रुद्रपुर: पूर्ति विभाग ने डीटीएम आवंटन में उड़ाईं नियमों की धज्जियां

रुद्रपुर: पूर्ति विभाग ने डीटीएम आवंटन में उड़ाईं नियमों की धज्जियां

रुद्रपुर, अमृत विचार। वर्ष 2016 से 2017 तक डीटीएम के नाम पर हजारों क्विंटल गेहूं-चावल ठिकाने लगाकर करोड़ों की हेराफेरी हो गई। वहीं डीटीएम नाम से दुकानों के आवंटन के साथ ही ऑनलाइन राशन कार्डों को नियम विरुद्ध जोड़ दिया गया।

जबकि वर्ष 1999 और वर्ष 2005 के शासनादेश में साफ तौर पर दर्शाया गया है कि दुकानों का आवंटन गठित टीम की अनुमति के बिना नहीं हो सकता। बावजूद नियमों की अनदेखी की गयी। जब मामला सामने आया तो जिम्मेदार अधिकारी अपना पल्ला झाड़ रहे हैं।

वर्ष 2016 से 2017 तक पूर्ति विभाग ने डीटीएम नाम से किच्छा, रुद्रपुर जगतपुरा और खटीमा में दुकानों का आवंटन किया। आवंटन के साथ ही तीनों दुकानों में करीब 6500 राशन कार्डों को जोड़ दिया गया। जिनका धरातल या फिर मैनुअल कोई भी रिकॉर्ड विभाग के पास नहीं है। इसके साथ ही शासन को ऑनलाइन 43777.34 क्विंटल गेहूं-चावल का डिमांड भी भेज दी गयी। जिसकी कीमत तकरीबन 14 से 15 करोड़ के करीब थी। हजारों क्विंटल राशन खपाने के बाद जब आवंटन के कायदे-कानून को देखा गया तो डीजीएम दुकान का आवंटन फर्जी निकला।

27 मार्च 1999 के पत्रांक संख्या 730 शहरी इलाका और 15 अक्टूबर 2005 पत्रांक संख्या 1609 शासनादेश की खुलेआम धज्जियां उड़ाई गई, जबकि शासनादेश में साफ तौर पर अंकित है कि दुकान आवंटन या फिर ऑनलाइन दस्तावेज बिना गठित टीम की अनुमति के नहीं हो सकता है। अब सवाल यह उठता है कि जब जिम्मेदार अधिकारियों की अनुमति के बिना ऑनलाइन आवंटन नहीं हो सकता है तो 2300 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से गेहूं व 3400 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से चावल 6500 राशन कार्डों के लिए 43777.34 क्विंटल की डिमांड शासन को क्यों भेजी गयी।

शासन से डिमांड की स्वीकृति मिलने के बाद आखिर खाद्य सामग्री को कहां खपाया गया। जबकि इन राशन कार्डों का धरातल पर कोई रिकॉर्ड नहीं है। इस संबंध में वर्तमान जिला पूर्ति अधिकारी व तत्कालीन जिला पूर्ति अधिकारी के पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं है।

कौन-कौन होता है कमेटी में
वर्ष 1999 शहरी और वर्ष 2005 ग्रामीण अंचल के लिए बनाए गये शासनादेश में साफ लिखा है कि दुकानों का आवंटन और उसकी प्रक्रिया कमेटी की देखरेख में होगी और रिपोर्ट बनने के बाद जिलाधिकारी उसकी मॉनिटरिंग करेंगे। शासनादेश में एडीएम, जिला पूर्ति अधिकारी को संयोजक, एसडीएम परगना और उप संभागीय सदस्य कमेटी के मुखिया होते हैं। जिनकी अनदेखी के बिना किसी भी सस्ता गल्ला दुकान का आवंटन नहीं हो सकता है।

पहले मैनुअल, फिर होगा ऑनलाइन
शासनादेश में स्पष्ट है कि शहरी इलाके में नये दुकान आवंटन में खाद्य नियमावली के तहत आवेदक अपना आवेदन करेगा और कमेटी पात्र व्यक्ति को ही संचालन की अनुमति देगी। वहीं ग्रामीण इलाके में ग्राम प्रधान, पंचायत अधिकारी संयुक्त रूप से भौतिक सत्यापन करेंगे। यह सभी रिपोर्ट तैयार होने के बाद कमेटी रिपोर्ट को अनुमोदित करेगी और जिलाधिकारी द्वारा अनुमति प्रदान करेगी। कारण डीएम को आवंटन व निरस्तीकरण का अधिकार दिया गया है।

बिना अनुमति के नहीं हो सकती है एंट्री
राशन कार्ड मैनेजमेंट सिस्टम यानि आरसीएमएस में साफ तौर पर दिया गया है कि किसी भी नई आवंटित दुकान का आवंटन पहले गठित कमेटी की देखरेख में होगा। अनुमति के बाद जिला पूर्ति अधिकारी के आदेश डाटा ऑपरेटर ऑनलाइन सूची या दस्तावेजों का डालेगा। इसमें भी बिना डीएसओ की आईडी के डाटा की एंट्री नहीं हो सकती है। वर्ष 2016 से 2017 में डीटीएम दुकान बनाई गई। उस वक्त महज दुकान आवंटन या फिर राशन डिमांड मंगवाने में ही ऑनलाइन प्रक्रिया का इस्तेमाल होता था तो 6500 राशन कार्ड कैसे ऑनलाइन चढ़ाए गए।