहाजा इंसान खुद को बचाने के लिए ही सही न केवल बाघ और तेंदुआ बल्कि हर प्रजाति के जानवरों के संरक्षण में सहयोग करे।
जंगल खत्म होने या जानवरों के संरक्षण में हो रही बाधा के लिए इंसान की जिम्मेदार है। इंसानों को इनके साथ रहना सीखना पड़ेगा। किसी भी जंगली जानवर को इंसानों से खतरा महसूस होता है। फिर भी अगर कोई बाघिन या तेंदुए जैसा जानवर सामने आ जाए तो खुद को शांत रखें बिना हड़बड़ी दिखाए। -डॉ.सुशांत सोमा, जीवविज्ञानी, डब्लूटीआई
इंसान और जानवरों के बीच तालमेल का सबसे अच्छा उदाहरण पीलीभीत है जहां बाघ भी रहते हैं और इंसान भी। अगर इंसान संयम से रहें तो इन जंगली जानवरों को अपना हिस्सा मानकर रहा जा सकता है। -ललित कुमार वर्मा, मुख्य वन संरक्षक