होलिका दहन नौ ग्रहों की लकड़ी से करें; ग्रह पीड़ा मुक्ति के लिए होली पर विशेष स्नान...

कानपुर, अमृत विचार। होली की अग्नि और भस्म का शास्त्रों में खास महत्व है। भस्म के अनेक प्रयोग वर्णित हैं। प्रत्येक ग्रह का संबंध प्रकृति की वनस्पतियों से है। अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए उनसे संबंधित वनस्पतियों का प्रयोग हवन में करने से सुख-समृद्धि बढ़ती है।
नवग्रह वाटिका में प्रत्येक ग्रह से संबंधित लकड़ी का उल्लेख शास्त्रीय ग्रन्थों में वर्णित है। यदि कोई ग्रह अनिष्टकारक हो, तो उससे संबंधित लकड़ी से हवन, होम आदि करना विशेष फलप्रद रहता है और अगर यह हवन, आहुति होलिका की अग्नि में दी जाए तो अनिष्ट ग्रहों के शमन के लिए विशेष कारगर व प्रभावशाली रहता है।
अगर आपके ऊपर सूर्य ग्रह की महादशा चल रही हो और सूर्य आपको कष्ट दे रहा हो अथवा आपका सूर्य जन्मपत्री में कमजोर हो, नीच राशि का हो, राहु से ग्रस्त हो, अथवा सूर्य के कारण मारकेश आदि का भय हो तो होलिका की अग्नि में मदार की लकड़ी अर्पित कर परिक्रमा कर अनिष्ट सूर्य शांति हेतु प्रार्थना करें।
इसी प्रकार चन्द्रमा, राहु से ग्रसित हो अथवा जन्मकुण्डली में अशुभ स्थानों पर बैठे चन्द्रमा की महादशा पीड़ा दे रही हो या फिर नीच राशि का चन्द्रमा मानसिक उलझन प्रस्तुत कर रहा हो तो चन्द्रमा के अनिष्ट प्रभाव को कम करने के लिए पलाश की लकड़ी को होलिका की अग्नि में अर्पित कर चन्द्रमा शांति की प्रार्थना करें।
संस्थापक अध्यक्ष ज्योतिष सेवा संस्थान के आचार्य पवन तिवारी ने बताया कि इसी प्रकार मंगल को अनुकूल बनाने के लिए खैर (खादिर) वनस्पति, बुध के अनिष्ट को शांत करने के लिए अपामार्ग की लकड़ी, बृहस्पति के विपरीत प्रभाव को दूर करने के लिए पीपल की लकड़ी, शुक्र के अनिष्ट प्रभाव को कम करने के लिए गूलर की लकड़ी, शनि को अनुकूल बनाने के लिए शमी की लकड़ी, राहु की शांति के लिए दूब और केतु की शांति हेतु कुशा को होलिका की अग्नि में समर्पित कर उस ग्रह की शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
अगर किसी के पास अपनी जन्म पत्रिका नहीं है अथवा किसी को अपनी ग्रह दशा का ज्ञान नहीं है, तो भी सुख-समृद्धि व मंगल कामना के लिए होलिका की नौ परिक्रमा लगाएं, पहली परिक्रमा में मदार की लकड़ी, दूसरी परिक्रमा में पलाश की लकड़ी, तीसरी परिक्रमा में खैर (खादिर) वनस्पति, चौथी परिक्रमा में अपामार्ग की लकड़ी, पांचवी में पीपल की लकड़ी, छठी में गूलर की लकड़ी, सातवीं परिक्रमा में शमी की लकड़ी, आठवीं में दूब तथा नवीं परिक्रमा में कुशा को होलिका में अर्पित कर नवग्रहों को एक साथ नमन करें और अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए प्रार्थना करें। यह भी संभव न हो तो सभी ग्रहों का प्रतिनिधित्व करने वाली लकड़ियों को एक साथ एकत्र कर गांठ बांध लें और अपनी सिर से नौ बार उतारकर होलिका की परिक्रमा कर होलिका में अर्पण करें।
होली पर पानी में ये औषधि मिलाकर स्नान करने से नवग्रहों की शांति होती है। इस दिन अगर आप होली खेलने के बाद नहाने के पानी में कुछ औषधी डालते हैं तो नवग्रह इससे शांत रहते हैं और शुभ फल प्रदान करते हैं। ग्रह से संबंधित औषधि स्नान होली और चंद्र ग्रहण में बेहद उपयोगी है।
औषधि स्नान उस ग्रह से संबंधित वार में कभी भी प्रारंभ किया जा सकता है, लेकिन होली पर्व पर अथवा ग्रहण काल में स्नान करना विशेष उपयोगी होता है। होली से पूर्व ग्रहों के अनुसार जो औषधि बताई जा रही है, उन्हें इकट्ठा करना चाहिए।
यह औषधियां किसी पंसारी के यहां आसानी से मिल जाती हैं। औषधि को कूटकर अथवा पाउॅडर बनाकर उन्हें कम से कम 3 घंटे अथवा अधिक से अधिक 24 घंटे पहले किसी शुद्ध पात्र में जल में भिगो देना चाहिए। जब इन औषधियों का गुण पानी में आ जाये तो पानी को छान कर किसी पात्र में भर लेना चाहिए, स्नान करते समय मुख पूर्व की तरफ होना चाहिए।
औषधी स्नान
ग्रह पीड़ा मुक्ति के लिए होली पर विशेष स्नान
ग्रह पीड़ा से शांति प्राप्ति के लिए रत्न धारण, मंत्र जप, पूजा-पाठ के समान ही औषधीय स्नान भी बहुत प्रभावशाली तथा चमत्कारिक है। आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान द्वारा स्पष्ट है कि औषधियों में विशेष शक्ति पाई जाती है। ज्योतिष शास्त्र में औषधि स्नान एवं उससे मिलने वाले लाभ का वृहद वर्णन प्राप्त है। अपनी विशेषता के अनुसार प्रत्येक ग्रह से संबंधित औषधि का प्रयोग, शुभ उर्जा को आकर्षित करके उस ग्रह से पीड़ित व्यक्ति की व्यथा शांत करती है।
यदि आपका सूर्य खराब चल रहा हो तो केसर, खस, इलायची, कमल, कुकुंम, मुलहठी, देवदार, मैनसिल, मधु, साठी चावल तथा लाल रंग के पुष्प (गुलाब/गुड़हल) मिश्रित जल द्वारा स्नान करने से सूर्यकृत पीड़ा का निवारण होता है।
यदि आपका चंद्रमा खराब चल रहा हो तो पंचगव्य, शंख जल, चांदी बुरादा, मोती तथा सफेद चन्दन आदि से युक्त जल के द्वारा स्नान करने से चन्द्रकृत पीड़ा का निवारण होता है।
यदि आपका मंगल खराब चल रहा हो तो लाल चंदन, लाल पुष्प, हींग, बेलपत्र के वृक्ष की छाल, मौलसिरी के फूल, सौंफ, सोंठ, जटामासी तथा मालसांगरी के फूल आदि के मिश्रित जल द्वारा स्नान करने से मंगलकृत पीड़ा का शमन होता है।
यदि आपका बुध खराब चल रहा हो तो आंवला, पान का पत्ता, अमरूद, चावल, गोरोचन, सोना, मोती (मोती व सोने को बाद में निकालकर रख लें, फेकें नहीं) आदि के मिश्रित जल द्वारा स्नान करने से बुधकृत पीड़ा का शमन होता है।
यदि आपका बृहस्पति खराब चल रहा हो तो पीली सरसों, मालती के फूल, मुलहठी, मधु, हरिद्रा (हल्दी), भृंगराज की जड़ तथा चमेली के पुष्प आदि के मिश्रित जल द्वारा स्नान करने से गुरुकृत पीड़ा का शमन होती है।
यदि आपका शुक्र खराब चल रहा हो तो मूली के बीज, इलायची, चीनी, जायफल, सफेद चन्दन तथा किसी भी सुगन्ध देने वाले वृक्ष या लता की जड़ आदि के मिश्रित जल द्वारा स्नान करने से शुक्रकृत पीड़ा का शमन होता है।
यदि आपका शनि खराब चल रहा हो तो काला तिल, लोबान, सुरमा, शमी वृक्ष की लकड़ी का बुरादा, गोंद आदि के मिश्रित जल द्वारा स्नान करने से शनिकृत पीड़ा का शमन होता है।
यदि आपका राहु खराब चल रहा हो तो लोबान, नागरमोथा, तिलपत्र, कुम्भ पर्व अथवा तीर्थ स्थल का जल आदि मिश्रित जल द्वारा स्नान करने से राहुकृत पीड़ा का शमन होता है।
यदि आपका केतु खराब चल रहा हो तो लाल चन्दन, जटामासी, लोबान आदि के मिश्रित जल द्वारा स्नान करने से केतुकृत पीड़ा का शमन होता है।
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