Kanpur: हथकरघा व वस्त्रोद्योग विभाग की 908 करोड़ की परियोजनाएं अब तक जमीन पर उतरीं, कारोबारी बदल रहे व्यापार
कानपुर, अमृत विचार। हथकरघा व वस्त्रोद्योग विभाग की 908 करोड़ की परियोजनाएं अब तक जमीन पर उतर चुकी हैं। पिछली ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी से पहले कानपुर मंडल के कारोबारियों ने 1,341 करोड़ रुपये का करार किया था। इनमें 40 परियोजनाएं शामिल थीं। इन परियोजनाओं में 22 परियोजनाएं जमीन पर उतर चुकी हैं। अधिकारियों ने बताया कि बाकी परियोजनाएं भी जल्द ही काम शुरू करेंगी।
इसमें निवेश करने वाली परियोजनाओं में टेक्सटाइल, टेक्निकल टेक्सटाइल और गारमेंटिंग एंड अपेरल की यूनिट सबसे अधिक हैं। अगली ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी के लिए तेजी से उद्यमी आकर्षित हो रहे हैं। कानपुर मंडल में अब तक इसके लिए 7 परियोजनाएं जुड़ चुकी हैं। यह परियोजनाएं 3250 करोड़ रुपये का नया निवेश करने जा रही हैं। हथकरघा एवं वस्त्रोद्योग निदेशालय के संयुक्त आयुक्त केपी वर्मा ने बताया कि अगली ग्राउंड सेरेमनी के लिए पिछली बार से अधिक का लक्ष्य पूरा किया जाएगा।
समस्याएं जस की तस
हथकरघा से जुड़े कारोबारियों ने बताया कि एक ओर बड़ी यूनिट तेजी से विकास कर रहीं हैं। दूसरी ओर पॉवरलूम की सहायता से दरी, फर्श दरी सहित अन्य सामान बनाने वाले बुनकर परेशान हैं। जाजमऊ पोखरपुर में हथकरघा से जुड़े कारोबारी सदरुद्दीन अंसारी ने बताया कि वे लोग लंबे समय से बिजली सहित अन्य सब्सिडी की मांग कर रहे हैं। उन लोगों की आज तक सुनवाई नहीं हैं। शहर में पोखरपुर, सुजातगंज व फेथफुल गंज में हथकरघा से जुड़े कारोबारी अपना व्यापार बदल रहे हैं।
नई पीढ़ी छोड़ रही काम
जाजमऊ पोखरपुर में लंबे समय से कारोबार से जुड़ी बुनकर अबीदा बानो व जुमराथन अंसारी ने बताया कि इस काम में छोटे कारीगर को अब ग्राहक नही मिलते। अधिक खर्चों और सीमित खरीदार की वजह से बाजार में प्रतियोगिता बहुत बढ़ गई है। शहर में लगभग 24 सौ हथकरघा उद्योग से जुड़े कारखाने हैं, जो अब हर साल कम हो रहे हैं। नई पीढ़ी अब इस उद्योग से नहीं जुड़ना चाहती।
स्वेदशी आंदोलन से जुड़ा दिन
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस को 7 अगस्त को मनाए जाने के पीछे कारण काफी रोचक है। पूरे विश्व में सबसे बड़े हथकरघा उद्योग वाले भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हथकरघा का विशेष महत्व रहा है। हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने और विदेशी वस्तुओं व वस्त्र के बहिष्कार के लिए स्वेदशी आंदोलन की शुरूआत 7 अगस्त 1905 को की गई थी। इसी आंदोलन के चलते हथकरघा तत्कालीन भारत के लगभग हर घर में खादी बनाने की शुरूआत हुई थी। इसी कारण से भारत सरकार ने 7 अगस्त 2015 से राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाए जाने शुरूआत की है।