'जिंदा' इंसानों के जाति-धर्म में फंसी शीला की डेड बॉडी, दफनाने को नहीं मिली दो गज जमीन...तीन घंटे चली पंचायत
महिला के अंतिम संस्कार को लेकर तीन घंटे तक हंगामा चला, हल नहीं निकला तो मैथोडिस्ट चर्च भेजा गया शव
रामपुर, अमृत विचार। जिंदगी भर जाति-धर्म का तमाशा देखने वाली शीला, मौत के बाद भी इससे बच नहीं सकीं। इंसानों के बीच उनकी डेड बॉडी रखी थी और धर्म-जाति पर बहस-हंगामा बरपा हुआ था। यह माजरा देखकर शायद उनकी आत्मा भी सहम गई हो। शीला को दफनाने के लिए गांव में दो गज जगह नहीं मिली, आखिर में पुलिस-प्रशासन ने उनका शव रामपुर के मैथोडिस्ट चर्च भिजवाया, तब जाकर उनका अंतिम संस्कार हो सका।
घटनाक्रम कोतवाली क्षेत्र के बहादुर का मझरा गांव का है। ओमप्रकाश जोकि पहले दलित थे, उन्होंने बाद में ईसाई धर्म अपना लिया था। शुक्रवार को लंबी बीमारी के चलते उनकी 50 वर्षीय पत्नी शीला का निधन हो गया। आसपास न तो ईसाईयों का कोई गांव है और न ही कब्रिस्तान। परिवार वाले शीला का शव लेकर पहले शमशान घाट पहुंचे, जहां अंतिम संस्कार करना चाहा। इसकी भनक लगी तो भावाधस के राष्ट्रीय संयुक्त मंत्री के साथ हिंदू समाज के लोग विरोध में खड़े हो गए।
सूचना पर पुलिस क्षेत्राधिकारी अतुल कुमार पांडेय, नायब तहसीलदार लोकेश कुमार और कोतवाल संदीप त्यागी मौके पर पहुंच गए। इस बीच मृतक महिला के परिजनों ने अपने खेत में शीला का अंतिम संस्कार करना चाहा तो आसपास के सिख समाज के लोग भड़क गए। सिख समाज के लोगों ने इस बात पर एतराज जताया कि खेत के नजदीक उनके घर हैं, और वे यहां कोई नई परंपरा नहीं पड़ने देंगे।
इस सबके बाद मृतक शीला के घरवाले सन्न रह गए। एक तरफ शीला का शव रखा था तो दूसरी तरफ पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों और ग्रामीणों के बीच बातचीत चल रही थी। अधिकारी अंतिम संस्कार का हल निकालने की कोशिश में लगे रहे। करीब तीन घंटे तक चली बातचीत, विरोध के आगे बेनतीजा रही।
भावाधस के राष्ट्रीय संयुक्त मंत्री दीप सिंह राही ने पुलिस प्रशासन के सामने मांग रखी कि ईसाइयों के कब्रिस्तान के लिए अलग जगह दी जाए। इस पर प्रशासनिक अधिकारियों ने इस परिवार को एक माह में कब्रिस्तान के लिए भूमि दिए जाने का आश्वासन दिया।
इसके साथ ही परिवार को मनाकर महिला के शव को रामपुर मैथौडिस्ट चर्च भेजा, तब जाकर मामला शांत हुआ और चर्च में शीला का अंतिम संस्कार किया गया। भावाधस के राष्ट्रीय संयुक्त मंत्री दीप सिंह राही ने आरोप लगाया कि क्षेत्र में ईसाई मिशनरियां दलितों व दबे कुचले लोगों का को लालच देकर धर्म परिवर्तन करा कर रहे हैं। लोगों भ्रमित किया जा रहा है। सरकार ऐसे दलितों की जांच कराए, जो दलित धर्म छोड़कर ईसाई बन गए हैं।
रामपुर की इस घटना पर आखिरी मुगल बादशाह, बहादुरशाह जफर का वो शेर सटीक है, जिसमें उन्होंने अपनी मिट्टी में न मिल पाने का मलाल कुछ इस तरह बयान किया था, कितना बदनसीब है जफर, दफ्न के लिए... दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में...।
ये भी पढ़ें -प्रयागराज: अधिवक्ताओं की तीन दिवसीय हड़ताल समाप्त, 15 जुलाई से शुरू करेंगे न्यायिक कार्य