Gonda News: लघु प्रयाग में त्रिमुहानी घाट पर साधु-संतों ने शुरू की कल्पवास, जानिए क्या है इसकी मान्यता
गोंडा। पौष माह के प्रारम्भ होते ही गोंडा जिले के परसपुर ब्लॉक में पसका के सूकर खेत में "लघु प्रयाग" के नाम से विख्यात संगम तट के निकट पौराणिक स्थल त्रिमुहानी घाट पर देश के कोने कोने से आये साधु संतों ने एक मास के कल्पवास के लिये डेरा जमा लिया है। अधिकांश कल्पवासी सोमवार की अमावस्या से पौष पूर्णिमा तक पखवाड़ा भर ही सांसारिक मोह माया से विरत रहकर कल्पवास करेंगे।
देवीपाटन मंडल के बहराइच जिले से बहती हुई आयी घाघरा नदी गोण्डा के परसपुर में बह रही सरयू नदी में विलीन हो गयी। जिसे दोनों पवित्र नदियों के समागम के कारणवश त्रिमुहानी संगम के नाम से जाना जाता है। संगम के तीरे घाट पर फूस की झोपड़ी बनाकर कर रहे कल्पवास के दौरान पौष पूर्णिमा को मुख्य स्नान करेंगे।
मान्यताओं के अनुसार, शास्त्र पुराण व गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरित मानस में सूकरखेत के पौराणिक धार्मिक महत्व उल्लेख किया गया है कि हिरण्याकश्यप का भाई हिरण्याक्ष महादैत्य ने सतयुग में पृथ्वी को चुराकर पाताल लोक में अपने चारों तरफ मैला एकत्र कर उसी में छिप गया, जिससे देवताओं में हाहाकार मच गया।
दैत्य के चंगुल से पृथ्वी को छुड़ाने के लिए सुर नर मुनि सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गये। देवताओं की करुण पुकार से द्रवित होकर भगवान विष्णु वाराह (सूअर) के रूप में अवतरित हुये और पृथ्वी को लेकर मैले के बीच पाताल में छिपे राक्षस हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी को महादैत्य के चंगुल से छुड़ाया।
भगवान विष्णु के वाराह अवतार गाथा से पसका सूकरखेत वाराह अवतार स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यहां पसका सूकरखेत स्थित वाराह छत्र के प्राचीनतम मन्दिर में वाराह भगवान विराजमान हैं, जो श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है। सूकरखेत में पश्चिम से पूरब दिशा की ओर प्रवाहित हो रही घाघरा नदी की धारा सरयू नदी में समाहित हुई।
दो नदियों के संगम के चलते ही यहां कल्पवास का पौरणिक महत्व है। जिससे यह स्थान त्रिमुहानी तट कहा जाता है। यहां पौष पूर्णिमा को विशाल मेला लगता है। जिसे संगम मेला कहा जाता है। संगम मेला मे पौष पूर्णिमा के पावन अवसर पर लाखों श्रद्धालु स्नान करते है।
चूंकि इस वर्ष पूर्णिमा की अगली तिथि को मकर संक्रान्ति पड़ रही है इसलिये पड़ोसी देश नेपाल, देवीपाटन मंडल के बहराइच, बलरामपुर, श्रावस्ती, बस्ती बाराबंकी समेत देश के कोने कोने से आने वाले लाखों श्रद्धालु दोनों दिन संगम में आस्था की डुबकी लगायेंगे।
सनातन धर्म परिषद के संस्थापक और तुलसीदास जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष स्वामी भगवदाचार्य नें सोमवार को बताया कि सूकरखेत में गोस्वामी तुलसीदास के गुरु नरहरि दास का आश्रम है। यहां गुरु आश्रम से चार किमी दूरी राजापुर गांव में गोस्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ।
मां-बाप की बचपन में ही मृत्यु हो जाने से वह इधर-उधर भटकते हुए नरहरि के आश्रम पहुंचे। जहां गुरु नरहरि ने उनका पालन -पोषण सहित रामकथा सुनाई। जिसे सुनकर गोस्वामी जी ने रामचरित मानस की रचना की। गोस्वामी तुलसीदास ने इस स्थान का उल्लेख करते हुए श्री रामचरित मानस के बालकांड में लिखा है कि- ‘मैं पुनि निज गुरु सन सुनी कथा सो सूकरखेत”।
उन्होंने बताया कि आगामी चतुर्दशी तिथि अर्थात 12 जनवरी से प्रथम तिथि 15 जनवरी तक विशाल रामायण मेले का परम्परागत आयोजन किया जायेगा। उन्होंने बताया कि त्रिमुहानी तट पर कल्पवास करने आये साधु संतों का कहना है कि यह स्नान घाट उपेक्षा का शिकार है।
स्नान स्थल पर गन्दगी व्याप्त है। साफ सफाई न होने से जगह जगह फैले कूड़े कचरे, शवदाह की लकड़ियां पूजा पाठ स्नान ध्यान में बाधक साबित हो रही है। जम्मू कश्मीर से आये बाबा भोजपत्र गिरी संगम तट पर फूस की झोपड़ी डालकर कई वर्षों से रहकर कल्पवास कर रहे हैं। यहां शवों के अंतिम संस्कार करने से दुर्गंध और प्रदूषण से कल्पवास मे काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। अंत्येष्टि के स्थान को अन्यत्र स्थापित करने की कई बार मांग प्रशासन से की गयी लेकिन किसी ने अभी तक सुधि तक नहीं ली।
परसपुर क्षेत्र के सकरौर के बाबा राघवराम दास व सूर्यपाल दास ने कहा कि वह कई वर्षों से यहां कल्पवास करने आ रहे हैं लेकिन बीते कई वर्षों से त्रिमुहानि संगम घाट और पसका क्षेत्र की स्थिति ज्यों कीत्यों दयनीय बनी हुई है जबकि आधिकारिक सूत्रों की माने तो संगम में प्रतिवर्ष भक्तों की बढ़ती आमद के दृष्टिगत घाट का दायरा एक सौ मीटर अतिरिक्त बढ़ाते हुये सौंदर्यीकरण कराया जा रहा है।
जिलाधिकारी नेहा शर्मा ने पसका मेले को लेकर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित कर मातहतों को कल्पवास, मेला और अन्य जीर्णोद्धार के कार्यों को लेकर आवश्यक दिशा निर्देश दिये।
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