प्रयागराज : सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्टों से संबंधित विवाद मध्यस्थता योग्य नहीं

प्रयागराज : सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्टों से संबंधित विवाद मध्यस्थता योग्य नहीं

अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीपीसी की धारा को स्पष्ट करते हुए कहा कि सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्टों से संबंधित विवाद मध्यस्थता योग्य नहीं है और उन्हें सीपीसी की धारा 92 के तहत निपटाए जाना चाहिए। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सीपीसी की धारा 92 के प्रावधान सार्वजनिक उद्देश्यों या धर्मार्थ या धार्मिक प्रकृति के लिए बनाए गए सार्वजनिक धर्मार्थ/ट्रस्टों के विवादों को देखती है, जिसमें कानूनी कार्यवाही करने के लिए पूरी प्रक्रिया निर्धारित की गई है। यह कानून विशिष्ट विवादों के लिए मध्यस्थता को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करता है।

ऐसे में पक्षकार की सहमति से मध्यस्थ को अधिकार क्षेत्र नहीं दे सकते। उक्त आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति  विकास बुधवार की खंडपीठ ने वाणिज्यिक न्यायालय, मेरठ के आदेश को चुनौती देने वाली संजीत सिंह सलवान और चार अन्य द्वारा अपील को खारिज करते हुए पारित किया। जिसमें सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट विवाद के मामले में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 9 के तहत अंतरिम राहत के लिए अपीलकर्ताओं के आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

उक्त ट्रस्ट वर्ष 1970 से धर्मार्थ गतिविधियों में संलग्न है और मेरठ में गुरु तेग बहादुर पब्लिक स्कूल का प्रबंध भी करती है। ट्रस्ट और स्कूल की सदस्यता तथा प्रसाद को लेकर के वाद उत्पन्न हुआ था, जिसके कारण मध्यस्थ सहित कई कार्यवाहियां हुईं। अंत में कोर्ट ने ऐसे विवाद को मध्यस्थता के योग्य न मानते हुए विशेष रूप से सीपीसी की धारा 92 के दायरे में माना।

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