बिन पैसे और संसाधन कैसे पकड़े जाएं बंदर : शासन ने ग्राम पंचायतों को सौंपी बंदरों को पकड़ने की जिम्मेदारी

बिन पैसे और संसाधन कैसे पकड़े जाएं बंदर : शासन ने ग्राम पंचायतों को सौंपी बंदरों को पकड़ने की जिम्मेदारी

रामनगर/ बाराबंकी, अमृत विचार। शासन के द्वारा बंदरों को पकड़ने की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को सौंप दी गई है। बगैर पैसे और बिना संसाधन के बंदरों को पकड़ना और आबादी से दूर जंगल में पहुंचाना कैसे संभव होगा? यह जानने की जहमत किसी अधिकारी ने नहीं उठायी। अब सवाल इस बात का उठता है कि ग्राम प्रधानों और पंचायत सचिवों के पास आखिर कौन सी ऐसी जादुई छड़ी है, जिसके प्रयोग से बिना पैसे खर्च किए और संसाधन जुटाए बगैर बंदरों के आतंक से ग्रामीणों को छुटकारा दिलाया जा सके। 

उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय बंदरों के आतंक से ग्रामीण हलकान हैं। ऐसा कोई ब्लाक क्षेत्र नहीं होगा जहां दर्जनों गांवों से बंदरों का आतंक न चल रहा हो। रामनगर क्षेत्र के गणेशपुर, बड़नपुर, सोहई, मीतपुर, गोबरहा, लोहटी, पसई एवं कस्बा रामनगर सहित दर्जनों गांवों में उत्पाती बंदरों का आतंक जबरदस्त चल रहा है। बंदरों के हमले से दर्जनों लोग काल के गाल में समा चुके हैं। तमाम लोग हाथ पैर तुड़वाकर बिस्तर पर पड़े जीवन और मौत से संघर्ष कर रहे हैं। अभी कुछ दिन पूर्व रेलवे क्रॉसिंग केसरीपुर के पास मोटरसाइकिल सवार युवक बंदर से टकराकर घायल हो गए थे। बंदरों का आतंक इस तरह चल रहा है कि महिलाओं और बच्चों का घरों से निकलना दूभर हो गया है। छोटे-छोटे बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं।

गणेशपुर से मीतपुर होते हुए महादेवा जाने वाले मार्ग पर, लकड़ी मंडी से गणेशपुर मोड़ जाने वाले मार्ग, रामनगर से केसरीपुर होते हुए गणेशपुर जाने वाले मार्ग पर प्रतिदिन कई घंटे तक बंदरों का कब्जा रहता है। आवागमन बंद हो जाता है। दोनों तरफ लोग खड़े रहते हैं। साइकिल सवार और मोटरसाइकिल सवार की हिम्मत नहीं होती कि वह निकल सकें। ग्रामीणों के द्वारा अनेकों बार इसकी लिखित शिकायत अधिकारियों से की गई, लेकिन नतीजा शून्य रहा। पूरे प्रदेश से आईजीआरएस के माध्यम से लगातार बंदरों को पकड़ने की शिकायतें बढ़ीं और निस्तारण शून्य रहा। तो शासन में बैठे आला अफसरों ने बंदरों को पकड़ने की जिम्मेदारी गांवों में ग्राम पंचायत को और कस्बे में नगर पंचायतों को सौंप दी। इसके लिए शासनादेश भी जारी कर दिया गया। अब सवाल इस बात का उठता है कि ग्राम पंचायतों के पास बंदरों को पकड़ने के लिए न तो संसाधन हैं और न ही इसके लिए कोई बजट का प्रावधान किया गया है।

ग्राम पंचायत में मनरेगा हो अथवा राज्य वित्त, बिना वर्क आईडी जनरेट के कोई काम नहीं कराया जा सकता। न ही एक रुपया खर्च किया जा सकता है। मनरेगा गाइडलाइन में ऐसी व्यवस्था भी नहीं है। राज्य वित्त की किस्त जारी होने के साथ शासन के निर्देश जारी होते हैं कि यह धनराशि कहा खर्च करना है। शासनादेश जारी होने के बाद बंदरों के आतंक से परेशान लोग पंचायत सचिव और ग्राम प्रधान के चक्कर काट रहे हैं। लेकिन समस्या हल नहीं हो पा रही। क्योंकि ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं और यह समस्या दिन दूना रात्रि चौगुना की तर्ज पर बढ़ती जा रही

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