प्रयागराज : डिजिटल साक्ष्य से जुड़े मामलों में जांच अधिकारियों के उदासीन रवैए की कड़ी आलोचना

प्रयागराज : डिजिटल साक्ष्य से जुड़े मामलों में जांच अधिकारियों के उदासीन रवैए की कड़ी आलोचना

अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डिजिटल साक्ष्य से जुड़े मामलों में जांच अधिकारियों के उदासीन रवैए की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि जांच अधिकारी इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से प्राप्त तस्वीरों और वीडियो के साक्ष्यों की सुरक्षा करने में पर्याप्त रूप से सतर्क नहीं है। वे पेन ड्राइव में तस्वीरों और वीडियो को लेकर फॉरेंसिक विश्लेषण के लिए फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री में भेजकर ही अपने जिम्मेदारियों को पूरा समझ लेते हैं।

ऐसी स्थिति में यह प्रतीत होता है कि यह कृत्य केवल दूसरों पर दोष मढ़ने जैसा है। ऐसे कृत्यों को रोकने की आवश्यकता है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की एकलपीठ ने सौरभ उर्फ सौरभ कुमार की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए मामले को आगामी 27 सितंबर 2024 को सूचीबद्ध करते हुए की। मामले के अनुसार आरोपी और सह-आरोपी सेहबान पर एक नाबालिग लड़की को बहला-फुसलाकर उसके साथ यौन उत्पीड़न करने का आरोप है, साथ ही घटना का वीडियो बनाने और व्हाट्सएप के माध्यम से वीडियो वितरित करने का भी आरोप है।

कथित तौर पर वीडियो पीड़िता के भाई के मोबाइल पर सामने आया, जिसके बाद 3 अप्रैल 2024 को पुलिस स्टेशन अहरौला, आजमगढ़ में आईपीसी, पोक्सो और आईटी अधिनियम की धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई। हालांकि याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि आरोपी निर्दोष है। उसे मामले में झूठा फंसाया गया है। इसके अलावा अधिवक्ता ने इस बात पर जोर दिया कि अपराध में याची की संलिप्तता को दर्शाने वाला कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया है, क्योंकि प्राथमिकी में कथित अपराध की तारीख और समय जैसे विशिष्ट विवरणों का अभाव है।

इसके अलावा आयु निर्धारण जांच में पीड़िता की आयु 16 से 18 के बीच बताई गई है, जिससे पता चलता है कि दुष्कर्म के आरोपों के बावजूद पीड़िता सहमति देने वाली पार्टी हो सकती है। अंत में कोर्ट ने पूरे मामले के तथ्यों की जांच कर पाया कि बरामद किए गए वीडियो साक्ष्यों की जांच करने, आरोपी के मोबाइल फोन की गैलरी की सामग्री को सत्यापित करने में जांच अधिकारी विशेष रूप से विफल रहे, जो जांच की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। कोर्ट ने जांच अधिकारियों के लापरवाह रवैये की निंदा करते हुए कहा कि वे केवल इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को अपने कब्जे में ले लेते हैं। 

इसके अलावा, बिना उचित जांच के उन्हें फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्री को सौंप देते हैं। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जांच अधिकारियों की इस चूक से आरोपी और पीड़िता दोनों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने की पूरी संभावना है। कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य से जुड़े मामलों में जांच प्रथाओं को बेहतर बनाने के लिए सुधारात्मक आदेश जारी करने का निर्देश दिया।

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