Bangladesh Protest : बांग्लादेश में जबरन गायब किए गए लोगों के परिवारों को अब न्याय की आस
ढाका। ढाका में एक मंद रोशनी वाले कमरे में बेबी अख्तर अपने पति तारिकुल इस्लाम तारा की एक धुंधली तस्वीर पकड़े हुए है, जो 12 साल पहले कथित तौर पर बांग्लादेश की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा ले जाए जाने के बाद से गायब है। यह सिर्फ बेबी अख्तर की कहानी नहीं है, बल्कि पिछले 15 साल से अधिक समय से बांग्लादेश में जबरन गायब किए जाने के व्यापक दु:स्वप्न को दर्शाती है। आंखों से बह रहे आंसुओं के साथ बेबी ने कहा, ‘‘मैं पिछले 12 साल से अपने पति का इंतजार कर रही हूं। मेरी कोई गलती नहीं थी, फिर भी मेरी जिंदगी और परिवार बर्बाद हो गया। हम न्याय चाहते हैं। हमें उम्मीद है कि अंतरिम सरकार हमें न्याय देगी। मैं अपने पति की वापसी चाहती हूं।
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के हाल में सत्ता से बाहर होने के बाद तारा जैसे सैकड़ों लोगों की किस्मत पर अनिश्चतता के बादल मंडरा रहे हैं। हसीना सरकार पर व्यवस्थित रूप से लोगों को गायब कराने के आरोप लगाए जाते रहे हैं। हसीना के अपदस्थ होने के बाद अंतरिम सरकार ने इन मामलों की जांच के लिए एक आयोग गठित कर महत्वपूर्ण कदम उठाया है। आवामी लीग सरकार के डेढ़ दशक के कार्यकाल में जबरन गायब किए जाने के करीब 700 मामले दर्ज किए गए।
गायब किए गए लोगों के परिवारों के साथ काम करने वाले गैर-लाभकारी संगठन ‘मायेर डाक’ की समन्वयक संजीदा इस्लाम तुली ने बताया, ‘‘शेख हसीना सरकार के दौरान लोगों को जबरन गायब करना आम बात थी। गायब किए गए लोगों के परिवारों के लिए आयोग का गठन एक महत्वपूर्ण पहल है। हमें पिछले 15 साल से यह लड़ाई लड़ने के बाद न्याय मिलने की उम्मीद है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जबरन गायब करने के इस आतंक का इस्तेमाल राजनीतिक विरोध और असहमति को दबाने तथा देश में भय का माहौल पैदा करने के लिए किया गया था। पिछले डेढ़ दशक में जिन लोगों को जबरन गायब कर दिया गया था, उनके परिवारों को व्यवस्थित रूप से कानूनी राहत से वंचित किया गया। पंजीकृत मामले लगभग 700 हैं, लेकिन वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है।
जबरन गायब किए गए लोगों को न्याय दिलाने के लिए काम कर रहे एनजीओ अधिकार द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक, उसने जो आंकड़े एकत्रित किए हैं, वे दिखाते हैं कि जनवरी 2009 से जून 2024 के बीच बांग्लादेशी कानून प्रवर्तन एजेंसियों तथा सुरक्षा बलों ने 709 लोगों को जबरन गायब कर दिया। इसमें कहा गया है, ‘‘उनमें से 471 जीवित सामने आए या अदालत में पेश किए गए। इस बीच, 83 लोग मृत पाए गए। अब भी 155 लोग लापता हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पीड़ित परिवारों ने कहा है कि जबरन गायब किए लोगों को ‘आइना घर’ के नाम से पहचाने जाने वाले खुफिया नजरबंदी केंद्रों में रखा जाता है, जिनमें से एक ढाका छावनी में और अन्य देशभर में स्थित हैं। इनका संचालन विभिन्न सुरक्षा एजेंसियां करती हैं। पिछले छह साल तक खुफिया केंद्रों में रखे गए और हसीना सरकार के बेदखल होने के बाद रिहा किए गए मानवाधिकार कार्यकर्ता माइकल चकमा ने अपने साथ हुए जुल्म की दास्तां बयां की।
उन्होंने पत्रकारों को बताया, मुझे हर दिन पीटा जाता था और इतना प्रताड़ित किया जाता था कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं बाहर आ पाऊंगा और मुझे लगता था कि मैं वहीं मर जाऊंगा। पिछले छह साल में मुझे याद नहीं कि मैंने कब आखिरी बार सूरज की रोशनी देखी थी। इन केंद्रों में मेरे जैसे कई और लोग थे। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी जैसे राजनीतिक दलों ने भी अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को जबरन गायब किए जाने के कई मामलों की शिकायत की है।
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