लखनऊ के इस इलाके में पत्थरों पर उभरने लगी आकृतियां, देख कर रह जायेंगे दंग
लखनऊ, अमृत विचार। राजधानी लखनऊ का एक इलाका ऐसा है, जहां पत्थरों में आकृतियां उभरने लगी हैं। यह आकृतियां लोगों की आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। जल्द ही यह आकृतियां पूर्ण आकार भी ले लेंगी।
दरअसल, टैगोर मार्ग स्थित वास्तुकला एवं योजना संकाय में चल रहे 8 दिवसीय अखिल भारतीय मूर्तिकला शिविर के तीसरे दिन पत्थरों में आकृतियां उभरने लगी हैं। पत्थरों पर छेनी-हथौड़ी की चोट से तैयार हो रही आकृतियों को निहारने के लिए बड़ी संख्या में कलाकार और कलाप्रेमी वास्तुकला महाविद्यालय पहुंचे। 5 प्रदेशों से 10 समकालीन मूर्तिकार शिविर में अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। लखनऊ विकास प्राधिकरण के सहयोग से चल रहे शिविर में लोग कलाकारों से उनके काम और तकनीक के बारे में जानकारी हासिल करते हुए दिखे। शिविर के कोऑर्डिनेटर भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि शिविर में आए सभी मूर्तिकार रात-दिन काम कर रहे हैं।
शिविर में डॉक्यूमेंटेशन टीम की रत्नप्रिया और हर्षित सिंह से नई दिल्ली से आए मूर्तिकार राजेश कुमार ने बताया कि मेरी रचनात्मक यात्रा मुक्ति और तरलता के लोकाचार द्वारा निर्देशित है। जबकि मेरी मूर्तियां बायोमॉर्फिक रूपों की झलक रखती हैं। मैं सहज अनुग्रह के साथ मूर्तिकला करता हूं। राजेश कुमार नई दिल्ली से हैं। उन्होंने 2012 में जामिया मिलिया विश्वविद्यालय से मूर्तिकला में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। वह ग्रेटर नोएडा में कला धाम स्टूडियो में काम कर रहे हैं। काला संगमरमर उनका पसंदीदा माध्यम है। कभी-कभी वह संगमरमर के साथ स्टेनलेस स्टील का प्रयोग भी करते हैं।
नई दिल्ली से ही आए मूर्तिकार शैलेश मोहन ओझा ने बताया कि मैं प्रेम, शांति और मानवीय अनुभव की जटिलताओं को व्यक्त करने के लिए लकड़ी, पत्थर, कांस्य, स्टील और लोहे आदि माध्यमों का प्रयोग करता हूं। मेरी कला बौद्ध विचारधारा से प्रेरित है। वह भी ग्रेटर नोयडा के कला धाम स्टूडियो में कला अभ्यास कर रहे हैं। नई दिल्ली से ही शिविर में आये मूर्तिकार संतो चौबे अपनी कार्य शैली के बारे में बताते हैं कि मेरा काम कलात्मक दर्शन संघर्ष और अवशोषण के जटिल नृत्य के इर्द- गिर्द घूमता है। संतों की कला शैली मूर्त और अमूर्त तत्वों के बीच टकराव और संबंध को दर्शाता है। उन्होंने 2014 में लखनऊ के कला एवं शिल्प महाविद्यालय से मूर्तिकला में अपनी पढ़ाई पूरी की। फिर वह दिल्ली चले गए और 2015 से अब तक गांधी स्टूडियो में काम कर रहे हैं, साथ ही वह शिक्षा निदेशालय, नई दिल्ली में एक व्याख्याता के रूप में काम कर रहे हैं। उनके काम का मुख्य विषय है द्वंद्व। इस शिविर में वह कैक्टस और बादल विषय पर काम कर रहे हैं।
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