रूठे मेघा तो किसानों के माथे पर बढ़ी चिंता की लकीरें : 2023 के मुकाबले इस साल आधी हुई है बारिश

रूठे मेघा तो किसानों के माथे पर बढ़ी चिंता की लकीरें : 2023 के मुकाबले इस साल आधी हुई है बारिश

बाराबंकी, अमृत विचार : मेघा रूठे हुए हैं और धान की फसल को पर्याप्त पानी का इंतजार है। गुजरे तीन सालों में भरपूर बारिश से किसान बाग बाग होता रहा है, सरकारी पानी की जगह जब उसे कुदरती पानी की जरूरत थी तो देर से ही सही पर उसकी मुराद पूरी हुई, बात करें चालू साल की तो हालात बेहतर नहीं हैं। बारिश का यही हाल रहा तो धान की फसल पर मंड़रा रहा संकट हकीकत में बरबादी के रूप में दिखाई देगा। बीते साल के मुकाबले इस साल आधी ही बारिश हुई है, हैरत में डालने और मायूस करने के लिए बारिश का यह फर्क ही काफी है। इसके बावजूद किसान आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठा है। 

वर्ष 2021, 2022 और 2023 में बारिश अपने समय चक्र से आगे बढ़ गई और जमकर बारिश के हालात जुलाई अगस्त के बजाय सितंबर माह में बने। बारिश भी इस कदर हुई कि शहर व ग्रामीण इलाके पानी से लबालब हो गए। नहर में पानी आने का इंतजार करते किसान को एकबारगी निराशा हाथ लगती दिखी पर फसल सूखने से पहले ही कुदरत ने उसकी मुराद पूरी कर दी। यह माना गया कि बारिश ने सितंबर महीने में सारा हिसाब साफ कर दिया। अब बात 2024 यानी चालू साल की करें तो हालात निराश करने वाले हैं।

बीते तीन वर्षाें के मुकाबले इस साल बारिश आधी ही हुई है, एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2023 में अगस्त और सितंबर के शुरूआती दिनों में करीब 350 मिलीमीटर बारिश दर्ज की जा चुकी थी पर इस साल केवल अगस्त माह में ही 178 मिमी ही बारिश हुई है। यह आंकड़ा किसानों को परेशान करने के लिए काफी है। बारिश के शुरूआती हाल देखते हुए किसान को उम्मीद थी कि वह समय रहते धान  लगा लेगा और थोड़ी बहुत बारिश उसकी फसल को आगे बढ़ाने में मदद करेगी पर हुआ ठीक उल्टा जब किसान की फसल को पानी की जरूरत हुई तो बादल भी आसमान से खाली गुजर रहे हैं।

इस समय नहरों में पानी न के बराबर है, उससे किसान को कोई राहत नहीं मिल रही, उस पर दोबारा सक्रिय हुआ मानसून फिर ठहर गया है। किसानों का भला तभी होगा जब उनका खेत पानी से भर जाए। भीषण उमस व गर्मी से न सिर्फ आमजन बल्कि किसान भी बेहाल है। उसकी सबसे बड़ी चिंता इस समय धान की फसल को लेकर है अगर बारिश का यही हाल रहा तो उसकी फसल को तबाह होने से कोई बचा नहीं पाएगा। कमोबेश यही दशा दलहनी तिलहनी फसलों की भी है। उपकृषि निदेशक शोध अरविंद कुमार सचान बताते हैं कि धान की फसल के लिए हुई बारिश औसत ही कही जाएगी। वहीं दलहनी तिलहनी फसलों को भी ठीक ठाक बारिश चाहिए। इस साल हुई बारिश पिछले साल के मुकाबले काफी कम है। सितंबर माह में ठीक ठाक बारिश की उम्मीद है।


सूख रही धान की फसल, एक माह से नहीं है पानी

किसानों ने किसी प्रकार से धान की फसल तो लगा दी,परंतु मानसून के दगा देने और नहरों में पानी न आने से धान की फसल सूख रही है। बीच में बारिश के समय आई जब किसानों को पानी की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन इस समय कई दिनों से बारिश भी अच्छे से न होने की वजह से धान की फसल सूख रही है। कभी दर्जनों ग्राम पंचायतों की लाइफ लाइन कहीं जाने वाली शारदा सहायक नहर से निकली नवाबगंज रजबहा महज सफेद हाथी साबित हो रही है। कहने को तो किसानों की सुविधा के लिए नहर हैं लेकिन जमीनी हकीकत इतर है। 

नहर के अंतिम छोर के लगभग 15 किलोमीटर में पानी तो दूर पानी ही नहीं पहुंचता है। जिससे धान की फसल सिंचाई के लिए दूसरे मंहगे साधनों से सिंचाई करनी पड़ रही है।वहीं जैसे-तैसे जिन किसानों ने धान की रोपाई कर दी उनकी फसलें सूख रही हैं। नहरों में करीब एक माह से पानी नहीं आया है। किसानों ने जिला प्रशासन से नहरों में पानी छोड़े जाने की मांग की है। शारदा सहायक नहर का दिलावलपुर क्षेत्र के कछिया गाँव तक नहर का आस्तित्व है लेकिन किसान बताते है कि कछिया गाँव स्थित टेल तक कभी पानी पहुंचा ही नही है।

नहर की सही से सफाई न होने व पानी न आने से प्रभावित होने वाले गावों की बात करें तो किठैया, धनौली खास, सलेमपुर, सूपामऊ, दुल्लापुर, टिकरा, बबुरीगाव, रतौली, हाजीपुर सिल्हौर,दिलावलपुर, धारूपुर आदि ग्राम पंचायतों के सैकड़ों गाँव नहर में पानी की आमद न होने से मंहगी सिंचाई के लिए लिए मजबूर हैं। किसान धान की सिचाई के लिए परेशान हैं और वह नहरों में पानी आने का इंतजार कर रहे हैं। पानी न आने से किसानों की धान की फसल चौपट होने के कगार पर पहुंच चुकी है। किसानों से ऊपर वाला पहले ही रुठा है वहीं बची कूची कसर सरकार ने पूरी कर दी। सूख रही फसल को देख किसान परेशान हैं।

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