दुर्लभ बीमारी: केजीएमयू के डॉक्टरों की मेहनत लाई रंग, सात माह वेंटीलेटर पर रह जिंदगी की जंग जीती बच्ची

दुर्लभ बीमारी: केजीएमयू के डॉक्टरों की मेहनत लाई रंग, सात माह वेंटीलेटर पर रह जिंदगी की जंग जीती बच्ची

लखनऊ, अमृत विचार। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के डॉक्टरों ने गिलियन बैरे सिंड्रोम से पीड़ित 8 साल की बच्ची की जान बचाने में सफलता हासिल की है। इलाज के दौरान बच्ची को करीब 7 माह तक वेंटीलेटर के सहारे पर रहना पड़ा। इस दौरान डॉक्टरों की पूरी टीम दुर्लभ बीमारी बबैरे सिंड्रोम से पीड़ित बच्ची के इलाज में लगी रही। डॉक्टरों, बच्ची के परिजनों और खुद बच्ची के धैर्य का नतीजा रहा है कि वह आज स्वस्थ है और अपने घर जा रही है।

दरअसल, कानपुर देहात निवासी एक बच्ची दुर्लभ बीमारी गिलियन बैरे सिंड्रोम (एक प्रकार का लकवा) से पीड़ित थी। हालत गंभीर होने पर बच्ची को लेकर परिजन केजीएमयू के बाल रोग विभाग पहुंचे। जहां पर प्रोफेसर डॉ. माला कुमार, अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. शालिनी त्रिपाठी और सहयोगी प्रोफेसर डॉ. स्मृति के ने मरीज को भर्ती कर लिया। प्रोफेसर (डॉ.) शालिनी त्रिपाठी ने बताया कि यह बीमारी एक लाख में एक बच्चे को होती है। यह एक प्रकार का लकवा है, जिसमें लकवा की दिक्कत शरीर के निचले हिस्से यानी पैरों से शुरू होती है। जो बाद में चेहरे तक पहुंच जाती है। इस दौरान जब चेस्ट की मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है तब मरीज को सांस लेने में दिक्कत शुरू होती है। कई बार उपकरणों के सपोर्ट पर ही मरीज सांस ले पाता है। यही समस्या लेकर बच्ची के परिजन अस्पताल आये थे। अस्पताल में 7 महीने तक उनका इलाज चला, जो बहुत कठिन था, लेकिन गहन इलाज और देखभाल से वह बच गई और धीरे-धीरे ठीक होने लगी। जब बच्ची अस्पताल आई, तो उसके चारों हाथ-पैर काम नहीं कर रहे थे और उसे सांस लेने में भी परेशानी हो रही थी, इसलिए उसे वेंटीलेटर पर रखा गया। उसे IVIg थेरेपी दी गई, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। बाद में उसे एक और खुराक दी गई।

डॉ.शालिनी ने बताया कि इस दौरान अस्पताल के पीआईसीयू (PICU) में रहते हुए बच्ची को सेप्टिक शॉक और वेंटिलेटर से जुड़ा निमोनिया का संक्रमण भी हुआ। जिसके कारण उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था, इसलिए न्यूरोलॉजी विभाग से सलाह ली गई। उन्होंने सीएसएफ (CSF) परीक्षण और प्लाज्माफेरेसिस की सलाह दी। प्लाज्माफेरेसिस के 3 चक्र किए गए। साथ ही संक्रमण के अनुसार एंटीबायोटिक्स को बदला गया। लंबे समय तक इंटुबेशन की जरूरत को देखते हुए ट्रेकिओस्टॉमी की गई। बच्चे को दौरे भी पड़े, जिसके लिए आवश्यक उपचार किया गया।

इस दौरान शुरुआत में बच्चे को कमजोरी के कारण ट्यूब के जरिए भोजन दिया गया। इतनी समस्या झेल रही बच्ची को इस दौरान हाई ब्लड प्रेशर भी हो गया, इसलिए उसे मुंह से दवाएं खिलाई गईं। लगातार तेज धड़कन के लिए भी इलाज किया गया। हालांकि धीरे-धीरे बच्ची के हाथों की कमजोरी में सुधार हुआ और उसने मुंह से खाना शुरू कर दिया।

मरीज लगभग 14 दिनों तक वेंटीलेटर के बिना रहा, लेकिन सांस लेने में परेशानी के कारण उसे फिर से वेंटीलेटर पर रखा गया। बाद में उसे वेंटीलेटर से हटाया गया और सामान्य हवा पर रखा गया। बच्चा लगभग 5 महीने तक ट्रेकिओस्टॉमाइज्ड था, और बाद में ट्रेकिओस्टॉमी साइट को पट्टी बांधकर बंद कर दिया गया। बच्चे को आहार चार्ट दिया गया। निचले अंगों में आई जकड़न (कॉन्ट्रैक्चर्स) के लिए फिजियोथेरेपी और पुनर्वास चिकित्सा की सलाह ली गई और उन्हें फिजियोथेरेपी करने की भी सलाह दी गई। अस्पताल में 7 महीने तक इलाज के बाद बच्चे की स्थिति में सुधार हुआ और अब उसे छुट्टी दी गई है।

डॉ.शालिनी ने बताया कि इलाज के दौरान जो सबसे बड़ी ताकत हमलोगों की थी वह धैर्य रही। इसमें बच्ची की मां ने भी बहुत धैर्य दिखाया। जिससे आज बच्ची स्वस्थ है। साथ ही डॉ.शालिनी ने यह भी बताया कि बच्ची का इलाज सरकार की तरफ से दी जा रही योजनाओं के तहत कराया गया है, जिससे इलाज का खर्च भी बच्ची के परिजनों को नहीं उठाना पड़ा है।

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