High Court ने सरकारी कर्मचारियों के वैवाहिक विवाद को लेकर दिया बड़ा फैसला, कहा- गुजारा भत्ता भुगतान के लिए बनाये जायें नियम

High Court ने सरकारी कर्मचारियों के वैवाहिक विवाद को लेकर दिया बड़ा फैसला, कहा- गुजारा भत्ता भुगतान के लिए बनाये जायें नियम

प्रयागराज,अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों के अलग रह रहे जीवनसाथी को भरण-पोषण भत्ते के भुगतान के लिए दिशा निर्देश तैयार करने के संबंध में कहा है कि अगर भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के तहत कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के कर्मचारियों के अलग रह रहे जीवनसाथियों को गुजारा भत्ता भुगतान के लिए उचित नियम बनाए जाते हैं तो यह उपाय सरकारी कर्मचारियों को वैवाहिक मतभेद से उत्पन्न होने वाले अनावश्यक मुकदमेबाजी से काफी सीमा तक दूर रखने में सहायक होंगे।

यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने नीरज कुमार धाकरे उर्फ पिंटू की प्रथम अपील को निस्तारित करते हुए पारित किया। अपीलकर्ता भारतीय सेना में लांस नायक/सिपाही है , जिसका वेतन 50,000/- रुपये प्रति माह है। वैवाहिक विवाद में सेना अधिनियम के तहत अपीलकर्ता के वेतन की 22% कटौती पत्नी को देय थी। इसके बाद पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत तलाक की कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान भरण-पोषण के लिए आवेदन किया। पत्नी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत भी कार्यवाही शुरू की, जिसमें उसने फिर से भरण-पोषण की मांग की। 

अपर प्रधान न्यायाधीश,परिवार न्यायालय, इटावा ने दो अलग-अलग आदेशों के तहत पत्नी को 5 हजार रुपये और 11 हजार रुपये प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया। इन आदेशों को ही हाईकोर्ट में वर्तमान अपील के माध्यम से चुनौती दी गई है। कोर्ट ने मामले के तथ्यों के अनुसार पाया कि ऐसे मामलों में अंतरिम भरण-पोषण भत्ते के लिए कोई और आदेश देने की आवश्यकता नहीं हो सकती है, जब तक कि कटौती (सेवा कानून के तहत) न्यायिक रूप से स्वीकृत मानदंडों से कम न हो या विशेष तथ्यों में अपर्याप्त न दिखाई दें। कोर्ट ने कहा कि जहां पति या पत्नी के सेवा कानून में भरण-पोषण के लिए ऐसा कोई नियम नहीं दिया गया है, वहां भरण-पोषण की राशि पति की आय के वेतन या परिवार की आय (पति और पत्नी के वेतन का योग) का 1/4 या 25% होनी चाहिए । कोर्ट ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए) को आगे निर्देश दिया कि सभी जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों (डीएलएसए) द्वारा कार्यशालाएं आयोजित करने पर विचार करें, जिससे सामान्य रूप से वादियों और अधिवक्ताओं के बीच अंतरिम भरण-पोषण भत्ते के संबंध में कानून की आवश्यकताओं और प्रक्रिया के बारे में अधिक जागरूकता पैदा की जा सके, साथ ही यह भी निर्देश दिया गया कि इस प्रकार तैयार किए गए नियमों को सभी पारिवारिक न्यायालयों, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों और न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थानों को 31.03.2025 तक भेजा जाए।

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