संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को क्यों नहीं मिला आधिकारिक भाषा का दर्जा, अभियान के अध्यक्ष ने बताई वजह
लखनऊ, अमृत विचार। विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित ऑनलाइन संवाद ( वेबनॉर) को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र हिंदी जन अभियान के अध्यक्ष व समाजवादी चिंतक दीपक मिश्र ने कहा कि अंग्रेजी एवं मंदारिन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा होने के बावजूद हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा नहीं मिला है, यह दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है । लंबे संघर्ष के बाद यूएनओ हिंदी में ट्विटर, फेसबुक आदि सोशल मीडिया पर आया, लेकिन हिंदी को आधिकारिक भाषा का महत्व देने की दिशा में सार्थक कदम नहीं उठाया गया। उन्होंने कहा कि हमारे और हिंदी सेवियों के प्रत्यावेदन भारत सरकार और यूएनओ की निष्क्रिय फाइलों के दस्तावेज बन कर रह गए हैं ।
दीपक ने बताया कि हिंदी के पक्ष में भारतवंशियों और हिंदी भाषियों के सहयोग से वैश्विक हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा, जिसके लिए संचालन समिति का गठन कर लिया गया । दीपक ने बताया कि हिंदी जन भाषा है , सरकारों के उदासीन दृष्टिकोणों के उपरांत भी पल-प्रतिपल सशक्त हो रही है । त्रिपुरा और तेलंगाना यात्राओं का हवाला देते हुए दीपक ने कहा कि भारत में गैर हिंदी भाषी लोग हिंदी को राष्ट्रप्रेम की भावना के कारण मजबूत कर रहे हैं । सिनेमा और साहित्य भारतीय भाषाओं की एकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं । राजनीतिक और सामाजिक संगठन अपना कार्य ठीक नहीं कर पा रहे हैं । भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश और पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है, फिर भी सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य नहीं है । संगोष्ठी में संकल्प लिया गया कि इन सवालों पर व्यापक विमर्श चलाया जाएगा तभी भारत सरकार और यूएनओ प्रशासन जागेगा, दोनों कुंभकर्णी नींद में सो रहे हैं । संगोष्ठी में तिब्बत के सांसद दाबा क्षीरिंग, नेपाल के पूर्व मंत्री बीरेंद्र, अरब अमीरात के मोहम्मद आलिम , इंग्लैंड के जॉन ग्रुमित, नार्वे के एस सुरेश, श्री लंका के इंद्रजीत, मॉरीशस के शिवचन , हिंदी शिक्षक मंच के अध्यक्ष प्रो दीपक राय समेत कई हिन्दीजन और बुद्धिजीवियों ने सहभाग किया ।
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