हल्द्वानी: वनाग्नि से निकल रहे कार्बन कणों से ग्लेशियरों को खतरा

हल्द्वानी: वनाग्नि से निकल रहे कार्बन कणों से ग्लेशियरों को खतरा

हल्द्वानी, अमृत विचार। वनों में लग रही आग जीव-जंतुओं के साथ ही हिमालयी पर्यावरण के लिए भी खतरा बन रही है। अप्रैल माह में ही उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के जंगल धधक उठे हैं। आग की वजह से उठ रहे कार्बन कण दूर तक उड़कर ग्लेशियर तक पहुंच रहे हैं। इससे ग्लेशियरों के पिघलने की गति तेज हो जाती है।

गर्मी बढ़ने के साथ ही उत्तराखंड में वनाग्नि की घटनाएं भी तेजी से बढ़ने लगी है। वन विभाग के अनुसार अब तक करीब 436 हेक्टेयर वन आग से प्रभावित हो चुके हैं। प्रदेश भर में अभी तक वनाग्नि की 373 घटनाएं हो चुकी हैं। हिमालयी वैज्ञानिकों के अनुसार इस बार अप्रैल माह की शुरुआत से ही वनाग्नि की घटनाएं हो रही हैं।

हाल-फिलहाल बारिश होने की कोई संभावना नहीं है। अलनीनो वर्ष होने की वजह से पहाड़ों में भी तापमान में उछाल आ रहा है। आने वाले दिनों में वनाग्नि की घटनाएं और अधिक बढ़ सकती हैं। वनाग्नि की वजह से बड़ी संख्या में कार्बन कणों का उत्सर्जन होता है। कार्बन कणों का व्यास 0.5 माइक्रोन तक होता है। यह हवा के साथ उड़कर हिमालय में ग्लेशियरों पर जाकर बैठ जाते हैं। कार्बन कणों का रंग काला होता है। इनके ग्लेशियरों पर पहुंचने से ग्लेशियर गर्मी को और तेजी के साथ सोखने लगते हैं। जिससे ग्लेशियरों का पिघलना और भी तेजी के साथ बढ़ जाता है।

बादल फटने की घटनाएं बढ़ने के लिए प्रदूषण जिम्मेदार
प्रदूषण और वनाग्नि की वजह से हिमालयी क्षेत्र का तापमान तेजी के साथ बढ़ता है। जिस वजह से गर्म हवाओं का उत्सर्जन जरूरत से अधिक होता है। इस तरह का मौसम बादल फटने की घटनाओं के लिए भी जिम्मेदार होता है। हिमालयी क्षेत्रों में विगत कुछ वर्षों में बादल फटने की बढ़ रही घटनाओं का यही कारण है।

वनाग्नि हिमालयी पर्यावरण के लिए बहुत खतरनाक है। इससे कार्बन कणों का उत्सर्जन तेजी के साथ बढ़ता है, जो ग्लेशियरों के लिए बहुत ही नुकसानदायक है।
- डॉ. जेसी कुनियाल, हिमालयी वैज्ञानिक
गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा