Editorial : पटरी पर आते भारत-मालदीव संबंध

Editorial : पटरी पर आते भारत-मालदीव संबंध

अमृत विचार : हाल ही में मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू के द्वारा पहली आधिकारिक भारत यात्रा की जा रही है। पांच दिवसीय इस यात्रा को भारत एवं मालदीव के मध्य संबंधों में सुधार की दिशा में एक ठोस कदम की तरह देखा जा रहा है। निस्संदेह मालदीव जैसे पड़ोसी देश के साथ रिश्तों का सुधार कर प्रगाढ़ हो जाना दोनों देशों के लिए एक अच्छा संकेत है। 
मालदीव के राष्ट्रपति मोइज्जू एवं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मध्य संपन्न हुई द्विपक्षीय वार्ता में भारत एवं मालदीव के मध्य पांच मुख्य समझौतों एवं तीन प्रमुख घोषणाओं पर हस्ताक्षर किए गए। ये समझौते मुख्य रूप से मुद्राओं के आदान-प्रदान पर सहमति, खेलों में सहयोग, भारत की नेशनल जुडिशियल एकेडमी एवं मालदीव के जुडिशियल कमीशन के पारस्परिक सहयोग, भारतीय केंद्रीय जांच ब्यूरो एवं मालदीव के एंटी करप्शन कमिशन के बीच सहयोग तथा राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय व मालदीव के पुलिसिंग एंड लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी के बीच प्रशिक्षण जैसे मुद्दों पर आधारित हैं।

हिंद महासागर क्षेत्र में स्थिरता एवं समृद्धि के लिए दोनों देशों के द्वारा मिलकर कार्य करने पर सहमति जताई गई है। मुक्त व्यापार समझौते एवं डिजिटल कनेक्टिविटी पर फोकस करते हुए मालदीव में रुपे कार्ड भी लॉन्च किया गया। मालदीव की आवश्यकता के अनुसार दोनों देशों के बीच 40 करोड़ डॉलर का मुद्रा विनिमय समझौता भी संपन्न हुआ है। दोनों नेताओं के द्वारा भारतीय सहयोग से निर्मित हानीमाधू अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के नए रन वे और 700 से अधिक आवास का भी उद‍्घाटन किया गया। दोनों देशों के द्वारा आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भी सहयोग को बढ़ावा देने की बात की गई है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य पर अगर गौर किया जाए तो कभी-कभी तो ऐसा लगने लगता है कि विश्व आज तनाव, अस्थिरता एवं युद्ध की गिरफ्त में जकड़ा हुआ है। जहां एक ओर लंबे समय से रूस व यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है तो वहीं दूसरी तरफ इजराइल व ईरान में भी परस्पर संघर्ष से तबाही का मंजर देखने को मिल रहा है। लंबे समय से व्याप्त इन संघर्षों में विश्व को अर्थव्यवस्था एवं जन-धन की कितनी क्षति उठानी पड़ी है इसका अंदाजा लगा पाना बेहद मुश्किल है।

भारत एवं मालदीव की एक दूसरे के सापेक्ष अवस्थितियों पर यदि विचार किया जाए तो निष्कर्ष यह निकलता है कि दोनों ही देश एक-दूसरे के लिए एक विशिष्ट महत्व रखते हैं। जहां मालदीव के लिए भारत पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है तो वहीं भारत के लिए मालदीव समुद्री सुरक्षा एवं सामरिक हितों को लेकर जरूरी है। इस आधार पर दोनों देशों के मध्य पारस्परिक समझौतों, सुविधाओं एवं अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों के आधार पर, जो पहल संबंध सुधार की दिशा में की गई है, वह निस्संदेह ही दोनों देशों के विभिन्न हितों के दृष्टिकोण से आवश्यक भी है और साथ ही साथ लाभप्रद भी। भारत की नीति तो आदिकाल से ही ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की रही है, किंतु हमारी यह पावन व नि:स्वार्थ भावना कूटनीति के दायरे में आने से बच नहीं पाई, जिसका खामियाजा हमें एक लंबे समय तक भुगतना पड़ा, लेकिन वर्ष 2014 में जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की बागडोर अपने हाथों में संभाली है, तब से निरंतर ही वैश्विक पटल पर भारत का सितारा बुलंद होता जा रहा है। आज विश्व की महाशक्तियां भी भारत की महत्ता एवं संप्रभुता के आगे नतमस्तक हैं।

अगर हम एक वर्ष पहले की बात करें तो मोहम्मद मुइज्जू ने 17 नवंबर 2023 को मालदीव के आठवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। राष्ट्रपति बनने के बाद तुरंत ही मोइज्जू के नेतृत्व में ‘इंडिया आउट’ के रूप में भारत विरोधी अभियान चलाया गया था, किंतु मालदीव की यह भारत विरोधी लहर खुद उस पर ही भारी पड़ने लगी। वर्ष 2024 की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लक्षद्वीप यात्रा के दौरान उनके खिलाफ मालदीव के तीन उपमंत्रियों की अपमानजनक टिप्पणी से एक राजनयिक विवाद एवं गहमागहमी का माहौल खड़ा हो गया था। नतीजा यह हुआ कि भारतीय पर्यटकों ने भी करारा जवाब देते हुए मालदीव का बहिष्कार कर दिया और भारत में भी एक तरह से मालदीव बायकॉट की धारा बह पड़ी। मालदीव के लिए इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि इस वर्ष भारत से मालदीव पहुंचने वाले पर्यटकों की संख्या में एक भारी गिरावट दर्ज की गई। भारत से बहुत कम संख्या में पर्यटक पहुंचने के कारण मालदीव को एक अच्छी खासी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी, क्योंकि पर्यटकों की संख्या का सर्वाधिक प्रतिशत उसे भारत से ही प्राप्त होता था। 

निश्चित रूप से ये सुधरते रिश्ते दोनों ही देशों के लिए बहुआयामी रूप से लाभप्रद होंगे। भारी कर्ज के बोझ तले दबे एवं आर्थिक मंदी का सामना कर रहे मालदीव की सहायता भारत ने पहले भी हमेशा की है और वर्तमान में भी हर तरह की मदद को तत्पर है। यहां पर एक बात और विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि मालदीव ने ‘इंडिया आउट’ अभियान चीन जैसी भारत विरोधी ताकत के इशारों पर शुरू किया था, किंतु संकट की स्थिति में चीन ने मालदीव की लेशमात्र भी सहायता नहीं की। कारण यह है कि चीन की नीति हमेशा से ही अपने स्वार्थ, लाभ एवं हितों को साधने की रही है। आखिरकार जब चीन की यह दुर्भावनापूर्ण नीति मालदीव को समझ में आ गई तब उसके द्वारा भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में पहल की गई है।

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