नैनीताल: 51 करोड़ रुपये से किया जाएगा चाइना पीक की पहाड़ियों का स्थायी उपचार
नैनीताल, अमृत विचार। नगर की सबसे ऊंची पहाड़ी चाइना पीक में हो रहे भूस्खलन का 51 करोड़ 18 लाख रुपये की लागत से स्थायी उपचार होगा। पहाड़ी के उपचार के लिए वन विभाग ने डीपीआर बनाकर शासन को भेजा है, ताकि कई दशक से पहाड़ी में हो रहे भूस्खलन को रोका जा सके।
नैनीताल वन प्रभाग के डीएफओ चन्द्र शेखर जोशी ने बताया कि हल्की बरसात के बाद से पहाड़ी से भूस्खलन की घटना देखने को मिलती है, जिससे पहाड़ी की तलहटी में रहने वालों के सामने बड़ा खतरा मंडरा रहा था, जिसको देखते हुए पूर्व में जिलाधिकारी के निर्देश पर जिला आपदा प्रबंधन और जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ संयुक्त सर्वे कर 51 करोड़ 18 लाख की डीपीआर बनाई गई है। पहाड़ी में करीब 300 मीटर लंबी दरार को भरने और भूस्खलन को रोकने के लिए गहन निरीक्षण के बाद पहाड़ी में वायर क्रेट वॉल, ड्रिलीग,आरसीसी वॉल निर्माण की योजना है।
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, आपदा प्रबंधन विभाग, आईआईटी ने बताया बड़ा खतरा
बीते सालों से लगातार बरसात व बर्फबारी के दौरान पहाड़ी से हो रहे भू-धंसाव देखने को मिल रहा है, जिससे पहाड़ी की तलहटी में रहने वाले क्षेत्रवासी दहशत में जीने को मजबूर हैं। साल जनवरी 2020 और 21 में लगातार बर्फबारी के बाद पहाड़ी से भू-धंसाव देखने को मिला। भू-धंसाव के चलते क्षेत्र की पहाड़ियों में करीब 50 मीटर से अधिक लंबी दरार उभर कर आई जिससे शासन प्रशासन की चिंताएं बढ़ गईं, जिसके बाद शासन स्तर पर जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, आपदा प्रबंधन विभाग, आईआईटी समेत कई अन्य विभागों की संयुक्त टीम ने क्षेत्र का स्थलीय निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट तैयार कर शासन को पेश की।
जिसमें माना गया था लगातार क्षेत्र में भूस्खलन हो रहा है जो आने वाले समय में क्षेत्रवासियों के लिए खतरा बन सकता है, हालांकि रिपोर्ट बनने के बाद मामला पूरी तरह से ठंडे बस्ते में चला गया और 2021 के बाद से अब तक क्षेत्र में किसी भी प्रकार का कोई काम क्षेत्र में हो रहे भूस्खलन और धसाव को रोकने के लिए नहीं किया गया।
1880 में नैनीताल में हुए भूस्खलन से हिल गई थी ब्रिटिश सरकार
कुमाऊं विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर इतिहासकार डॉ. अजय रावत बताते हैं कि चाइना पीक से लगी पहाड़ियों में 18 सितंबर 1880 को एक विनाशकारी भूस्खलन हुआ था। जिसने भारत से लेकर इंग्लैंड तक ब्रिटिश हुकूमत को हिला कर रख दिया। इस भूस्खलन में करीब 151 भारतीय और ब्रिटिश लोग जमींदोज हो गए।
चाइना पीक समेत आसपास की पहाड़ियों में हुए भूस्खलन का मलबा नैनी झील में समा गया। जिसके बाद झील किनारे खेल मैदान यानी फ्लैट का निर्माण हुआ। इतना ही नहीं भूस्खलन ने ऐतिहासिक नैना देवी मंदिर को पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर करीब 500 मीटर दूर खिसका दिया, 1880 में हुए विनाशकारी भूस्खलन से ब्रिटिश सरकार इतनी गंभीर हो गई कि उसने नैनीताल के अस्तित्व को बचाने और शहर की सुंदरता को बनाए रखने के लिए शहर की पहाड़ियों में 64 बडे़ और छोटे नालों का निर्माण कराया।