सांपों से भरे जंगल में 'सुनामी' को दिया जन्म, 20 वर्ष पहले मची खौफनाक तबाही के बीच महिला की कहानी

सांपों से भरे जंगल में 'सुनामी' को दिया जन्म, 20 वर्ष पहले मची खौफनाक तबाही के बीच महिला की कहानी

पोर्ट ब्लेयर। नमिता रॉय और उनका परिवार शायद ही कभी 2004 में भूकंप के बाद आई सुनामी की खौफनाक यादों को भूल पाएगा। मूलरूप से अंडमान-निकोबार के हट बे द्वीप की निवासी नमिता ने सुनामी के बीच ही सांपों से भरे जंगल में अपने बेटे ‘सुनामी’ को जन्म दिया था जहां उन्हें और उनके परिवार को प्राकृतिक आपदा से बचने के लिए शरण लेनी पड़ी थी। बीस साल बाद, वह उस दिन को याद करके आज भी सिहर उठती हैं। 

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘मैं उस खौफनाक दिन को याद नहीं करना चाहती। मैं गर्भवती थी और रोजाना के घरेलू कामकाज में लगी थी। अचानक, मैंने भयानक सन्नाटा महसूस किया और समुद्र की लहरों को तट से मीलों दूर जाता देख मैं हैरान रह गई। पक्षियों में अजीब सी बेचैनी थी।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘कुछ सेकंड बाद, एक डरावनी सरसराहट की आवाज आई और हमने देखा कि समुद्र की ऊंची लहरें हट बे द्वीप की ओर बढ़ रही थीं और उसके बाद भूकंप के तेज झटके भी महसूस किए गए। मैंने लोगों को चिल्लाते हुए एक पहाड़ी की ओर भागते देखा। मुझे घबराहट होने लगी और मैं बेहोश हो गई।’’ 

नम आंखों और भरे गले से रॉय ने कहा, ‘‘घंटों बाद जब मुझे होश आया तो मैंने खुद को जंगल में पाया जहां हजारों स्थानीय लोग भी थे। अपने पति और बड़े बेटे को देखकर थोड़ा सुकून मिला। समुद्री लहरों ने हमारे द्वीप के ज्यादातर हिस्सों को अपनी आगोश में ले लिया था। लगभग सभी संपत्तियां तबाह हो चुकी थीं।’’ अब वह अपने दो बेटों सौरभ और सुनामी के साथ पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में रहती हैं। ‘कोविड-19’ महामारी के दौरान उनके पति लक्ष्मीनारायण की मौत हो गई। 

रॉय ने कहा, ‘‘रात 11 बजकर 49 मिनट पर मुझे प्रसव पीड़ा हुई, लेकिन वहां कोई चिकित्सक नहीं था। मैं वहीं एक बड़े पत्थर पर लेट गई और मदद के लिए चिल्लाने लगी। मेरे पति ने पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें कोई चिकित्सीय मदद नहीं मिल पाई। फिर उन्होंने जंगल में शरण ले रही कुछ अन्य महिलाओं से मदद मांगी। उनकी सहायता से, मैंने बेहद चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में ‘सुनामी’ को जन्म दिया... जंगल में हर तरफ सांप थे।’’ 

उन्होंने उस दिन को याद करते हुए कहा, ‘‘खाने के लिए कुछ नहीं था और सुनामी के डर से जंगल से बाहर आने की हिम्मत नहीं थी। इस बीच, खून की कमी के कारण मेरी हालत बिगड़ने लगी। किसी तरह, मैंने अपने शिशु को जीवित रखने के लिए दूध पिलाया। अन्य लोग सिर्फ नारियल पानी से ही अपना पेट भर रहे थे।’’ रॉय ने कहा, ‘‘हम हट बे में लाल टिकरी हिल्स पर चार रातों तक रहे और बाद में रक्षाकर्मियों ने हमें बचाया। मुझे इलाज के लिए पोर्ट ब्लेयर (जहाज के जरिए) में जीबी पंत अस्पताल ले जाया गया।’’ 

हट बे पोर्ट ब्लेयर से लगभग 117 किमी दूर है और जहाज से सफर में लगभग आठ घंटे लगते हैं। रॉय का बड़ा बेटा सौरभ एक निजी कंपनी में काम करता है, जबकि सुनामी अंडमान-निकोबार प्रशासन में सेवा देने के लिए समुद्र विज्ञानी बनना चाहता है। सुनामी रॉय ने कहा, ‘‘मेरी मां मेरे लिए सब कुछ है। मैंने उनसे मजबूत व्यक्ति आज तक नहीं देखा। मेरे पिता के निधन के बाद, उन्होंने हमारे भरण-पोषण के लिए कड़ी मेहनत की और अपनी खाद्य आपूर्ति सेवा शुरू की जिसका नाम उन्होंने ‘सुनामी किचन’ रखा। मैं समुद्र विज्ञानी बनना चाहता हूं।’’ 

अधिकारियों ने कहा कि 2004 में कोई प्रभावी चेतावनी प्रणाली नहीं थी, अगर ऐसी कोई प्रणाली होती तो बड़े पैमाने पर तबाही तथा जानमाल के नुकसान को टाला जा सकता था। अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘इस समय दुनिया भर में 1,400 से अधिक चेतावनी केंद्र हैं और हम सुनामी जैसी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।’’ 

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