कासगंज: मुख्यमंत्री के आदेशों की अनदेखी की कौन लेगा जिम्मेदारी.. कटघरे में खड़ा है सिंचाई विभाग 

कासगंज: मुख्यमंत्री के आदेशों की अनदेखी की कौन लेगा जिम्मेदारी.. कटघरे में खड़ा है सिंचाई विभाग 

गजेंद्र चौहान/कासगंज, अमृत विचार। साहब..... करोड़ों रुपए की मिट्टी की बोरियां बाढ़ से बचाव के कार्यों के लिए डलवाई गईं, लेकिन पानी की एक धारा में ही वह मिट्टी की बोरियां बह गईं। इस तरह की रिपोर्ट बनाकर शासन को चली जाती है और हर साल सिंचाई विभाग के जिम्मेदार अफसर घालमेल कर लेते हैं। कई बार जांच में अफसर फंसते नजर आए हैं तो ठेकेदारों पर कार्रवाई का भरोसा देकर गर्दन बचाते रहे, लेकिन इस बार तो कई अफसरों की गर्दन सीधे मुख्यमंत्री के निशाने पर हो सकती है, क्योंकि पिछले साल जब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बाढ़ का दौरा करने पटियाली क्षेत्र के गांव बरौना गांव में आए थे तो उस समय गांव डूब रहा थ।  

मुख्यमंत्री ने प्रशासन और सिंचाई विभाग के अधिकारियों के साथ विशेष बैठक कर निर्देश दिए की सुरक्षा की ऐसी मजबूत दीवार की जाए की अगली बरौना को बाढ़ छू भी न पाए। हुआ भी यही करोड़ों रुपए का प्रस्ताव बनाकर शासन को भेज दिया गया, प्रस्ताव को स्वीकृति मिली। धनराशि मिल गई और अफसर ने काम ठेकेदार को सौंप दिया। पहले तो हल्की सी बारिश में ही बरौना के समीप बनाए गए बांध की मिट्टी ढहने लगी और अब बैराजों से थोड़ा पानी क्या छूटा की कटान ने रफ्तार पकड़ ली और अभी से बरौना गांव के ग्रामीणों की धड़कनें बढ़ाते हुए वहां हालत बिगाड़ दिए हैं। अब सवाल उठ रहा है कि मुख्यमंत्री के आदेशों के बाद कराए गए कार्यों में हुई लीपापोती का जिम्मेदार आखिर कौन है? तत्कालीन अधिकारी या मौजूद अधिकारियों की टीम। जो भी हो लेकिन मौजूदा सिंचाई विभाग के अधिकारी इस सवाल से कतराते नजर आ रहे हैं और उन्हें मुख्यमंत्री की कार्रवाई का डर भी सता रहा है। इसकी पुष्टि सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता करते हैं। वह घबराकर कहते हैं कि फोन पर कुछ नहीं बताया जा सकता। जो हुआ उसके लिए बहुत लोग जिम्मेदार हैं।

पिछले कई सालों से पतित पावनी मां गंगा अपना रौद्र रूप मानसून सत्र के दौरान दिखाती है। तराई में तबाही मचाती है। दर्जनों गांव पानी में डूब जाते हैं। गलियां जलमग्न होती हैं। हजारों बीघा फसल नष्ट हो जाती है। यहां तक की कुछ गांव तो ऐसे हैं जो गंगा में समाते दिखाई देते हैं। उस समय तेजी के साथ कार्य किए जाते हैं तो ग्रामीणों को विस्थापित कर दिया जाता है। पिछले तीन साल से पटियाली क्षेत्र के गांव बरौना का यही हाल है। वहां तेज बाढ़ के दौरान कटान शुरू होता है। गांव में घुसा पानी कटान करने लगता है और घर नदी में समाने का खतरा रहता है। लगता है मानो अब यह गांव सुरक्षित नहीं रहा है। ग्रामीणों को गांव से हटाकर गांव खाली करा दिया जाता है। पिछले साल पूरा गांव खाली कर समीप के गांव में ही राहत शिविर कैंप लगाया गया। यहां ग्रामीणों को शरण दी गई। 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जब यह जानकारी हुई तो वह हवाई दौरा करने कासगंज पहुंचे और यहां दौरा करने के बाद उन्होंने बरौना के बाढ़ पीड़ितों को राहत सामग्री बांटी। सामग्री वितरण करने से पहले जिला प्रशासन और सिंचाई विभाग के अधिकारियों के साथ विशेष बैठक की। कहा कि मुझे कुछ नहीं पता इतने मजबूत कार्य कराए जाएं कि अगली बरौना गांव में कटान न हो और गांव तक पानी न पहुंचे। धारा परावर्तित कर दी जाए या कुछ भी किया जाए, लेकिन यहां के ग्रामीणों की बर्बादी न होने पाए। उस समय मुख्यमंत्री की सख्ती देख अधिकारी अलर्ट हो गए। तत्काल प्रस्ताव बनाकर भेजा गया और प्रस्ताव को मंजूरी भी शासन से मिल गई। फिर यहां काम शुरू कराया गया। पिछले कुछ महीनो से यहां तेजी से काम चल रहा था। लग रहा था कि मुख्यमंत्री के निर्देश कारगर साबित होंगे।  ग्रामीण खुश हुए। उन्हें भी यह आभास था कि अब इस बार बरौना सुरक्षित रहेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अभी जब भयावह बाढ़ के हालात नहीं है तब बरौना गांव में कटान हो रहा है। जिओ ट्यूब धंस गए हैं। अधिकारियों के हाथ पांव फूल रहे  हैं। सिंचाई विभाग के अधिकारी जवाब दे नहीं दे पा रहे। यहां तक की तमाम अधिकारियों की गर्दन फसी हुई है और कार्य में की जा रही लीपापोती में घोटाले की बू आ रही है।


तत्कालीन डीएम ने भी ली थी रुचि
तत्कालीन डीएम हर्षिता माथुर जो इस समय रायबरेली की डीएम हैं। उन्होंने बरौना के बचाव के लिए प्रस्ताव तैयार करने में काफी रुचि ली थी। सिंचाई विभाग के तत्कालीन अधिशासी अभियंता अरुण कुमार ने प्रस्ताव भेजा। करोड़ों रुपए के प्रस्ताव को मुख्यमंत्री की सहमति के बाद स्वीकृति मिल गई और फिर यहां काम शुरू कराया गया लेकिन ठेकेदार को काम सौंप दिया गया और जिम्मेदार तत्कालीन और मौजूद अधिकारियों ने कार्य की मजबूती को परखने की जरूरत नहीं समझी। तभी तो तत्कालीन अधिकारी ही नहीं, बल्कि मौजूदा अधिशासी अभियंता और सिंचाई विभाग के अन्य अधिकारी भी कार्रवाई के दायरे में दिखाई दे रहे हैं।

आंकड़े की नजर से
03 अगस्त 2023 को बरौना आए थे सीएम योगी आदित्यनाथ

07 करोड रुपए से बरौना में मजबूत कार्य कराने का भेजा गया था प्रस्ताव 

07 करोड रुपए के प्रस्ताव को जस की तस मिल गई थी मंजूरी


वर्जन -
फोन पर नहीं बताया जा सकता कि क्या-क्या लापरवाही रही। बहुत से कारण हैं और इसके लिए कई लोग जिम्मेदार हैं। खनन होना भी मुख्य कारण है और भी अन्य कारण हैं। बहुत कुछ बोलना ठीक नहीं है। अब जो भी हो इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकते। -शेर सिंह, अधिशासी अभियंता सिंचाई

अभी से यह हाल तो फिर क्या होगा हाल
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अब्दुल हफीज गांधी ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया। उन्होंने कहा कि बरौना में अभी से यह हाल है तो फिर क्या हाल होगा? मुख्यमंत्री के आदेशों का सही से पालन नहीं हुआ है। इस पर उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए और जो भी दोषी हो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए।

आखिर दागी ठेकेदार को ही क्यों सौंप दिया गया काम 
बाढ़ से बचाव का कार्य करने के लिए जिम्मेदारी ठेकेदार भंवर सिंह को सौंप दी गई। इन ठेकेदार पर पूर्व में आरोप है कि उन्होंने लगभग दो साल पहले बाढ़ के दौरान जब कटान हुआ तो कार्य कराया था। उस समय गड़बड़ी की थी और घोटाला भी किया था। हालांकि, बाद में अधिकारियों ने सब कुछ संभाल लिया। अब मुख्यमंत्री की प्राथमिकता वाला कार्य भी इन्हीं को दे दिया गया। अब डर है कि अधिकारियों की गर्दन कहीं ठेकेदार की मनमानी से न फंस जाए।

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