बाराबंकी: नमकीन और मीठे का स्वाद चखा रहा गैर प्रांतों का खजला

देवा मेला में प्रदेश के कई जिलों से आईं खाजा की दुकानें

बाराबंकी: नमकीन और मीठे का स्वाद चखा रहा गैर प्रांतों का खजला

रीतेश श्रीवास्तव/बाराबंकी, अमृत विचार: देवा मेला में खजला या खाजा की बिक्री सबसे अधिक होती है। किसी एक जिले से नहीं बल्कि प्रदेश के विभिन्न जिलों से करीब एक दर्जन से अधिक खजले की दु़कानें सज गईं हैं। जहां पर सुबह से लेकर देर रात्रि तक इसकी बिक्री हो रही है। यहां आने वाले मेलार्थियों को नमकीन के साथ मिठास का स्वाद भी यह खजला और खाजा दे रहा है। खास बात यह है कि अाधा दर्जन से अधिक कारीगरों व उनकी टीम कच्चे माल के साथ मेला भर रूक कर माल तैयार करते हैं। वहीं विभिन्न जिलों से बाबा के दरगाह पर आने वाले जायरीन व मेलार्थी खजला खरीदकर मेले को यादगार बना रहे हैं।

एतिहासिक दस दिवसीय देवा मेला की शुरूआत शनिवार की शाम को जिलाधिकारी की पत्नी के हाथों हो चुकी है। भले ही सरकारी तौर पर यह मेला दस दिनों तक चलता हो लेकिन वैसे मेले की भीड़ व उत्साह करीब एक माह तक बनी रहती है। इस बीच छपरा स्कूल से लेकर भयारा मोड़ तक यानी करीब तीन किलोमीटर की दूरी में सजी दर्जनों खजला व खाजा की दुकानें अपनी एक अलग पहचान बना रही हैं। जहां सुबह से लेकर देर रात तक खजला के शौकीन नमकीन और मीठा खजला के साथ खोवा वाले खजला को टेस्ट कर घर ले जाने के लिए खरीददारी कर रहे हैं। 

एटा से दुकान लगाने वाले कमलेश बताते हैं कि इस बार खजला 80 रूपये से लेकर 120 रुपये तक मिल रहा है। खोवा वाला खजले की बात ही कुछ और है। इसी तरह बुलंदशहर व महोबा के दुकानदार मुरली और नैमिष ने बताया कि मेले की भी शुरूआत हुई है लेकिन शुरू में ही अच्छी दुकानदारी देखने को मिल रही है। इसी प्रकार अन्य खजला व खाजा की दुकान लगाने वाले गैर जिलों जैसे इटावा, महोबा, आैरैया, कानपुर के दुकानदारों ने भी बताया कि जैसे-जैसे मेला परवान चढ़ेगा बिक्री में तेजी आती जाएगी क्योंकि बाबा के दर पर आने वाले जायरीन व मेलार्थी खजला व खासा को प्रसाद के रूप में लेकर जाते हैं।

दुकान के पीछे है गोदाम व कारखाना
खजला व खाजा बनाने के लिए प्रयोग होने वाला कच्चा माल का स्टॉक भी दुकानदार साथ में लेकर चलते हैं। इसके साथ ही प्रतिदिन कारीगर माल तैयार करते हैं। दुकान के पीछे ही गोदाम व कारखाना तैयार किया है। हर दुकान पर आधा दर्जन कर्मचारियों की टीम है। एक माह या उससे अधिक समय तक मेला में रहने के चलते कच्चे माल के रूप में मैदा, रिफाइंड, चीनी, खोवा व भठ्ठी आदि के लिए लकड़ी, कोयला आदि के साथ अन्य जरूरी सामग्री की उपलब्धता पहले से ही रखते हैं। ताकि माल तैयार करने में रूकावट न आए।

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