प्रयागराज : सांविधिक नियमों की अनुपस्थिति में शासनादेश सेवा शर्तों को नियंत्रित कर सकते हैं

प्रयागराज : सांविधिक नियमों की अनुपस्थिति में शासनादेश सेवा शर्तों को नियंत्रित कर सकते हैं

अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश जिला पंचायत मॉनिटरिंग सेल में विभिन्न पदों पर नियुक्ति और पदोन्नति के मामले में कहा कि कानून शून्यता की कल्पना नहीं करता है। सांविधिक नियमों की अनुपस्थिति में, सरकारी आदेश सेवा की शर्तों को नियंत्रित कर सकते हैं।

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि किसी व्यक्ति को 'को वारंटो' की रिट का दावा करने से पहले न्यायालय को संतुष्ट करना होगा कि प्रश्नगत पद एक "सार्वजनिक पद" है और उसे किसी अतिक्रमणकर्ता द्वारा बिना कानूनी अधिकार के धारण किया गया है। उक्त आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने सचिन यादव की जनहित याचिका को खारिज करते हुए पारित किया, जिसमें उत्तर प्रदेश जिला पंचायत मॉनिटरिंग सेल, इटावा में उपनिदेशक, अधीक्षण अभियंता और मुख्य अभियंता के पदों पर अरविंद कुमार राय की नियुक्ति और पदोन्नति को चुनौती दी गई थी।

याची ने तर्क दिया कि चयन मानदंडों को विपक्षी को अनुचित लाभ देने के लिए संशोधित किया गया है। अतः उक्त पदों पर हुई नियुक्तियों को शून्य घोषित किया जाए। कोर्ट ने पाया कि विपक्षी की नियुक्ति उत्तर प्रदेश जिला पंचायत मॉनिटरिंग सेल राजपत्रित अधिकारी सेवा नियम, 2004 के तहत निर्धारित वैधानिक मानकों के अनुसार हुई है। दूसरी ओर विपक्षी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अरविंद कुमार राय के सार्वजनिक पद धारण के अधिकार को चुनौती देने वाली वर्तमान याचिका पोषणीय नहीं है, क्योंकि उपरोक्त पद सार्वजनिक पद की परिभाषा के अनुरूप नहीं है।

मौजूदा याचिका व्यक्तिगत प्रतिशोध से प्रेरित है, ना कि जनहित से। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि विपक्षी की नियुक्ति को नियमित करने का सरकारी आदेश उचित था। कैडर के पुनर्गठन और पदोन्नतियां कानूनी दायरे में थीं तथा नियम, 2004 के नियम 4 के तहत प्रशासनिक आवश्यकताओं के अनुरूप थीं। उक्त नियम पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होते हैं, इसलिए वर्ष 2000 में हुई नियमित नियुक्ति को अवैध घोषित नहीं किया जा सकता है।

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