बाराबंकी में बाढ़ प्रभावित किसानों के साथ दोहरा छल, जमीन गवांई लाखों की, मुआवजा कुछ हजार रुपये
सरयू नदी की बाढ़ में जमीन गवांने वाले किसानों की दशा, बाजार भाव की एक तिहाई कीमत भी नहीं
बाराबंकी, अमृत विचार। सरयू नदी की बाढ़ से प्रभावित किसानों के साथ दोहरा छल हो गया। एक ओर सरयू माई उनकी कीमती जमीन अपने साथ बहा ले गई तो दूसरी ओर जलसमाधि ले चुकी जमीन का शासन ने जो मुआवजा तय किया बल्कि मिलने की कगार पर है वह ऊंट के मुंह में जीरा से भी कम है।
मुआवजा राहत कम मजाक अधिक साबित हो रहा। अब किसान मिले मुआवजे को भरपाई के नाम पर सिर्फ रख सकता है, वह रकम उसके किसी काम आने वाली नहीं। वैसे ही बाढ़ की विभीषिका से जूझ रहे पीड़ितों का दर्द अब कोई हरने वाला नहीं ऊपर से मुआवजे ने उनकी तकलीफ और बढ़ा दी है।
नेपाल से लाखों क्यूसेक पानी छोड़े जाते ही तराई वासी कराह उठे। सरकारी सम्पत्ति का करोड़ों का नुकसान तो हुआ ही, खेती योग्य भूमि व खड़ी फसल भी नहीं बच सकी। अत्यधिक मेहनत व रात दिन एक करके खड़ी की गई फसल को सरयू नदी ने लीलने में देरी नहीं की। फिलहाल भले ही नदी का जलस्तर खतरे के निशान से नीचे है पर तराईवासियों का दर्द व दुख बदस्तूर है।
नदी का पानी अभी भी कटान करते हुए जमीन लील रही। तटबंध छोड़ बाढ़ पीड़ित घर लौटे पर तबाही के निशान छोड़ गई सरयू के विनाश से निपटना कम दुरूह नही है। इसके बावजूद एक बार फिर आशियाना खड़ा करने में लोग जुट गए हैं। बाढ़ आने के बाद सबसे बड़ा नुकसान किसानों की जमीन का होता है, नुकसान उठाने के बाद पीड़ितों की निगाह शासन की ओर उठती है पर किसान हर बार निराश हुआ है। वहीं हालत इस बार भी है।
जमीन का मुआवजा, ऊंट के मुंह में जीरा
करीब 83 किसानों की 183 हेक्टेयर खेती योग्य जमीन सरयू नदी लील गई। शासन से तय हुए मुआवजे के अनुसार प्रति हेक्टेयर 47 हजार 500 रुपये प्रति किसान दिया जाएगा। एक हेक्टेयर में 12 बीघे जमीन होती है अगर किसान ने 12 बीघे जमीन खोई है तो उसे 47 हजार 500 रुपये ही मिलने वाले हैं।
जबकि आसमान छूते जमीन के भाव से इतर अगर ग्रामीण इलाके में जमीन के रेट पर नजर डाली जाए तो अमूमन एक लाख रुपये बीघा का रेट आम है। सीधा फर्क यह कि एक किसान अगर एक हेक्टेयर खेती योग्य भूमि किसी को बाजार भाव से बेचे तो उसे करीब 12 लाख मिल जाएंगे और शासन के मुआवजे के अनुसार 12 बीघे जमीन की कीमत महज 47 हजार 500 रुपये ही है।
किसानों की हंसी उड़ा रहा शासन
सरयू नदी में गई खेती योग्य जमीन का जो मुआवजा तय किया गया है। उसके हिसाब पर गौर किया जाए तो प्रति किसान एक हेक्टेयर जमीन होने पर करीब 39 सौ रुपये प्रति बीघा मुआवजा उसे मिल रहा है। चूंकि बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र रामनगर तहसील का ही है, इसलिए यहां के किसानों की संख्या सर्वाधिक है। क्षेत्रफल के लिहाज से भी रामनगर बड़ा क्षेत्र माना जाता है। ग्राम पंचायत अकौना के मजरे कोयलीपुरवा निवासी निखिल अवस्थी करीब पंद्रह बीघे जमीन नदी में खाे चुके हैं। कहते हैं कि मुआवजा नहीं यह हंसी उड़ाने जैसा है। लाखों रुपये की कीमत वाली जमीन मुआवजा किसानों के लिए नाकाफी है। शासन को फिर से समीक्षा करनी चाहिए।
क्या कहते हैं अधिकारी
उपजिलाधिकारी रामनगर पवन कुमार ने बताया कि मुआवजा शासन स्तर पर तय किया जाता है। उन्हें केवल पोर्टल पर कुल एरिया फीड करना होता है। बाढ़ क्षेत्र की इकोनॉमी अलग होती है। जो भी जमीन नदी में समाहित हो गई है। पानी उतरने के बाद किसान फिर फसल उगाता है। जमीन भी उपजाऊ हो जाती है।
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