संवेदनशील पहल

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि जब प्रवासी मजदूरों का पंजीकरण हो जाए तो सरकारें उन प्रवासी श्रमिकों को लाभ दे सकती हैं, जिन्होंने महामारी के दौरान रोजगार खो दिया है। हालांकि यह एक मुश्किल काम है, लेकिन इसे पूरा करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूरों को हो रही समस्याओं …

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि जब प्रवासी मजदूरों का पंजीकरण हो जाए तो सरकारें उन प्रवासी श्रमिकों को लाभ दे सकती हैं, जिन्होंने महामारी के दौरान रोजगार खो दिया है। हालांकि यह एक मुश्किल काम है, लेकिन इसे पूरा करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूरों को हो रही समस्याओं पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई की।

सर्वोच्च अदालत ने कोविड-19 महामारी के दौरान देश भर में प्रवासी मजदूरों के पंजीकरण की धीमी प्रक्रिया पर नाराजगी जताई है। दरअसल, एक वर्ष पूर्व कोरोना संकट की पहली लहर के दौरान असंगठित क्षेत्रों के श्रमिकों को दर्ज करने के लिये एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाना शुरू किया गया था।

कोर्ट ने केंद्र सरकार से प्रगति पर दो सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने न केवल दिल्ली-एनसीआर बल्कि शेष राज्यों में मजदूरों के लिये मुफ्त ड्राई राशन, सामुदायिक रसोई के बाबत जानकारी मांगी। निस्संदेह, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के हितों की निगरानी के लिये एक कारगर तंत्र विकसित करने की जरूरत है ताकि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ वाकई जरूरतमंदों तक पहुंच सके। साथ ही गांव लौटने वाले श्रमिकों को उनके कौशल के अनुरूप काम मिल सके।

वैसे इस दिशा में कई राज्यों ने पहल भी की है। दिल्ली सरकार ने निर्माण श्रमिकों को नकद राशि के भुगतान की बात कही है। लेकिन स्वयंसेवी संगठन प्रवासी श्रमिकों, रिक्शा व रेहड़ी-पटरी वालों को भी ऐसे ही लाभ दिए जाने की वकालत करते रहे हैं। बिहार व उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में केंद्रीय श्रम मंत्रालय की ओर से बीस कंट्रोल रूम बनाए गए हैं, जो श्रमिकों की समस्या के निवारण में मदद करेंगे। बिहार समेत कई राज्यों में घर लौटे श्रमिकों को मनरेगा के तहत रोजगार दिया जा रहा है।

उत्तराखंड सरकार ने भी पंजीकृत श्रमिकों को पिछले साल की तरह नकद राशि व खाद्यान्न किट उपलब्ध कराने की बात कही है। वहीं योगी सरकार ने भी पिछले साल की तरह श्रमिकों के खातों में पैसा व मुफ्त राशन देने की बात कही है। महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ने भी कुछ वर्गों को नकद भुगतान देने की घोषणा की थी। लेकिन विभिन्न राज्यों में श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा का भरोसा न मिल पाने के कारण वे अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं।

सरकारों को कोरोना संकट में सबसे ज्यादा त्रस्त श्रमिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ईमानदारी से करना चाहिए। कोर्ट की यह संवेदनशील पहल असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की बेरोजगारी के दौर में समस्याओं को कम करने की दिशा में की गई है।