Chaitra Navratri 2024: प्रभु ‘श्रीराम’ के पुत्र ‘कुश’ ने की थी मां कुशहरी की स्थापना, उन्नाव के इस मंदिर की अद्भुत है मान्यता

नवाबगंज क्षेत्र के दुर्गा व कुशहरी देवी मंदिरों में लगता है भक्तों का मेला

Chaitra Navratri 2024: प्रभु ‘श्रीराम’ के पुत्र ‘कुश’ ने की थी मां कुशहरी की स्थापना, उन्नाव के इस मंदिर की अद्भुत है मान्यता

उन्नाव, अमृत विचार। उन्नाव अंतर्गत कस्बा नवाबगंज से तीन किमी दूर मां कुशहरी देवी का विख्यात मंदिर है। यहां रोजाना सैकड़ों भक्त दर्शन करने दूर-दूर से आते हैं। नवरात्र के दिनों में तो हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। किवदंती है कि मां कुशहरी देवी की स्थापना प्रभु श्रीराम के पुत्र कुश ने की थी।  

मंदिर के पुजारी आशु सिंह बताते हैं कि माता सीता को लाने के लिए जब उनके पुत्र लव और कुश परियर जा रहे थे तो वे यहां विश्राम करने रुके थे। यहां पास में एक कुआं था। जब उनके सैनिक कुएं से पानी भरने लगे तो उन्हें यहां एक दिव्य शक्ति का आभास हुआ। 

कुश ने कुएं में देखा तो उन्हें मातारानी की मूर्ति मिली। कुश ने मूर्ति वहीं एक टीले पर स्थापित कर पूजा-अर्चना की। अपने कुछ सैनिकों को वहीं एक गांव बसाने का आदेश दिया। आज भी मंदिर के पीछे कसौटी के पत्थर पर एक छत्रधारी घोड़े पर सवार लव-कुश की प्रतिमा स्थापित है। 

मंदिर के सामने एक विशाल सरोवर है। मंदिर के बाहर आम, नीम, कदंब, इमली व पीपल के वृक्ष बड़ी संख्या में है। ऐसा कहा जाता है कि एक नर्तकी भुल्लन के शरीर को लकवा मार गया था। उसने मंदिर आकर माता से उसे ठीक करने की मन्नत मांगी तो मातारानी ने उसकी मुराद पूरी की थी। जिसके बाद उसने माता के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।

ऐसे पहुंचे कुशहरी देवी मंदिर…

कुशहरी व दुर्गा माता के मंदिर जाने के लिए सड़क व रेल मार्ग दोनों से ही पहुंचा जा सकता है। रेलमार्ग से आने वाले भक्त कानपुर व लखनऊ स्टेशन से मेमो ट्रेन से कुशुम्भी स्टेशन उतरते हैं। जहा से टैक्सी से एक किमी की दूरी पर पश्चिम दिशा में माता कुशहरी मंदिर पहुचते हैं। 

वहीं दुर्गा मंदिर पहुंचने के लिए टैक्सी से नवाबगंज कस्बा पहुचते हैं। जहां से माता के मंदिर जाते हैं। सड़क मार्ग से आने पर लखनऊ के चारबाग बस स्टैंड से व कानपुर के झकरकटी बस स्टैंड से नवाबगंज बस स्टॉप उतरते हैं।  

मां दुर्गा के दर्शनों के बाद करते हैं नए कार्य की शुरुआत

कस्बे में स्थापित मां दुर्गा का प्राचीन व पौराणिक मंदिर है। भगवान परशुराम द्वारा स्थापित माता की मूर्ति के दर्शनों को यहां नवरात्र में आस्था का सैलाब उमड़ता है। यहां का चैतवर मेला काफी प्रसिद्ध है। मंदिर के मुख्य पुजारी मोनू सिंह बताते हैं कि मां दुर्गा की मूर्ति की स्थापना भगवान परशुराम ने की थी। बताया कि मंदिर से चार किमी दूर भितरेपार गांव है। जहां एक ऊंचे टीले पर उनके पिता जमदग्नि ऋषि का आश्रम था। 

बताया जाता है कि परशुराम का जन्म भी यहीं हुआ था। एक बार ऋषि जमदग्नि कुटिया में बैठे पूजा कर रहे थे। ऋषिवर के पास एक गाय थी। एक दिन राजा सहस्रबाहु कुटिया के पास से गुजरे तो उन्होंने अपनी सेना के साथ जमदग्नि की कुटिया में रुककर विश्राम किया। यहां ऋषि जमदाग्रि ने अपनी गाय के दूध से ही सारी सेना का पेट भर दिया। यह देख राजा सहस्रबाह आश्चर्य चकित हो गए। 

राजा ने ऋषि से गाय ले जाने की बात कही तो ऋषि ने गाय देने से मना कर दिया। जिससे राजा काफी आहत हुए और वहां से चले गए। बाद में ऋषि जमदग्नि का वध करके बलपूर्वक गाय ले गए। तपस्या पूरी कर परशुराम जब कुटिया आए तो उन्हें अपने पिता की मृत्यु का समाचार मिला। 

इसके बाद उन्होंने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने और गाय वापस लाने की ठान ली। इसके बाद कस्बे में आकर मां दुर्गा की स्थापना कर पूजा-पाठ किया। माता ने प्रसन्न होकर उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया। इसके बाद परशुराम ने राजा सहस्रबाहु का वध किया और गाय को कुटिया ले आए। तभी से माता दुर्गा को विजय की देवी कहा जाने लगा। 

आज भी जब लोग किसी नए कार्य की शुरुआत करते हैं तो माता के दर्शन जरूर करते हैं। मंदिर में माता की दिव्य आरती सुबह व शाम आठ बजे होती है। नवरात्र में यहां आस्था का सैलाब उमड़ता है। इस नवरात्र में ही यहां पर चैतवर मेला भी लगता है। मेला देखने के लिए अन्य जनपदों व प्रदेश तक से लोग पहुंचते हैं।

रेल व सड़क मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है मंदिर 

मां दुर्गा के मंदिर जाने के लिए सड़क व रेल मार्ग दोनों से पहुंचा जा सकता है। रेल मार्ग से आने वाले लोग कानपुर व लखनऊ स्टेशन से मेमू ट्रेन से कुसुंभी स्टेशन उतरें। यहां से आटो द्वारा नवाबगंज कस्बा पहुंचे। कस्बे से मंदिर नजदीक है। सड़क मार्ग से आने वाले बस से नवावगंज स्टॉप पर उतरें।

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